जाने कितने धंधे होते
जाने कितने धंधे होते,
कुछ अच्छे, कुछ गंदे होते।
जिनकी भूख ग़रीब का खाना,
वो सारे भिखमंगे होते।
झूठ को देखे और न बोलें,
जो गूँगे और अंंधे होते।
बुरा भला न बोलो उनको,
जिनके गले में फंदे होते।
ये जो शेर बने फिरते हैं,
दो कौड़ी के बंदे होते।
✒ प्रियांशु कुशवाहा
सतना ( म प्र )
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