मंगलवार, 4 मार्च 2025

प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता

 प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता  

नई नवेली दुलहिन जइसा धरती करे सिंगार।
हरियाली के बिछा बिछौना,देखी सबतर हार।।
गोहू गजब गलेथा देखी,होइगा हबै जवान।
छप्पन इंची सीना कीन्हे,घूमै फिरै किसान।
सरसो राई ओड़िके पियरी,मंद मंद मुसकाय।
अरसी कलशा लिहे ठाढ़ ही,मन माहीं हरसाय।
मनमनाय के फूली अरहर,करहे अमिया आम।
चढ़ा बसंती रंग है देखी,सुबहौ दुपहर शाम।
तितली भौरा भनभनाय के लगे खूब मेड़रांय।
धरती सजी गजब के देखी,रितुराज गा आय।
ठंडी ठंड़ी हबा चलै जब,बिरबा लहरा लेय।
प्रकृति केर है गजब नजारा,जिउ हरियर करि देय।
चली गाँव मेड़़न मा बागी,खेतन माही घूमी।
गाँव केर पावन माटी का,चली चली सब चूमीं।
कहैं प्रियांशु स्वर्ग के दर्शन सब जन करी निसोच।
शिमला कुल्लू और मनाली,काहे जई निसोच। - कवि प्रि‍यांशु 'प्रिय' सतना (म प्र)

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू, मनई हबय कसाई,
एक बीता के जाघा माहीं, लपटयं भाई भाई।

नहीं आय अब प्रेम प्यार कुछ, मनई है खिसियान,
सगला दिन बस पैसा केहीं पाछे है पछियान।

पइसै सेहीं बनय रहा है मनई खूब बेउहार,
पइसै वालेन केही जलवा उनह‍िंंन के तेउहार।

पइसै वालेन केहीं देखी, पाछे सगले बागय,
जेखर खीसा छूंछ रहथै, ओसे दूरी भागय।

पइसा देखि‍के नेरे अइहैं, साथी हेली मेली,
नह‍िं त दूरी रह‍िहैं तुमसे, भले बोलाबा डेली।

पइसा रही जो तुम्‍हरे ठइआं, दुश्‍मन भाई बोली,
नेता ओता गोड़न गिर‍िहैं, रूप‍िया अइसा डोली।

पइसै खातिर भटक रहा है, मनई सांझ सकारे।
सगला दिन व जिउ टोरथै , आंखीं काढ़े काढ़े ।।

कहैं प्रियांशु दिखन जमाना, बदला है धौं कइसा।
ओहिन कइती होंय सबय जन, भरा है जेखे पइसा।।

- कव‍ि प्रियांशु प्रिय

चैत्र महीने की कविता

  चइत महीना के बघेली कविता  कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...