गुरुवार, 27 अगस्त 2020

व्यंग्य ~ ( हम और बेचारी मीडिया )

 

व्यंग्य
-

( हम और बेचारी मीडिया )

अब सब कुछ पहले जैसा रहा ही नहीं। कितने खूबसूरत दिन हुआ करते थे ना आदमी के पास मोबाइल था, ना टीवी, ना ही इतनी बेहतरीन टेक्नोलॉजी जो आज सबके पास उनकी जेब में ही उपलब्ध है। अरे भई! जब हमारे पास यह सब नहीं था तब भी तो लोग अपना काम कर रहे थे। तो क्या जरूरत थी इतना आगे बढ़ने की ? मोबाइल आने से चिट्ठियों का ज़माना जरूर खत्म हुआ है, लेकिन अब श्यामू बेचारा अपनी प्रेमिका मनीषा से मिलने नहीं जा पाता। जब भी ऐसा अवसर बनता तो बेचारे का कोई ना कोई काम आ जाता या कोई फोन करके उसे बुला लेता और मनीषा से मिलने की जगह न जाने उसे कितनों से मिलना पड़ जाता। प्रेमी और प्रेमिका के साथ सबसे बड़ी समस्या यही हो गई है कि पहले तो एक प्रेमी की एक ही प्रेमिका हुआ करती थी परंतु मोबाइल आ जाने के कारण ना जाने कितनों को एक साथ समेट कर चलना पड़ता है। तकनीक का युग तो उन दिनों भी था। हम और आप रेडियो सुनकर मनोरंजन या समाचार का आनंद भी ले सकते थे और देश - दुनिया की घटनाओं पर नज़र रख सकते थे। पर अब लोग टीवी या मोबाइल पर ही समाचार देखना बड़ा पसंद करते हैं। बेचारे रेडियो के साथ बड़ी समस्या हो गई। रेडी होते ही आउट होना पड़ा। मैंने ऊपर रेडियो में मनोरंजन और समाचार सुनने की बात कही है। परंतु वर्तमान परिदृश्य को देखकर यह दोनों एक दूसरे के समकालीन ही नज़र आते हैं और हों भी क्यों ना जबसे बेचारे रेडियो का स्थान टी.वी. अथवा मोबाइल ने लिया है तबसे समाचार मनोरंजन और मनोरंजन समाचार एक जैसे ही हो गए हैं। अब तो बच्चों को मनोरंजन करना हो य कोई हास्यास्पद वीडियो देखने हो तो वह भी छोटा भीम, सोनपरी य शक्तिमान नहीं देखते। वह भी सोचते हैं चलो यार आज किसी न्यूज़ चैनल में फाइटिंग चल रही होगी वही देख कर ही मनोरंजन करते हैं। 

हमारे पड़ोस में राजेश नाम के 1 मित्र रहते हैं। उम्र यही कोई 20-21 साल की होगी। बेचारे पैसों के अभाव के कारण घर बैठे ही किसी बड़ी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। उतनी सुविधाएं मिल नहीं पाती हैं तो एक दिन उन्होंने एक मित्र को फोन लगाया और कहा -

" रंजीत भाई ! कोई न्यूज़ चैनल बताइए जिससे हमारे करंट अफेयर की तैयारी यहीं से हो जाया करें "

रंजीत भाई ने राजेश जी को कोई 7-8 चैनलों के नाम बताएं और कहा- “आप मनोरंजन के साथ-साथ करंट अफेयर की तैयारी यहीं से कर सकते हैं।” राजेश ने धन्यवाद बोल कर तुरंत ही फोन काटा और टी.वी. चालू कर रंजीत के बताए हुए न्यूज़ चैनल सर्च करने लगे। टी.वी. चालू करते ही बेचारे राजेश बड़ी असमंजस भरी स्थिति में पड़ गए। एक बड़े से न्यूज़ चैनल के स्क्रीन पर लिखा आ रहा था।

" प्रधानमंत्री इमरान से आखिर क्यों हैं उनकी बीवी नाराज़..जानने के लिए देखिए आज रात 10 बजे..."

राजेश जी को लगा हो सकता है कोई गलत न्यूज़ चैनल लग गया हो। उन्होंने फिर चैनल बदला और एक नया न्यूज़ चैनल लगाया इस बार उनकी स्क्रीन पर लिखा आया।

" क्या चीन में एलियन गाय का दूध पीते थे ? ..जानने के लिए देखिए आज शाम 5 बजे सिर्फ और सिर्फ फलाना चैनल पर..।"  बेचारे राजेश जी जब भी कोई न्यूज़ चैनल लगाते ऐसी ही खबरें सामने आने लगती। उन्होंने तुरंत बाद टी.वी. बंद कर दिया और सोचने लगे- मैंने तो रंजीत भाई से करंट अफेयर के बारे में पूछा था। वह तो इमरान और उसकी बीवी के अफेयर के बारे में जानकारी देने वाले चैनल का नाम बता कर गए हैं। 

भुखमरी, बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा, गरीबी इत्यादि यह सब तो देश में हमेशा ही रही है। चाहे उस वक्त किसी की भी सरकार रही हो। न्यूज़ चैनल वाले भी चाहते हैं कि इन समस्याओं को दिखाकर पुनः समाज के सामने उजागर क्यों करें। स्थिति तो अब ऐसी हो गई है कि पहले लोग झूठ बोलते थे और मीडिया सच ढूंढ कर लाती थी और अब मीडिया झूठ बोलती है और लोग सच ढूंढने का काम करते हैं। खैर ! जिसकी सरकार में देश की मूलभूत समस्याएं टीवी पर नहीं आ रही है, वही चैनल अच्छी खासी टी.आर.पी बटोर रहे हैं। अब भला पैसा और नाम कौन नहीं कमाना चाहता है। स्थिति तो सत्यवादियों की ख़राब है जो बेचारे इन समस्याओं को टीवी में दिखाना चाहते हैं। उनको सोशल मीडिया में ट्रेंड करके गालियां दे दी जाती हैं और भला सच्ची और अच्छी खबरें आज सुनना ही कौन चाह रहा है। ज्यादातर लोग तो हवा की ओर चलना ही पसंद करते हैं। 

मुझे व्यक्तिगत रूप से किसी न्यूज़ चैनल से लगाव या घृणा नहीं है, और न ही मैं इतना समाचार सुनता हूँ लेकिन कुछ चैनल के एंकर इतने खतरनाक तरीके से बोलते हैं-

 “ गौर से देखिए यह चेहरा ! हो सकता है आपके इर्द-गिर्द ही छुपा हो..” 

ठीक ऐसा सुनते ही बगल में बैठे पिताजी को यही महसूस होता है कि उनके ही बेटे ने ही इस संगीन वारदात को अंजाम दिया है। बेरोजगारी वास्तव में अपनी चरम सीमा पार कर रही है लेकिन इसमें बेचारी सीधी-सादी और नादान सरकार को दोष देना ग़लत है। अब न्यूज़ चैनल वालों का ही उदाहरण ले लीजिए इतनी बेरोजगारी भरी स्थिति में उनके रिपोर्टर्स भी तो कमाई कर रहे हैं, हाँ! लेकिन उन्होंने चाटुकारिता का बेहद महत्वपूर्ण और आवश्यक कोर्स भी किया है। अगर आप सत्य बोल रहे हैं य आपको चाटुकारिता भरी रिपोर्टिंग य एंकरिंग नहीं आती, तब आपको खासा मुश्किल भी हो सकती है। 

हम तो धन्य मानते हैं उन रिपोर्टर्स को जिन बेचारों को अपने देश से ज्यादा दूसरे देशों की चिंता सताए जा रही है। आख़िर इतना वक्त किसके पास है जो अपने देश की समस्याओं को छुपा कर दूसरे देश की समस्याएं अपने चैनल पर चलाएं। परंतु हमारे देश की मीडिया सार्वदेशिक है। उसे अपने देश के साथ साथ समूचे विश्व की चिंता सताए जा रही है। किस देश में कितनी गरीबी है ? क्यों है ? और यह कैसे खत्म की जा सकती है। ये अपने देश की मीडिया बखूबी जानती है। अपने देश के कुछ न्यूज़ चैनल्स सरकार की हज़ारों कमियों को भी छुपाने का गुर सीख कर आए हैं।

उम्मीद है और निश्चित रूप से आशा भी है कि भारतीय पत्रकारिता और यहाँ के कुछ न्यूज़ चैनल्स अपने इस अनूठे और अप्रतिम अंदाज़ को इसी तरह जारी रखेगे जिससे आने वाले समय में भारत में पल रही मूलभूत समस्याएं छुप जाएं और हम और हमारा देश पुनः विश्व भर में स्वर्णिम पहचान बना सके।

©  प्रियांशु “प्रिय”
मो. 9981153574

बघेली क‍विता - दादू खड़े चुनाव मा

बघेली क‍विता दादू खड़े चुनाव मा       कर्मठ और जुझारु नेता,             बिकन रहे हें दारु नेता। एक बोतल सीसी बहुँकामैं,            बोट खरीदै...