सोमवार, 31 दिसंबर 2018

सबको नया साल मुबारक

कविता-

( सबको नया साल मुबारक )

सूरज ने फिर आँखें खोली,
ये धरती तब उससे बोली।
बहुत रोशनी फैलाते हो,
ख़ुद ही ख़ुद में इतराते हो।
उनके घर भी लाओ सवेरा,
जिनको अंधियारों ने घेरा।
जिसने घर के दिये बुझाए,
उनको प्रात:काल मुबारक..

           सबको नया साल मुबारक...

सिसकी भरती आँख बेचारी,
ख़ूब भरी इसमें लाचारी।
ख़्वाब हमारे टूट गए सब,
अपने सारे रुठ गए सब।
जिनकी बातें ख़ूब निराली,
उनके हाथों ज़हर की प्याली।
हम उत्तर ही खोज रहे हैं,
भेजे कोई सवाल मुबारक..

           सबको नया साल मुबारक....

आपस में हो भाईचारा,
प्रेम की बहती रहे ये धारा।
खुशियों से भी यारी हो,
और मुहब्बत सारी हो।
हर नफ़रत को जाएं भूल,
बन जाएँ उपवन के फूल।
हर मुस्काते गालों पर जो,
लग जाए गुलाल मुबारक...

           सबको नया साल मुबारक...

© प्रियांशु "प्रिय"
9981153574

<script data-ad-client="ca-pub-6185663653183156" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

चैत्र महीने की कविता

  चइत महीना के बघेली कविता  कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...