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गुरुवार, 7 मार्च 2024

द्वार हमारे मधुमालती

                                            द्वार हमारे मधुमालती    

मन जब भी एकाकी होता है तब क‍ही एकांत में सुकून की तलाश होने लगती है। द्वेष,क्‍लेश से मुक्‍त होकर प्राकृतिक अनुभूति को स्‍पर्श करने का ये मन करने लगता है। प्रकृति वास्‍तव में कितनी मनमोहक होती है। जंगल, नदी, पहाड़ आदि के बिना दुनियाँँ की खूबसूरती संभव नहीं है। हम एक छोटी सी बगिया भी बनाते हैं तो उसकी देखभाल एक छोटे बच्‍चे की भाँँति करतेे हैं क्‍योंकि हमें पता होता है कि यही क्‍यारियाँँ, यही रंग बिरंगे पुष्‍प ही आँँगन का शृंगार करते हैं।


             मेरे कमरे के ठीक सामने कई फूलों के पौधे लगे हुए हैं। उनमें से एक मधुमालती भी है। सुबह उठ‍ते ही पहली दृष्टि इन्‍हीं पुष्‍पाें पर पड़ती है। मन भाव‍विभोर हो जाता है। एक दिन सहसा इन्‍हीं मधुमालती के फूलों को देखकर कुछ पंक्तियाँँ भी लिख गईं-----


सुबह सुबह ये मैंने देखा,

सुंदरता की अनुपम रेखा।           

हल्‍की हल्‍की पुरवाई थी।

नन्‍हीं कलियाँँ शरमाई थी।

आँँगन शृंगारित कर देती,

ऐसे ऐसे रंग डालती।

द्वार हमारे मधुमालती।

द्वार हमारे मधुमालती ..........................   

-- प्रि‍यांशु कुशवाहा 'प्रिय'



  
           

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल - ' जीवनभर अभिलाषा रखना '

 जीवनभर अभिलाषा रखना


जीवनभर अभिलाषा रखना,

यानी खूब निराशा रखना।


हँसना रोना चांँद की खातिर,

तुम भी यही तमाशा रखना।


प्रेम गीत के हर पन्‍ने पर,

खूब विरह की भाषा रखना।


जिसकी तुमसे प्‍यासा बनी हो,

उसको बेहद प्‍यासा रखना।


मैंने सबकुछ छोड़ दिया है,

मुझसे अब न आशा रखना।


✏ प्रियांशु 'प्रिय' 

गीत - ' मैं तुम्‍हारा मीत बनना चाहता था '

                        गीत  


मैं तुम्‍हारा मीत बनना चाहता था,

पर तुम्‍हारे प्‍यार ने सब मार डाला ।

 

शब्‍द मेरे थे तुम्‍हारे और कुछ भी शेष न था,

नेह की बगिया हरी थी, तब कहीं भी द्वेष न था।

था हमारे और तुम्‍हारे बीच इक संबंध ऐसा,

क्‍यारियों में रातरानी की महकती गंध जैसा।

मैं कहीं भी रोशनी बन‍कर चमकता,

पर किसी अंधियार ने सब मार डाला।

मैं तुम्‍हारा मीत बनना....................

 

स्‍वप्‍न के टूटे हुए हिस्‍से के जैसा हो गया हूँ,

भूलकर मैं अनकहे किस्‍से के जैसा हो गया हूँ।

भूलना कितना कठिन है, जानकर यह ज्ञात होगा,

भूल जाओगे स्‍वयं को, तब बहुत आघात होगा।

गंतव्‍य तक चलने का हम सपना लिए थे,

प्रारंभ के ही द्वार ने सब मार डाला।

मैं तुम्‍हारा मीत बनना.................


✒ प्रियांशु 'प्रिय'

   सतना ( म. प्र. )

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

कविता - ' बढ़ बटोही '

कविता 

' बढ़  बटोही '


लक्ष्‍य के सोपान पर तू चढ़ बटाेही,

बढ़ बटोही ।।


व्‍योम को जा चूम ले,

जग ये सारा घूम ले।

कर दे विस्‍मृत हर व्‍यथा को,

मग्‍न होकर झूम ले।

जा वि‍पिन में रास्‍तों को,

तू स्‍वयं ही गढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही........


गिरि‍ नहीं है न्‍यून है,

है कि जैसे शून्‍य हैै।

कष्‍ट हैै भयभीत जिससे,

हाँँ वो तेरा खून है। 

और लिख - लिख गीत पथ के,

खूब उनको पढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही.........


✒ प्रियांशु ' प्रिय '

      सतना ( म. प्र. ) 




       

हिंदी रचना - '' जाने कितने धंधे होते ''

     जाने कितने धंधे होते 


जाने कितने धंधे होते,

            कुछ अच्‍छे, कुछ गंदे होते। 

जिन‍की भूख ग़रीब का खाना,

            वो सारे भिखमंगे होते। 

झूठ को देखे और न बोलें,

            जो गूँगे और अंंधे होते। 

बुरा भला न बोलो उनको,

            जिनके गले में फंदे होते। 

ये जो शेर बने फिरते हैं,

            दो कौड़ी के बंदे होते। 


✒ प्रियांशु कुशवाहा  

        सतना ( म प्र )

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

कविता - ' आते न गिरधारी हैं '

   ' आते न गिरधारी हैं '

रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'

भीख में माँगो न्याय मिलेगा, हक में हिस्सेदारी है।
ढेरों फर्जी काम देश में, कहलाते सरकारी हैं।


देश की पीड़ाओं की खबरें, भला कहां अब आती हैं,
अखबारों में छपता है कि,चीन ने मक्खी मारी है़।

जिन नागों की देश में पूजा, भगवन जैसे होती है,
ख़बर नहीं है किसी को लेकिन, ये सारे विषधारी हैं।

खींच रहा है चीर दुःशासन, डरी द्रौपदी बुला रही,
अब कलयुग में शांत हो गए, आते न गिरधारी हैं।

जिनकी रक्षा और सुरक्षा, की बातें बस होती हैं,
आँसू के संग घुट-घुट जीती, वे भारत की नारी हैं।

सदियों से सब झेल रहे हैं, सरकारी आघातों को।
परिवर्तन तो नहीं है कुछ भी, वही प्रक्रिया जारी है।

जब भी हम मतदान किए तो,एक बात ये जान गए।
कुर्सी वाले जीते हैं और, देश की जनता हारी है।


- प्रियांशु कुशवाहा 
 मोबा. 9981153574

किसान पर कविता -

क‍विता -  

                  देश का किसान  

अंधियारों को चीर रोशनी को जिसने दिखलाया है।
और स्वयं घर पर अपने वह लिए अंधेरा आया है।
जिसके होने से धरती का मन पावन हो जाता है।
जिसके छूने से खेतों का तन उपवन हो जाता है।
मात देता है निरंतर वह देह की थकान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

आँधियाँ तूफान जिनके तेज से भयभीत होते।
पग में छाले, हाथ काले, जख़्म के ये मीत होते।
जो धूप इस तन को छुए, वह स्वयं सौभाग्य पाती।
और पसीने की चुअन हर खेत को पावन बनाती।
खूब उर्वर वह बनाता बंज़र पड़े मैदान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

हजारों योजनाएँ आज भी पन्नों में अटकी हैं।
बहुत मजबूरियाँ इनकी वो फांसी पे लटकी हैं।
न जाने कब मिलेगा न्याय हमारे इस विधाता को।
परिश्रम के कठिन स्वामी विश्व के अन्नदाता को।
अनमोल है हीरा मिला, हिन्दोस्तान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
         सतना ( म. प्र. )
    मो. 9981153574





कविता - ' वंचित होकर सुविधाओं से '

कविता -  

           ' वंचित होकर सुविधाओं से '


वंचित होकर सुविधाओं से,देश की जनता रोती है।

ये कैसी सरकार है साहब,बारह महीने सोती है।



प्रमाण पत्र वो गौ रक्षा का,घर घर लेकर जाते हैं।

और लावारिस गायों की हम,रोज ही लाशें पाते हैं।

पर्यावरण हो शुद्ध जरूरी, पौधे रोज लगाएंगे।

देखरेख भगवान भरोसे, फोटो तो खिचवाएँगे।

ढेर दिखावे दुनियाँभर के, घर के भीतर होते हैं,

और गरीब बेचारे अपनी, झोपड़ियों में सोते हैं।

हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई भाई भाई कहते हैं।

लेकिन मन में भेद लिए सब लड़ते भिड़ते रहते हैं।

है जिनके बंगला गाड़ी, क्या वहीं गरीबी होती है ?

ये कैसी सरकार है साहब........



अखबारों से टी.वी. तक सब अच्छाई ही लगती है।

झूठ परोसा जाए फिर भी सच्चाई ही लगती है।

देश ये भूखा मर जाए पर पिक्चर इन्हें दिखानी है,

मुद्दों से भटकाने की यह अद्भुत अजब कहानी है।

सच को सच कहने वाले ही देशद्रोह में शामिल हैं,

लाश को काँधा देने वाले कहलाते सब क़ातिल हैं।

चोर, लुटेरे, डाँकू, दुश्मन, सब हैं कुर्ते के भेष में, 

घोटालों का जन्म इन्हीं से, हुआ हमारे देश में।

इस भ्रष्टाचारी लोकतंत्र में, झूठ की पूजा होती है,

ये कैसी सरकार है साहब........


© प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
         सतना ( म.प्र )
     मो. 9981153574


कविता - '' देखो यहाँ विकास हो रहा '' - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

  कविता   

     'देखो यहाँ विकास हो रहा !'

         


सारे शहर में खुदा है गड्ढा, सड़क का सत्यानाश हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोलें, देखो यहाँ विकास हो रहा।

चार वर्ष ये नींद में गहरी, जी जी भरकर सोया करते।

जनता इनके पैर की जूती, नहीं किसी से कभी ये डरते।

जब चुनाव की बारी आती, होश में तब ये आते हैं,

ढेरों वादे और घोषणा की झोली भर लाते हैं।

तब इनको लगता है, जनता के हिस्से की बात करें।

उनको ही भगवान बनाएँ, पूजा भी दिनरात करें।

जिनका रहा विरोध हमेशा, अब उनपर विश्वास हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा......


रुतबा इनका ऐसा है कि, ऊपर ही पेशाब करेंगे।

अपने हक की बात करो तो, उसमें बहुत हिसाब करेंगे।

जब चुनाव की बारी आयी, इन्होंने इतना प्यार है बाँटा।

कइयों के खाते तक देखो, पैसे कई हज़ार है बाँटा।

जन की सेवा करने खातिर, गाँव गाँव में मित्र बनाए।

जनसेवा ने ज़हर खा लिया, इन्होंने अपने वोट गिनाए।

सब उनके बन गए प्रचारक, ऐसा ही आभास हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा........ 


   © प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय' 

        सतना ( म. प्र. ) 
        मोबा - 9981153574





मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कविता || चुप रहो ! यहां सब शांत हैं || कवि प्रियांशु "प्रिय" ||

कविता ...

( चुप रहो ! यहाँ सब शांत हैं ...... ) 

यह वक्त ही कुछ ऐसा हो गया है कि सबको सबसे घृणा, ईर्ष्या, नफ़रत सी होने लगी है। एक व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए कुछ भी करने पर उतारू हो रहा है। भरी भीड़ में भी सब अकेले ही हैं। सत्ता के गलियारे तक अगर कोई बात चली जाए तो वहाँ सत्य बोलना मौत के साथ खेल खेलेने जैसा है। इसलिए हर जगह सत्य की भाषा और सत्य बोलने वालों की ज़बान बंद कर दी गई है। सरकार के पास गरीबों के खाने से लेकर उनके आवास तक की योजना महज़ कागज़ में ही सुरक्षित है। वो सब कागज़ी योजनाएं भी धीरे धीरे कूड़ेदान में डाली जा रही हैं। 
लोगों के बदलते हुए व्यवहार, चरित्र से लेकर सियासत तक की अंधी व्यवस्था को सुनिए इस कविता में......

( चुप रहो!  यहाँ सब शांत हैं... )

~    लेखन एवं प्रस्तुति
(  कवि प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय" )
मों.  9981153574 , 7974514882



कविता यहाँ से सुने 👉👉   चुप रहो ! यहाँ सब शांत हैं....

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

कविता ~ ( हमारे कॉलेज में ) ~ प्रियांशु "प्रिय"

जिले के महाविद्यालयों में आए दिन मारपीट,गुंडागर्दी एवं नशाखोरी चलती रहती है और यहां का कॉलेज प्रशासन, पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन हमेशा मौन रहता है।
इस विषय पर मेरी छोटी सी कलम का एक प्रयास ~

( हमारे कॉलेज में )


है सिस्टम बेकार, हमारे कालेज में,
सब रहते हैं लाचार, हमारे कालेज में।

प्रौफेसर कुछ सोने की तनख्वाह हैं पाते,
और करते अत्याचार,हमारे कालेज में।

बना है गुप्त विभाग,जहाँ पे ज़हर भरा,
यहाँ रहते नाग हज़ार,हमारे कालेज में।

छूरी, चाकू और कट्टा, बंदूक बहुत,
चलती है हर बार, हमारे कालेज में।

असामाजिक तत्वों की है दुकान यहां,
लगता इनका बाज़ार, हमारे कॉलेज में।

मारपीट और नशा गंदगी सब धंधा है,
जब होते हैं गद्दार, हमारे कॉलेज में।

सच बोला है 'प्रिय' ने और खतरा भी है,
चले ना अब तलवार, हमारे कॉलेज में।


~  प्रियांशु 'प्रिय'
मो. 9981153574



रविवार, 11 नवंबर 2018

हास्य कविता - यार तुम्हारे मैसेज से


हास्‍य रचना - 😜😀

( यार तुम्हारे मैसेज से )

हमको यह आभास हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से,
दुश्मन बेहद पास हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

इश्क़ में हमने खो डाला गाड़ी,बंगला और मकान,
सबकुछ सत्यानाश हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

पापा को भी ख़बर लग गई मेरी सब करतूतों पे,
समझो जीवन नाश हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

पता लग गया भाई को जब राज़ हमारे बारे में,
डंडों का एहसास हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

तुम खाओ पिज्जा,बर्गर,चाउमीन और डोसा भी,
अपना तो उपवास हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

जाओ तुम चाहे दिल्ली बॉम्बे य अमरीका टूर में,
अब मेरा वनवास हुआ है यार तुम्हारे मैसेज से।

© प्रियांशु "प्रिय"
शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर
महाविद्यालय,सतना ( म.प्र. )

        

बुधवार, 7 नवंबर 2018

कविता - आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ


कविता -
( आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ )

ईर्ष्या की झोली से तम को मिटाकर,
प्रेम और वैभव की रोशनी जलाकर,
पलकों ने जिसको संजोए थे अबतक,
उन दुखी अश़्कों को मन से हटाकर,
इश्क़ की खुशबू को जग भर फैलाएँ..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..

हम सबके मज़हब में ज्ञान का संचार हो,
भाई से भाई तक आकाशभर प्यार हो,
आँखें प्रफुल्लित हो देखकर जिसे वह,
स्नेह की दुकानों का रोशन बाज़ार हो,
मुस्काते श़हर में हम शामिल हो जाएं..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..

सुमन सा सुगन्धित हो हरपल हमारा,
प्रीत का भी चमके घर घर सितारा,
महल भी रोशन हो हर दिये से लेकिन,
झोपड़ी तक आए दीप का उंजियारा,
मुहब्बत की फिर से फुलझड़ी जलाएँ..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..

© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर
 महाविद्यालय, सतना ( म.प्र. )
     मो. 9981153574

कविता - हम सब मतदान करें

कविता -

( हम सब मतदान करें )

             
लोकतंत्र के पन्नों में अपनी पहचान करें,
उठो चलो मेरे साथी हम सब मतदान करें ।


जो वयस्क हैं भैया बहनें,नामांकन करवाएँ,
लोकतंत्र के महायज्ञ में,आहुति देकर आएँ।
और यही बहकावे में,बिल्कुल कभी न आना,
सोच समझ के देखो,अबकी बटन दबाना।
कोई भी चूके न अब,इसका भी ध्यान करें,
उठो चलो मेरेे साथी,हम सब मतदान करें..


यही हमारा निश्चय है, यही हमारा वादा है,
सच्चा और नेक व्यक्ति चुनने का इरादा है।
अबकी ये मत हमारा सत्य को ही जाएगा,
हम चुनेंगे उसको ही जो देश बनाएगा।
भ्रष्ट और हिंसा का जी भर अपमान करें,
उठो चलो मेरे साथी हम सब मतदान करें..


ये अधिकार हमारा है, हमारी लड़ाई है,
हम सबके मत से ही, देश की भलाई है।
तुम भी तो समझो और सबको बतलाओ,
अब मतदान करने कोे सब आगे आओ।
हाथ जोड़ मिलकर सब,देश का सम्मान करें,
उठो चलो मेरे साथी, हम सब मतदान करें..


© प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर
  महाविद्यालय, सतना ( म.प्र. )
      मो. 9981153574






बुधवार, 26 सितंबर 2018

इंसानों की बस्ती

कविता ~

 ( आँखों में कोहरा है )

इंसानों की बस्ती में अब हैवानों का पहरा है,
नफरत का रंग अबकी यहाँ बहुत गहरा है।

ईर्ष्या की नदियाँ जोरो-शोरों से बहती हैं,
प्रीत का पानी जरुर कहीं-न-कहीं ठहरा है।

हर बात सुनने चला आता जो आपके घर,
सच मानिए वही इंसान बहुत बेहरा है।

जला देते हैं लोग जहाँ देश के द्रोहियों को,
वहाँ हर रोज का त्योहार ही दशहरा है।

साफ कभी न दिखेगी इंसानी चेहरे की धूल,
हर एक चेहरे के पीछे एक दूसरा चेहरा है।

धुंधले नज़र आते हैं मुझे इस बस्ती के लोग,
शायद मेरी ही आँखों में कहीं घना कोहरा है।



  © प्रियांशु कुशवाहा " प्रिय "
शासकीय स्वशासी महाविद्यालय
          सतना ( म. प्र )

   




कविता ~ "किसान" ~ प्रियांशु " प्रिय "

कविता _

( किसान )

अंधियारों को चीर रोशनी को जिसने दिखलाया है।
और स्वंय घर पर अपने वह लिए अंधेरा आया है।
जिसके होने से धरती का मन पावन हो जाता है।
जिसके छूने से खेतों का तन उपवन हो जाता है।
मात देता है निरंतर वह देह की थकान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

आँधियाँ तूफान इनके हर तेज से भयभीत होते।
पग में छाले, हाथ काले, जख़्मों के ये मीत होते।
जो धूप इस तन को छुए वह स्वयं सौभाग्य पाती।
और पसीने की चुअन हर खेत को पावन बनाती।
अन्न में तब्दील करता सूखे पड़े मैदान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

हजारों योजनाएँ जो आज भी पन्नों में अटकी हैं।
बहुत मजबूरियाँ इनकी वो जा फांसी पे लटकी हैं।
न जाने कब मिलेगा न्याय हमारे इस विधाता को।
परिश्रम के कठिन स्वामी विश्व के अन्नदाता को।
अनमोल यह हीरा मिला है हिन्दोस्तान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

✒ प्रियांशु कुशवाहा 





सोमवार, 20 मार्च 2017

आँखों में कोहरा है


" आंखों में कोहरा है "

इंसानों की बस्ती में अब हैवानों का पहरा है,,
नफरत का रंग अबकी यहाँ बहुत गहरा है,,

ईर्ष्या की नदियाँ तो जोरो-शोरों से बहती हैं,,
प्रीत का पानी जरुर कहीं-न-कहीं ठहरा है,,

हर बात सुनने चला आता जो आपके घर,,
सच मानिए तो वही इंसान बहुत बहरा है,,

जला देते हैं लोग जहाँ देश के द्रोहियों को,,
वहाँ तो हर रोज का त्योहार ही दशहरा है,,

धुंधलेे नजर आते हैं मुझे इस बस्ती के लोग,,
शायद मेरी ही आँखों में कहीं घना कोहरा है,,



  ©   प्रियांशु " प्रिय "
   शासकीय स्वशासी महाविद्यालय



    

शनिवार, 24 सितंबर 2016

कविता - शिक्षक का सम्मान

                    शिक्षक का सम्मान    


   
जड़ चेतन मन भरा है जिसने,
   बुद्धि गजब महान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...।


   सारे जग के युग निर्माता,
   यही हैं भारत भाग्य विधाता...
   ज्ञान ज्योति दे तिमिर काटते ,
   विद्या यही प्रदाता...
   आओ सब मिल करें वंदना,

   करें आज गुणगान ......
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...

   बिन गुरु ज्ञान कभी न मिलता,
   जीवन रहे अधूरा ...
   जो आता है शरण में इनकी,
   होता सपना पूरा...
   नित्य सिखाते निश्छल मन से,
   ज्ञान और विज्ञान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...
   करें सब....।


   देव तुल्य है गुरु हमारे,
   करें वंदना आओ...
   गुरुओं के सम्मान में आकर,
   शिक्षक दिवस संदेशा देता,
   शिक्षक जगत महान...
   सब शिक्षक का सम्मान ...

   करें सब.....।


© प्रियांशु कुशवाहा
     सतना (म. प्र.)
Mo. 9981153574

बघेली क‍विता - दादू खड़े चुनाव मा

बघेली क‍विता दादू खड़े चुनाव मा       कर्मठ और जुझारु नेता,             बिकन रहे हें दारु नेता। एक बोतल सीसी बहुँकामैं,            बोट खरीदै...