भूख लगे तो सहना सीखो,
सच को झूठा कहना सीखो।
दर्द उठे तो कुछ मत बोलो,
पीड़ाओं संग रहना सीखो।
जिनके पॉंव दबी हो गर्दन,
बस उनके गुण गाते जाओ....
जीवन रोज़ बिताते जाओ....
पढ़ना लिखना ठीक नहीं है।
मिलती भी कुछ सीख नहीं है।
चोरी और डकैती अच्छी,
कम से कम ये भीख नहीं है।
सदा सुरक्षित रहोगे साथी,
उनके पॉंव दबाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ...
नेताओं के तलवे चाटो।
ज़हर मिलाकर पानी बाटो।
जो अपनी आवाज़ उठाएँ,
पहले उनकी गर्दन काटो।
सीधे सादे लोगों को तुम,
ऐसे ही लतियाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ...
बेमतलब की भाषा बोलो,
गली गली तलवारें खोलो,
बहे जिधर नफ़रत की ऑंधी,
तुम भी उसी दिशा में हो लो,
नेकी करके क्या कर लोगे ?
लूट लूट कर खाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ....
- कवि प्रियांशु 'प्रिय' सतना ( मध्यप्रदेश )