प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता
मंगलवार, 4 मार्च 2025
भाईचारा मरिगा दादू
भाईचारा मरिगा दादू
भाईचारा मरिगा दादू, मनई हबय कसाई,
एक बीता के जाघा माहीं, लपटयं भाई भाई।
नहीं आय अब प्रेम प्यार कुछ, मनई है खिसियान,
सगला दिन बस पैसा केहीं पाछे है पछियान।
पइसै सेहीं बनय रहा है मनई खूब बेउहार,
पइसै वालेन केही जलवा उनहिंंन के तेउहार।
पइसै वालेन केहीं देखी, पाछे सगले बागय,
जेखर खीसा छूंछ रहथै, ओसे दूरी भागय।
पइसा देखिके नेरे अइहैं, साथी हेली मेली,
नहिं त दूरी रहिहैं तुमसे, भले बोलाबा डेली।
पइसा रही जो तुम्हरे ठइआं, दुश्मन भाई बोली,
नेता ओता गोड़न गिरिहैं, रूपिया अइसा डोली।
पइसै खातिर भटक रहा है, मनई सांझ सकारे।
सगला दिन व जिउ टोरथै , आंखीं काढ़े काढ़े ।।
कहैं प्रियांशु दिखन जमाना, बदला है धौं कइसा।
ओहिन कइती होंय सबय जन, भरा है जेखे पइसा।।
- कवि प्रियांशु प्रिय
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