बघेली बोली के नामवर साहित्यकार श्रद्धेय सैफुद्दीन सिद्दीकी सैफू की बघेली कहानी-
[ दुलहिन के डोली ]
कै बजे होइगे फुलिया !रमदइला खटिया मा परे परे खखारिस औ पूछिस - फुलिया प इरा के सथरी खुरभुराइस औऔ उठके बइठ गय।कहैं लाग अबै तो सुकबा नहीं उआ,अइसन लागत है के आधी रात होई,पुन कहिस के काहे पुछत्या हया,कहूं जांय का त नहि आय।
रमद इला कुछदार चुपान रहा फेर कहिस-" बासी रोटी ओटी त न धरे होइहे,आज ठकुराइन के काम से थोड़ी रसपताल भर जांय का रहा है।न जानी केत्तीदार पहुंचब,सांझ त होइन जई,डांकदर साहेब का चिट्ठी देब,फेर जब उनखर तार लागी आबत रहिहैं,पै हम त काल्है लउट पाउब।
फुलिया चट्ट पट्ट उठी,औरचुल्हबा मा आगी सुलगाय के चार ठे अंगाकर बनाय दिहिस,आलू भूंजिस,औ नोन मिरचा धइके एक फटही अग उछी मा बांधके लै आयी।
रमदइला लाठी मुरेठी औ रोटी कड पुटकी लइके चल दिहिस,रहै कुछ भिंसारै पै अंधियार रहै।फुलिया घर बटोरिस फेर बासन माजै लाग।तलघे भिंसारौ होइगा।सुरिज उई आये,रख उनी का गोरुवा डहरै लागे।गांव के मनई खेतन कइती जांय आमै लागे।
सुरिज महराज माता के कोख मा समायगे।धीरे धीरे अधियारी घुपै लाग,तबै इजुली बिजुली कुछू नहीं रही,कोऊ आगी बार के उंजियार कर लेय,कोऊ तेल के दिया जराय के ध ई लेबा करै।हां ठकुरन के घरमा औ टिर्रा बनिया के दुकान मा जरूर लालटेम जरत रही है।
फुलिया संझबाती मा सनकटइया लेस के थोरका अंजोर कइ दिहिस, पुन ओखे चुल्हवै के नेरे भर उजियार रहै,बांकी पूर घर अंधियारेन मा सकान रहै।
परोस केर महरनियां काकी दुआरे मा ठाढ़ होइके नेरिआंय लाग- ओ फुलया भुजी!! चलते हा,आज पण्डितन के मड़बा आय,कुछ बियाह उआह गाय अई।फुलिया बहिरे निकरी औ कहिस के चलित हन परोसिन,थोड़का दूसर धोतिया तो बलद लेई।देखत्या नहीं भोगै भोगा है। का करै बिचारी,एकठे धोतिया कुछ नीक हस रहै,रहै तो ठेगरहाई,पै ओढ़ना कुछ नीक रहै।ओहिन का पहिर के तयार होइगै पुसाग बनउबै करै तो काहे के माथे बनबै,सगली उमिर ठकुराइन दयामंत रहीं हैं तो कबहूं तिथ त्युहार अटही फटही धोतिया दइ देबा करैं,ओहिन का फुलिया जोगे जोगे पहिरबा करै तो मइकेवाली लाखे के कंठी गरे मां बांध के हरी घरी फुटहा अइना देखा करै।
ठठाठट्ट मनई भरा देखाय,पंडित बाबा के दुआरे मा ।खासा सरउती चरचराय रही तै,गाँव भर के मेहरिया बियाह गामैं मा टिकी रहैं।
घुरबा ठइयां फुलिया औ महरनिया चुपारे बइठ गई और ओहिन ठांय से सब रजा मजा लेंय लागीं।कोऊ बइठऊं भर का नहीं पूछिस,पूछै कइसन तबै मनई बहुत छूत मनबा करै।कोल कहार त बिचारे कुंइयन से पानी तक नहीं भरैं पावत रहें,नदिया तलाब मा त ई आपन घटबै अलग अलग बनाय लेत रहे।पढ़ेव लिखे नहीं रहत रहे,एसे कउनौ मेर के बतकहाबौ नहीं कर सकत रहे।सब मान अपमान चुपारे सहि लेबा करैं।
फुलिया कुछ दार त बइठ रही,फेर कहै लाग - "चला परोसिन घरे चली,का भूतन अस बइठ हया,बिटिऔ भर का त नहीं देखे का पायन,घुरबा मा बइठे बइठे जिउ उकरीहिन आइगा।सब मन ई अपनेन हाव भाव मा बिल्लियान हें।हमहीं तुमही पुछइयौ को है।
सन्चै दूनौ उठी अउर अपने घर कइत चल दिहिन।फुलिया त अपने घरेन मा परेन परे बियाह गामै लाग,औ अपने काजे के सुधि कइ कइ टेघरी जाय।ओही लागै कि जाना हमरै बियाह होइ रहा है।ढोलकी बाज रही है कोलदहकी होइ रही है। अंगना मा भात केर हाड़ा चढ़ा है,दार अधचुरी होइगै ही,अब बरात अउतै होई,नेउतहन्नी चारौ कइत मेड़राय रही है।अगना मा मगरोहन गड़ा है।बिचारी सुध करै औ मनै मन मगन होइ जाय।सोचतै सोचत सोइगै,सकारे जब खूब सुरिज चढ़ि आबा तब ओखर नीद खुली।
दुपहर के रमदइला लउटि आबा,पहिले ठकुराइन के बखरी गा फेर आयके भुइन मा पसर रहा।
फुलिया माठा और भगर रांधे रहै,परुस के लय आई औ फुटही लोटिया मा पानी अंउजिके धइ दिहिस।
रमदइला थोड़ थोड़ खाइस फेर कहैं लाग के फुलिया ओढ़ै का दइदे,जाड़ हस लागत है।जनात है कि बोखार चढ़ि अई।फुलिया फटहा धूसा लइके धई दिन्हिस औ कहै लाग के गली घाट के थकबाह होई,काल्ह से तौ हीठत आह्या,भला मनई के एतना बड़ा जिउ चार ठे रोटी मा दुई दिन टंगा रहत है,औ बइठ के गोड़ दबामै लाग।रमदइला के जिउ लरमानै रहै।एसे बखरिउ नहीं गा,घरै मा परा रहबा
आज पंडितन के घर मा बरात अई,दुआरे मा खूब सजनई कीनगै ही,सांझै से नगरिया सहनइया बाजै लागी हैं,सगला गाँव के भइपहा एक्का दुक्का आमैं लागे है।मेहेरिया सोहारी बेलती हैं।अहिर काका तरकारी काटै मा टिका है। गैस बत्तिन के सफाई पोछाई होय रही है। एक्का दुक्का लेसरतिउ जाती है।
भउजी ! ओ फुलिया भउजी!!चल बरात देखैं न चलिहे दुलहा का त देख ल्याब कउन मेर के है।
फुलिया दुअरा मां झांकिस औ कहिस के घरमा कइयक रोज से लरमान हें उनहीं अकेले छाड़िके कहां जई परोसिन, रमदइला बोल पड़ा-" काहे जाते नहीं आहे,हम परे न रहब हां एतना जरूर किहे दुअरा मा टटिया ओढ़काय दीन्हे कहौं कूकुर बिलार न घुसै।
परोसिन तुहूं देख लिहा की नहीं-"जना पंडित बाबा के पहुना लांगड़ है।"महरनिया मुहूं बर्रायके कहैं लाग- "एक कई भुजवा तेली,एक क ई राजा भुज्ज" क इसा जोड़ी बइठाइन ही।लागत है पंडित बाबा के बिटिया के करमै नसान रहा है।
हां बहिनी,ई बड़कवा घर दुआर औ डेरा साज तो देखतै हया,इनही अउर का करै का है।या लड़िकौ क उनौ पुरानिक केर होई।देखा न चढ़ाव मा सोनेन सोनेन के गहना लाये हें।
तलघे मेहरिया दुआर चार मा मूसर मथानी भमाय के भीतर चली गयीं।बरात जनमासे गै देखनहरिउ लउट लउट के अपने अपने घर चली आयीं।
सकारे रमदइला उठके दुआरे मा बइठ रहै।ओखर जिउ लरमानै रहै,जाड़न के मारे खूब धूसा लपेटे रहै।दबाई सबाई कुछू रहबै न करै परा रहबा करै दइउ के भरोसे।
फुलिया कुन कुन पानी औ मुखारी लै आयके धई दिहिस,रमदइला मुखारी करिस औ धूसा मा मुंह पोछि लिहिस।
ठाकुर मूरत सिंह, रमदइला के दुआरे मा ठाढ़ भे,बहुत सोचान रहैं,कहै लागे कि रमदइला तैं ठण्डी खाय गये हा,तोरे बेरामी से त हमार हाथै गोड़ ढील होइगे है। आज चले जये भैरम बैद के नेरे नारी देखाय दिहे औ दबाई लै अये,बताय दिहे कि ठाकुर पठइन ही।
हां एक बात बताव रमदिला,के पंडित बाबा के बरात आयी है,बड़ा खुरखुंद कये लाग हें,उनखर कहनूत है कि बिटिया सयान ही,हम साथै बिदा कराउब,पंडित बाबा बिदा करै का कहि दिहिन ही,पै इहा कोहू न नहीं बताइन,आज सकारे हमसे कहिन के डोली बाले मनई नहीं मिलैं ।एक जन सरमनिया भर मिला है।
अब तहिन बताव गांव घरके बात आय,म्याछा त सबै केर जांय का है,अब कइसन कीन जाय।
रमदइला कहिस- सुनी मालिक एई पंडित फुलिया का कुंइयां मा पानी नहीं भरैं दिहिन एक रोज तलाये मा नहात रही है त गारी देत रहे हैं कहैं छीटा मार दिहे है ,भला एतना उछिन्न करै का होत है? उनखे बिटिया के म्याना लई जाब ता छुतिहा न होई जिहैं।
ठाकुर कहैं लागे,देख रमदइला गांव घरेन मा सब होतै रहत है।पुरान बात के गठरी नहीं गठिआमै का होय।आज बड़मंसी के बात सामने है।जो हम तुम सब कोऊ इहै मेर कहैं लागी तो अन्तै बाले का कहिहै।
अबै सब जन इहै जानत हें कि ठकुरन के रहत गाँव केर मरजादा न जांय पाई।
फुलिया भितरे से बोल परी- उई लहौं न जइहैं किसान,आज चार रोज से खाइन पीन नहीं ,जिउ नहीं चलै ,कोहू आने का हेर लेई,हम आपन देखी धौउ पंडित के।
ठाकुर कहैं लगे,फुलिया भउजी एतने दिन तक हमार लोन पानी खाये हा,आज थोड़ का काम अढ़ै दिहेन तो नाहीं करते हा।भला अइसय चाही,बिटिया बाली बात ही नहत त हम कुछू कहबै न करित।
रमदइला कहिस - ठीक है मालिक,हम अपना के नोन पानी चुकाय देब,रमदइला के रहत अपना के बात खाली न परैं पायी।हम अपना के हुकुम न टारब,चाहे जउन कुछू होइ जाय।
सकारे बिदा होइगै,बिटिया खूब गोहार मार के रोइस ,गाँव भरे के मेहेरिया भेट करिन,ब्युहर,ठाकुर,ठकुराइन,सब रोइन।रमदइला अउर सरमनिया बिटिया का डोली मा बइठाय के चल दिहिन ,गाँव निकरत भर बिटिया रोउतै गै।
दुसरे रोज बिटिया का पहुचायके रमदइला घरे आयगा।दुलहिन बाली डोली दुआरे मा परी रहै,तिरपट बोखार चढ़ी रहै,छाती मा पीरा रहै,फुलिया दबाये रहै,बलधै के जाड़ पटांय जाय,पै दलकी काहे का धिमाय,बोखार त बोखारै आय।
रात के रमदइला बर्राय उठै,फुलिया डोली पंडित जी के घरै पठै दिहे,ठकुरन से कहि दिहे कि उनखर लोन पानी रमदइला चुकाय दिहिस अब ओरहन न देहै।तै रोये गाये न,अब हम जाब लेबउवा आयगे है।
फुलिया हरी घरी उठिके हांथ गोड़ मूदै ओखे आखी से टप्प टप्प आंसू बहैं,रात भर जाग के पार कई दिहिस ।
बड़े सकारे उठी,घर झारैं बटोरै लाग,सुरिज उइ आंये,सोचिस कि उठायके बइठाय देई,पै रमदइला अब नहीं रहा,ओखर मरी देह भर पइरा मा पड़ी रहै।
फुलिया का सगली धरती अंधियार देखांय लाग,कोऊ आगे पीछे नहीं रहिगा।गोहार मारिके रोमै लाग,सगला गांव ससान आबै,जे जइसन सुनै तइसै धउरत आबै,रमदइला का डेहरी के बाहर पराय दिहिन ।
ठाकुर ठकुराइन पंडित बाबा सबै घायके आये,ठाकुर तो खूब रोइन,ठकुराइन अपने लगुआ का छुपकाये रहै।
सब जन देखिब,एक क ई दुलहिन के छूंछ डोली परी रहै,औ दुसरे कई रमदइला के डोली।फुलिया के सगला सुक्ख बटोरिके लये चली जात रहै।
~ सैफुद्दीन सिद्दीकी सैफू जी