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शनिवार, 10 सितंबर 2022

व्यंग्य ~ स्टेटस न लगाऊँ तो स्टेटस बिगड़ता है

 व्यंग्य-

स्टेटस न लगाऊँ तो स्टेटस बिगड़ता है


तकनीक बहुत जल्द आगे बढ़ रही है। अगर आज आप पैदल चल रहे हैं तो ये भी संभव है कि कोई नवीन तकनीक आपको सुबह बिस्तर से उठते ही हवा में उड़ाने लगे और बिना ज़मीन में पाँव रखे आप दुनियाँभर के सभी काम कर सकें। हालाँकि वक्त भी ऐसा आ रहा है कि लोग ज़मीन में पाँव रखना ही नहीं चाहते। दोस्तों एक वो ज़माना था जब न टी.वी. थी, न मोबाइल, न ही ऐसी कोई तकनीक जिससे सुदूर बैठे अपने सगे-संबंधी से शीघ्र संपर्क साधा जा सके। लोग बस चिट्ठियाँ भेजते रहते थे और अपने परिचित का हाल जान लेते थे और अब ये मोबाइल का ज़माना ऐसा है कि तुरंत दोस्ती, तुरंत रुठना और उसी वक्त मनाना भी हो जाता है। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो प्री, मेन्स और इंटरव्यू तत्काल पूरा हो जाता है।


मोबाइल आने से खूब फायदे और ढेर सारा नुकसान भी हुआ है। यहाँ आपके खाने पीने से लेकर उठने बैठने तक की ख़बर आपके परिचित को होगी। अच्छा मुझे याद आया कि जबसे मोबाइल और सोशल मीडिया आया है। तबसे आज का युवा तो ठीक है पर कुछ बुजुर्ग व्यक्तियों के भी जवानी के दिन जीवंत हो गए हैं। अच्छे दिन और कहीं आएँ हों या नहीं लेकिन सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी और इसके भीतर अपना महत्वपूर्ण ज्ञान दे रहे तरह तरह के विद्वानों के बेहद ही अच्छे और सुखद दिन आएँ हैं जिनकी विद्वता का बखान करना मेरी लेखनी के लिए भी कठिन हो रहा है। अब फेसबुक पे ही देख लीजिए। जुकरबर्ग जी ने इसे इसलिए ही बनाया था कि लोग एक दूसरे से जुड़ सकें। बातें कर सकें। पुराने दोस्त भी यहाँ मिल जाते हैं। कहने का तात्पर्य इसको बनाने का उनका प्रयोजन बहुत ही नेक का। लेकिन भला वो क्या जानते थे कि इसे चलाने वाले महारथी उनके प्रयोजन के साथ गिल्ली-डंडा खेल जाएँगे।


पिछले दिनों मयंक नया नया मोबाइल लेकर आया था। उसे इसके बारे में ज्यादा जानकारी न थी। लेकिन दोस्त होते हैं न ज्ञान के पिटारे। सो उसके मित्र राहुल ने उसे मोबाइल के सभी Functions बताए और उसकी एक Facebook ID भी बनवा ही दी। साथ ही ये भी बता दिया कि फेसबुक सर्च करने पर हम सबको अपने पुराने मित्र भी मिल सकते हैं। अब मयंक के मन में पुराने प्रेम के बीज पुनः अंकुरित होने लगे। उसने फौरन अपनी कॉलेज की मित्र सुषमा को सर्च करना शुरु किया। कॉलेज के दिनों में सुषमा मयंक की अच्छी मित्र थी। मयंक को तो उससे प्रेम भी हो गया था लेकिन उसने कभी भी सुषमा से इसका ज़िक्र नहीं किया था। अब ये अच्छा मौका था कि फेसबुक के द्वारा वो अपने प्यार का इज़हार भी कर दे। फेसबुक पर सर्च करने पर उसे ढेर सारी सुषमा दिखने लगीं। मयंक ने ज्यादा सोचा-विचारा नहीं तुरंत किसी सुषमा को मैसेज कर दिया। कॉलेजी दिनों में गुज़ारे हुए प्रत्यके पलों का उसने सारगर्भित रुप से बखान कर दिया। उम्मीद थी जल्द ही उसका रिप्लाई आएगा और प्रेम प्रस्ताव भी स्वीकार होगा। कुछ दिन गुज़र गए। मयंक घर में सो रहा था। पड़ोस वाली आंटी, मयंक की मम्मी के पास आईं और खूब बातें सुनाने लगीं। गुस्सा करने लगीं। मयंक की करतूतें बताने लगीं। संयोग से पड़ोस वाली आंटी का नाम सुषमा ही था और मयंक ने अपनी कॉलेज की मित्र समझकर उन्हें ही मैसेज किया था। अब आगे की कहानी बताने में मेरी मयंक के प्रति दया-भावना जागृत हो उठती है। तो यही सब समस्याएँ होती है। अच्छा ! कई बार तो ऐसा भी होता है कि अपनी नज़र में आने वाली खूबसूरत सी Angel Ankita वास्तव में पड़ोस का Ankit होता है। इसीलिए सतर्क रहें और अपने पुराने प्रेम को तलाशने के लिए किसी थाने में गुमशुदी की रिपोर्ट भले ही दर्ज करा दें लेकिन फेसबुक जैसे केंद्र में तो बिल्कुल ही न तलाशें।


ये तो रही फेसबुक की कहानी लेकिन बात सिर्फ यहीं नहीं खत्म होती। एक और सोशल मीडिया नेटवर्क है जिसे अब विश्वविद्यालय का दर्जा भी प्राप्त हो गया है। जी हाँ। व्हाट्स एप। इसे व्हाट्सएप कहता हूँ और इसके साथ विश्वविद्यालय या University नहीं जोड़ता तो ठीक उसी तरह अधूरा और बेकार सा लगता है जैसे कोई नवोदित किसी की कविता चुराए और स्वयं के नाम के साथ कवि न जोड़े। WhatsApp को विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण दर्जा दिलाने के लिए इसके सक्रिय उपयोगकर्ताओं का विशेष योगदान है। जो देश-विदेश में चल रही प्रत्येक हलचल पर पारखी नज़र रखते हैं साथ ही अगर कभी भी वो नज़र धूमिल पड़ गई तो अपनी अप्रतिम कल्पनाशक्ति से अकल्पनीय ख़बरों को एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे को चंद सेकेंड में प्रेषित कर देते हैं। कुछ विद्वानों का ये भी कहना है कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए मूर्ख होना न्यूनतम योग्यता है। अब ज्यादा विश्लेषण नहीं करूँगा क्योंकि यह लेख मुझे एक मित्र के व्हाट्सएप पर भेजना है। 

अच्छा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी दिन-ब-दिन अपने नए-नए Feature लाकर अपने विद्वार्थियों को ऐसा आभास कराती है जैसे कॉलेज में कोई नई प्रौफेसर आई हो। अब जैसे ये WhatsApp Status वाला Feature देख लीजिए। सुबह उठते ही Good Morning का स्टेटस लगाना बहुत ज़रुरी सा हो गया है। अपनी पल पल की हरकतों पर Update देना भी लोग आवश्यक समझते हैं। पिछले दिनों एक मित्र सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल उठाए और Status लगाया "Good Morning All Of You, आज कॉफी देर बात नींद खुली है। अब हगने जा रहा हूँ।" तुरंत उसके भाई ने स्टेटस देख लिया और बाथरुम में घुस गया। दुर्भाग्य से घर में एक ही बाथरुम था। ऐसी तमाम समस्याएँ WhatsApp Status ने पैदा कर दी हैं। 

2 सितंबर को एक मित्र का जन्मदिन था। उसे दोस्त, रिश्तेदार, सगे-संबंधी सबकी शुभकामनाएँ आ रही थी। सबने अपने अपने WhatsApp के स्टेटस में उसकी फोटो लगाकर उसे शुमकामनाएँ दी। मैंने भी उसे शुभकामनाएँ दी। अपने WhatsApp Status पर उसकी दाँत दिखाते हुए एक फोटो भी लगा दी। लेकिन मेरे समझ में एक बात न आई। उन्हीं शुभकामनाओं का Screenshot लेकर उसने अपने WhatsApp में चिपकाया और फिर शुक्रिया कहा। मेरी छोटी व्हाट्सएप समझ के अनुसार तो वही रिप्लाई करके भी तो शुक्रिया कहा जा सकता था। मुझे तो स्टेटस पर दया आ रही थी। बेचारा असीमित स्क्रीनशॉट का भार कैसे संभालता होगा। हालांकि उसके 2296 शुभकामनाओं के ScreenShot में मैं शाम तक खुद का मैसेज तलाशता रहा। लेकिन मोबाइल डेटा खत्म हो जाने के कारण मैं खोजने में असफल रहा। उसके कुछ दिन बाद यानी 9 सितंबर को मेरा जन्मदिन था। सबने अपने अपने WhatsApp के Status में मेरी फोटो लगाई और शुभकामनाएँ दीं। स्वयं की तस्वीर उसके WhatsApp Status में देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई। मैंने भी  उसका Screenshot लेकर स्टेटस में लगाया। उसके साथ साथ लगभग 356 लोगों को शुक्रिया कहा। दुर्भाग्य से सिर्फ उनकी शुभकामनाओं का Screenshot नहीं लगा पाया था। बस उसके बाद से उन्होंने बात करना बंद कर दिया। दोस्ती पर दाग बताने लगे और न जाने कितने अपशब्द भी कहें। इस WhatsApp Status ने मेरी दोस्ती भी तुड़वा दी। इसीलिए कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जन्मदिन में शुभकामनाएँ WhatsApp Status में लगाने से स्वयं के Status बिगड़ने का ख़तरा अधिक रहता है। 


© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"

मो. 9981153574






गुरुवार, 22 जुलाई 2021

व्यंग्य ~ [ महाअभियान ]

 व्यंग्य ~ ( महाअभियान )

इन दिनों पूरे देश में वैक्सीनेशन महाअभियान चल रहा है। साथ ही साथ हर जगह पौधरोपण भी बड़ी तेजी से हो रहा है। आप इसे महाअभियान पौधरोपण भी कह सकते हैं। पहली बार किसी महाअभियान का नाम सुन रहा हूँ। शायद जितने भी महाअभियान टाइप चीज़े होती हैं उन सब में खासा भीड़ लगती है। इन दिनों तो प्रत्येक सेंटर में वैक्सीन लगवाने के लिए सुबह से ही खचाखच भीड़ जमा हो रही है। उसमें भी कुछ लोगों को ही वैक्सीन लग पाती है। बाकियों को वैक्सीन खत्म होने की सूचना देकर वापस लौटा दिया जाता है। बिल्कुल यही स्थिति इन दिनों पौधरोपण में भी है। एक राष्ट्रीय स्तर का पौधा लगाने के लिए सांसद, विधायक से लेकर बड़े बड़े प्रतिनिधियों की आवश्यकता पड़ रही है। और भीड़ भी इतनी ज्यादा कि पौधा भी स्वयं को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझता। कोई भी पौधा हो, पौधरोपण के वक्त सबसे ज्यादा इज्जत और सम्मान उसीका होता है। तब क्या नेता और क्या अभिनेता। सबके सब उस अकेले पौधे के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं। पौधे के साथ एक फोटो के लिए तो कभी कभी बहुत भीड़ जमा हो जाती है। अब भला इतनी इज्ज़त और सम्मान किसे मिलता होगा देश में। जय हो हमारे देश के पौधों।हमारे ही क्षेत्र के एक महाविद्यालय में एक नेताजी को पौधरोपण के लिए बुलाया गया था। बगिया के कौने में २-३ नीम और पीपल के छोटे-छोटे पौधे रखे थे। उनको ही रोपित करना था। शायद ऐसा माना जाता है कि जिले का य अपने आसपास के क्षेत्र का नामचीन व्यक्ति हो ( खासतौर पे कोई नेता ) उसके शुभ हाथों से पौधरोपण करवाने से पौधा भी स्वयं को ज्यादा गर्वित महसूस करता है। थोड़ी ही मिट्टी के सहारे अपनी जिजीविषा को जीवंत किए हुए पीपल का पौधा नेताजी को वहीं से गुज़रते हुए देख रहा था। नेताजी पान चबाकर आए हुए थे और तुरंत वहीं बगिया में थूक भी दिया। जिसकी कुछ पीक उन पौधों पर पड़ी। लेकिन उसने भी यही सोचा कि जब शहर की जनता उनका लाख अन्याय सहती है तो मैं एक छोटा सा पौधा थूक की पीक तो सहन कर ही सकता हूँ। खैर ! थूकना तो ज़रुरी था। अब अगर वही पान चबा जाते और गटक लेते तो उनके भीतर तो बड़ी समस्या खड़ी हो सकती थी। जनता जनार्दन के साथ कुछ भी अनहोनी हो जाए वो चलता है लेकिन किसी पार्टी के नेता को थोड़ा बुखार भी आ जाए तो शायद आपको अंदाज़ा नहीं कि उस वक्त वो कितना चिंताजनक विषय हो जाता है। अपनी थूकन क्रिया के कुछ देर पहले ही माननीय नेताजी एक विद्यालय में स्वच्छता अभियान पर बच्चों को प्रमाण पत्र ही बाटकर आए हुए थे। भाषण की क्या अद्भुत कला है उनके भीतर। वैक्सीनेशन महाअभियान के गलियारे से गुज़रते हुए स्वच्छता अभियान के घर में चाय पीकर पौधरोपण महासभा तक का सफर उन्होंने अपनी अद्भुत भाषाशैली में तय किया था। इतना ही नहीं अगर किसी एक विषय पर बोलने को कहा जाए तो प्रिय नेताजी उसी विषय के बीच में अपनी पार्टी का प्रचार बेहद ही अद्भुत तरीके से कर देते हैं।


~ प्रियांशु 'प्रिय'

गुरुवार, 27 अगस्त 2020

व्यंग्य ~ ( हम और बेचारी मीडिया )

 

व्यंग्य
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( हम और बेचारी मीडिया )

अब सब कुछ पहले जैसा रहा ही नहीं। कितने खूबसूरत दिन हुआ करते थे ना आदमी के पास मोबाइल था, ना टीवी, ना ही इतनी बेहतरीन टेक्नोलॉजी जो आज सबके पास उनकी जेब में ही उपलब्ध है। अरे भई! जब हमारे पास यह सब नहीं था तब भी तो लोग अपना काम कर रहे थे। तो क्या जरूरत थी इतना आगे बढ़ने की ? मोबाइल आने से चिट्ठियों का ज़माना जरूर खत्म हुआ है, लेकिन अब श्यामू बेचारा अपनी प्रेमिका मनीषा से मिलने नहीं जा पाता। जब भी ऐसा अवसर बनता तो बेचारे का कोई ना कोई काम आ जाता या कोई फोन करके उसे बुला लेता और मनीषा से मिलने की जगह न जाने उसे कितनों से मिलना पड़ जाता। प्रेमी और प्रेमिका के साथ सबसे बड़ी समस्या यही हो गई है कि पहले तो एक प्रेमी की एक ही प्रेमिका हुआ करती थी परंतु मोबाइल आ जाने के कारण ना जाने कितनों को एक साथ समेट कर चलना पड़ता है। तकनीक का युग तो उन दिनों भी था। हम और आप रेडियो सुनकर मनोरंजन या समाचार का आनंद भी ले सकते थे और देश - दुनिया की घटनाओं पर नज़र रख सकते थे। पर अब लोग टीवी या मोबाइल पर ही समाचार देखना बड़ा पसंद करते हैं। बेचारे रेडियो के साथ बड़ी समस्या हो गई। रेडी होते ही आउट होना पड़ा। मैंने ऊपर रेडियो में मनोरंजन और समाचार सुनने की बात कही है। परंतु वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह दोनों एक दूसरे के समकालीन ही नज़र आते हैं और हों भी क्यों ना जबसे बेचारे रेडियो का स्थान टी.वी. अथवा मोबाइल ने लिया है तबसे समाचार मनोरंजन और मनोरंजन समाचार एक जैसे ही हो गए हैं। अब तो बच्चों को मनोरंजन करना हो य कोई हास्यास्पद वीडियो देखने हो तो वह भी छोटा भीम, सोनपरी य शक्तिमान नहीं देखते। वह भी सोचते हैं चलो यार आज किसी न्यूज़ चैनल में फाइटिंग चल रही होगी वही देख कर ही मनोरंजन करते हैं। 

हमारे पड़ोस में राजेश नाम के 1 मित्र रहते हैं। उम्र यही कोई 20-21 साल की होगी। बेचारे पैसों के अभाव के कारण घर बैठे ही किसी बड़ी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। उतनी सुविधाएं मिल नहीं पाती हैं तो एक दिन उन्होंने एक मित्र को फोन लगाया और कहा -

" रंजीत भाई ! कोई न्यूज़ चैनल बताइए जिससे हमारे करंट अफेयर की तैयारी यहीं से हो जाया करें "

रंजीत भाई ने राजेश जी को कोई 7-8 चैनलों के नाम बताएं और कहा- “आप मनोरंजन के साथ-साथ करंट अफेयर की तैयारी यहीं से कर सकते हैं।” राजेश ने धन्यवाद बोल कर तुरंत ही फोन काटा और टी.वी. चालू कर रंजीत के बताए हुए न्यूज़ चैनल सर्च करने लगे। टी.वी. चालू करते ही बेचारे राजेश बड़ी असमंजस भरी स्थिति में पड़ गए। एक बड़े से न्यूज़ चैनल के स्क्रीन पर लिखा आ रहा था।

" प्रधानमंत्री इमरान से आखिर क्यों हैं उनकी बीवी नाराज़..जानने के लिए देखिए आज रात 10 बजे..."

राजेश जी को लगा हो सकता है कोई गलत न्यूज़ चैनल लग गया हो। उन्होंने फिर चैनल बदला और एक नया न्यूज़ चैनल लगाया इस बार उनकी स्क्रीन पर लिखा आया।

" क्या चीन में एलियन गाय का दूध पीते थे ? ..जानने के लिए देखिए आज शाम 5 बजे सिर्फ और सिर्फ फलाना चैनल पर..।"  बेचारे राजेश जी जब भी कोई न्यूज़ चैनल लगाते ऐसी ही खबरें सामने आने लगती। उन्होंने तुरंत बाद टी.वी. बंद कर दिया और सोचने लगे- मैंने तो रंजीत भाई से करंट अफेयर के बारे में पूछा था। वह तो इमरान और उसकी बीवी के अफेयर के बारे में जानकारी देने वाले चैनल का नाम बता कर गए हैं। 

भुखमरी, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, गरीबी इत्यादि यह सब तो देश में हमेशा ही रही है। चाहे उस वक्त किसी की भी सरकार रही हो। न्यूज़ चैनल वाले भी चाहते हैं कि इन समस्याओं को दिखाकर पुनः समाज के सामने उजागर क्यों करें। स्थिति तो अब ऐसी हो गई है कि पहले लोग झूठ बोलते थे और मीडिया सच ढूंढ कर लाती थी और अब मीडिया झूठ बोलती है और लोग सच ढूंढने का काम करते हैं। खैर ! जिसकी सरकार में देश की मूलभूत समस्याएं टीवी पर नहीं आ रही है, वही चैनल अच्छी खासी टी.आर.पी बटोर रहे हैं। अब भला पैसा और नाम कौन नहीं कमाना चाहता है। स्थिति तो सत्यवादियों की ख़राब है जो बेचारे इन समस्याओं को टीवी में दिखाना चाहते हैं। उनको सोशल मीडिया में ट्रेंड करके गालियां दे दी जाती हैं और भला सच्ची और अच्छी खबरें आज सुनना ही कौन चाह रहा है। ज्यादातर लोग तो हवा की ओर चलना ही पसंद करते हैं। 

मुझे व्यक्तिगत रूप से किसी न्यूज़ चैनल से लगाव या घृणा नहीं है, और न ही मैं इतना समाचार सुनता हूँ लेकिन कुछ चैनल के एंकर इतने खतरनाक तरीके से बोलते हैं-

 “ गौर से देखिए यह चेहरा ! हो सकता है आपके इर्द-गिर्द ही छुपा हो..” 

ठीक ऐसा सुनते ही बगल में बैठे पिताजी को यही महसूस होता है कि उनके ही बेटे ने ही इस संगीन वारदात को अंजाम दिया है। बेरोजगारी वास्तव में अपनी चरम सीमा पार कर रही है लेकिन इसमें बेचारी सीधी-सादी और नादान सरकार को दोष देना ग़लत है। अब न्यूज़ चैनल वालों का ही उदाहरण ले लीजिए इतनी बेरोजगारी भरी स्थिति में उनके रिपोर्टर्स भी तो कमाई कर रहे हैं, हाँ! लेकिन उन्होंने चाटुकारिता का बेहद महत्वपूर्ण और आवश्यक कोर्स भी किया है। अगर आप सत्य बोल रहे हैं य आपको चाटुकारिता भरी रिपोर्टिंग य एंकरिंग नहीं आती, तब आपको खासा मुश्किल भी हो सकती है। 

हम तो धन्य मानते हैं उन रिपोर्टर्स को जिन बेचारों को अपने देश से ज्यादा दूसरे देशों की चिंता सताए जा रही है। आख़िर इतना वक्त किसके पास है जो अपने देश की समस्याओं को छुपा कर दूसरे देश की समस्याएं अपने चैनल पर चलाएं। परंतु हमारे देश की मीडिया सार्वदेशिक है। उसे अपने देश के साथ साथ समूचे विश्व की चिंता सताए जा रही है। किस देश में कितनी गरीबी है ? क्यों है ? और यह कैसे खत्म की जा सकती है। ये अपने देश की मीडिया बखूबी जानती है। अपने देश के कुछ न्यूज़ चैनल्स सरकार की हज़ारों कमियों को भी छुपाने का गुर सीख कर आए हैं।

उम्मीद है और निश्चित रूप से आशा भी है कि भारतीय पत्रकारिता और यहाँ के कुछ न्यूज़ चैनल्स अपने इस अनूठे और अप्रतिम अंदाज़ को इसी तरह जारी रखेगे जिससे आने वाले समय में भारत में पल रही मूलभूत समस्याएं छुप जाएं और हम और हमारा देश पुनः विश्व भर में स्वर्णिम पहचान बना सके।

©  प्रियांशु “प्रिय”
मो. 9981153574

अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...