शनिवार, 19 जुलाई 2025

तमिल ग्रंथ 'तिरुक्कुरल' का बघेली अनुवाद

                     🪷 तमिल ग्रंथ तिरुक्कुरल और बघेली का संगम 🪷

केंद्रीय शास्‍त्रीय तमिल संस्‍थान के द्वार पर....

देशभर से आए विभ‍िन्‍न भाषाओं के विद्वान



समापन समारोह में वक्‍तव्‍य देते हुए कवि प्रियांशु 

समापन समारोह में वक्‍तव्‍य देते हुए कवि प्रियांशु साथ ही मंचासीन अतिथि‍ 


समापन समारोह में वक्‍तव्‍य देते हुए कवि प्रियांशु







9 से 15 जुलाई 2025 तक चेन्नई स्थित केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान (CICT) में प्रसिद्ध तमिल ग्रंथ ‘तिरुक्कुरल’ की विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद समीक्षा हेतु एक विशेष कार्यशाला आयोजित हुई। सौभाग्य की बात है कि मुझे बघेली भाषा के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया। पूरे भारत से आए विद्वानों के साथ मिलकर इस ऐतिहासिक ग्रंथ की गहराई को समझना और अपनी भाषा में उसका मूल्यांकन करना एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। इस अवसर पर मैं संस्थान के निदेशक प्रो. के. चंद्रशेखरन सर, रजिस्ट्रार डॉ. आर. भुवनेश्वरी मैम, मद्रास विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सरस्वती मैंम, प्रो. गोपालकृष्णन सर तथा आयोजन समन्वयक डॉ. अलगुमुत्थु वी. सर का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। जिन्होंने इस ग्रंथ को विभिन्न भाषाओं के साथ जोड़ने हेतु विचार किया। 

गर्व है कि उत्तर भारत की भाषाएं अब धीरे-धीरे दक्षिण भारत में भी सुनी और समझी जा रही हैं। बघेली के माध्यम से 'तिरुक्कुरल' से जुड़ना मेरे लिए केवल एक दायित्व नहीं बल्कि आत्मिक सुख का अनुभव रहा।‌ शीघ्र ही 'तिरुक्कुरल' का बघेली अनुवादित संस्करण प्रकाशित होगा।

CICT की पूरी टीम का हृदय से धन्यवाद। ❤️


Central Institute of Classical Tamil 

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बघेली कविता - कक्‍कू के परधानी मा

कक्कू के परधानी मा

खासा दच्चा लागत है अउ कादव होइगा पानी मा
रोड नहीं बन पाई असमौं , कक्कू के परधानी मा।

कादव कीचर मा रेंग रेंग, लड़िका बच्चा स्कूल जायं।

गामन के यहै समस्या का, नेताजी रोजै भूल जायं।

गाड़ी वाहन से निकरय वाला, अंतरे दुसरे गोड्डाय रहा।

घिनहे रस्ता अउ हीला मा, पहिरे ओन्हा लेथराय रहा। 

आवेदन उनखे लघे जाय त, गारी बरसय बानी मा।

रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा।


जब चुनाव के बेरा आबय, घर घर माहीं आबत हें।

बीस मेर के वादा कइके, वोट ईं सबसे मागत हें।।

जीत गें जबसे अपने काहीं, देउता मानय लागे हें।

इनहिंन के वोटर अब इनहीं, घिनहे लागय लागे हें।

तनै लिहिन दस मंजिल आपन, जनता रहिगै छान्ही मा।

रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा। 


सीधी सतना रीमां सबतर, गांव गांव या हाल रहै।

सुनय नहीं कोउ इनखर, जनता रोबय बेहाल रहै।।

सुरुक लिहिन सरकारी पइसा, सोमय टांग पसारे।,

भोग रही ही भोगय जनता, धइके हाथ कपारे।

कवि प्रियांशु लिखत हें कविता, बाचैं रोज कहानी मा।

रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा। 


- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
( 19 जुलाई 25 )






कविता- जीवन रोज़ बिताते जाओ

       जीवन रोज़ बिताते जाओ                                                                                भूख लगे तो सहना सीखो, सच को झूठा ...