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सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

हिंदी रचना - '' जाने कितने धंधे होते ''

     जाने कितने धंधे होते 


जाने कितने धंधे होते,

            कुछ अच्‍छे, कुछ गंदे होते। 

जिन‍की भूख ग़रीब का खाना,

            वो सारे भिखमंगे होते। 

झूठ को देखे और न बोलें,

            जो गूँगे और अंंधे होते। 

बुरा भला न बोलो उनको,

            जिनके गले में फंदे होते। 

ये जो शेर बने फिरते हैं,

            दो कौड़ी के बंदे होते। 


✒ प्रियांशु कुशवाहा  

        सतना ( म प्र )

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