कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा।
लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा।
मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे झांकैं।
कुछ जन बइठ डेरइयन माही,बच्चन काहीं ताकैं।
राई मसुरी चना कटरिगा,अब गोहूं के बारी।
खेतन माहीं चरचरायके,लगी कटाई जारी।
भिंसारेन से जागै मन ई,बोलि न पाबै कउआ।
महुआ बिनै जांय घर भरके,लइके टोपरी झउआ।।
टेसुआ लहलहायके फूला,सेमर है गमरान।
पत्ता सब हेरान हे देखी,फूलै फूल जुहान।
मूड़े बोझा धरे बहुरिया देखी ,क इसन हीठै टनमन।
छम छम छम छम पायल बाजै,होइजाय हरियर तन मन।
हरवेस्टर से होय कटाई जिनखे खेती जादा।
लंबी मूछ मुडै़ठी बाधे,बागि रहे है दादा।
चैत महीना लगै सोहामन,मन मा खुशी जगाबैं।
किहिस किसान परिश्रम जेतना,व ओतनै फल पाबै।
एहिन से है सब किसान के साल भरे के तोरा।
कुलुकैं लगी घरौ के मनई,अन्न अइ भर बोरा।।
कहै प्रियांशु धन्न किसनमे,लेई मोर प्रणाम।
तोहरेन मेहनत से सब पामै,जीवन मा आराम।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'