रविवार, 18 सितंबर 2016

कविता - ' नमन है तुझको हिन्दुस्तान'

      कविता 

नमन है तुझको हिन्दुस्तान

नव प्रभात की स्वर्णिम किरणें ,करती नित्य शृंंगार।    
ऊंचे-ऊंचे पर्वत सुंदर, बने मेखलाकार ।
झर-झर करते निर्मल झरने,देते पांव पखार ।
इस धरती की सुंदरता ने दिए यही उपहार। 
गंगा-यमुना का अमृत जल ,करे नित्य यश गान।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान...।

ब्रह्मपुत्र, कावेरी, सरिता कल-कल बहती जाती ।
बढ़े चलो तुम मंजिल पथ पर,पल-पल कहती जाती ।
देश प्रेम की अमर कथाएँ,नया जोश भर देतीं ।
यही ऊर्जा स्फूर्ति ही ,दुश्मन को हर लेतीं।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों से,सदा गूंजते ज्ञान।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान...।

लेकिन अब अफसोस हो रहा, वर्तमान परिदृश्यों पर ।
शर्मनाक जो घटित हो रहे, हालातों और दृश्यों पर।
जन-गण-मन है त्रसित आजकल, देख नित्य हालातों को ।
भ्रष्ट और लाचार व्यवस्था,होते निस दिन घातों को ।
जिसके सर पर भार देश का, वो बस करते है आराम ।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान ।

✒ प्रियांशु कुशवाहा 
शा० स्ना० महाविद्यालय ,
  सतना ( मध्यप्रदेश) 


कविता - ' उसको ही मंजिल मिलती है "

          ( कविता )

  " उसको ही मंज़ि‍ल मिलती है "
                       
हार मान कर बैठ गए जो, कभी नहीं वे बढ़ते हैं ।
उसको ही मंजिल मिलती है ,जो कठिन राह पर चलते हैं ।

नन्हीं चीटी धीरे-धीरे,पर्वत चोटी लेती चूम।
गिरती और सम्हलती क्रमशः,नहीं देखती पीछे घूम ।
संघर्षों को आत्मसात कर,पग में कभी न डरते हैं ।
उसको ही मंजिल......

तिनका-तिनका खोज-खोजकर,चिड़िया अपना नीड़ बनाती ।
हार मान कर वह थकती जो , नन्हें चूजे कहाँ सुलाती ।
श्रम ही जिनका लक्ष्य भला, वह कहाँ कभी भी थकते हैं । 
उसको ही मंजिल ......

इसलिए अब चलो साथियों ,सीखें अथक परिश्रम करना । 
यही हमारा मूल मंत्र हो, सीखें हर पल मेहनत करना ।
जिसने भी इसको अपनाया , वो कभी न हारा करते हैं ।
उसको ही मंजिल........

-  प्रियांशु कुशवाहा  
  डिग्री कालेज, सतना
   मो. 9981153574

चैत्र महीने की कविता

  चइत महीना के बघेली कविता  कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...