गुरुवार, 6 जून 2024

बघेली रचना - फलाने अरझे रहि‍गें

  फलाने अरझे रहि‍गें 

मिली जीत न हार, फलाने अरझे रह‍िगें,

जनता लिहिस बिचार, फलाने अरझे रह‍िगें।


उईं अपने का चार पाँच सौ पार बतामय,

अब होइगा बंटाधार, फलाने अरझे रहिगें। 


अतरे दुसरे इनखर उनखर बइठक लागय,

कइसौ बनय सरकार, फलाने अरझे रहिगें।


ईं अपसय मा साल साल भर लपटयं जूझैं,

अब बनय रहें ब्योहार, फलाने अरझे रहि‍गें।


पाँच साल हम गोहरायन सब बहिर रहे हें,

तब कहयं हमीं गद्दार, फलाने अरझे रह‍िगें। 


✏  प्रियांशु कुशवाहा ‘प्रिय’ 


चैत्र महीने की कविता

  चइत महीना के बघेली कविता  कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...