शनिवार, 18 जनवरी 2020

बघेली कविता || फूहर मेहरिया || कवि सैफुद्दीन सैफू जी ||

बघेली के महाकवि सैफुद्दीन सिद्दीकी सैफू जी की एक हास्य कविता-

( फूहर मेहरिया )

खुभुर खुभुर जींगर खजुआमै,जुआं लीख झहरांय‌।
ओढ़ना लत्ता रहैं कीट अस,चीलर खूब देखांय।।

कजरौटा भर काजर आंजे,मुह देखाय जस पइना।
टिकुली झरका कंठी बांधे,साजे फुटहा अइना।।

सोबत मा लारौ चिचुआमै,छिकर रजाई पोछैं।
रोय धोयके जेमन बनमै,ताहेउ सान निपोचैं।।

भात बनामै अरा रोट हस,दार अलोन देखाय।
तरकारी मा मिरचै मिरचा,खाय अउर सिसिआय।।

पोछै नाक पिसानौ माड़ै,लीवर रहैं बहाये।
भीतर लुकके करै कलेबा,पहिलेन बिना नहाये।।

हांथ गोड़ मा मइल जमा है,धोबत मा सकुचांय।
सास सिखापन देय कुछू त,दउरै खाव चबाव।।

मन्सेरू का गारी देहै,रोज काठ ब इठामै।
अधिक जो गुस्सा भई कबौ त,चिटका घाल जरामैं।।

टोला मा जब बागै जइहैं,हीठैं धूर उड़ाबत।
कुआ तलाब बिदुरखी मारैं,रहै रात दिन गाबत।।

छीकैं त लड़िका जंजकामै,हंसैं कुकुरबा भोकै‌।
बात करै त जोर जोर से,टोलौ बाले टोकैं।।

होय घोड़चढ़ा ओहू भर का,कबहूं नहीं डेरांय।
झगर होय त बात बात मा,मन इन से टेड़ुआंय।।

सबै कुलक्षन बाढ़ी बेढ़न,ई फूहर कहबामै।
"सैफू" भाखैं ई मेहरारू उढरी जाय औ गामै।।

 रचनाकार ~ कवि श्री सैफुद्दीन सिद्दीकी जी।


( कविता सुनने के लिए नीचे दी हुई लिंक में टच करें )
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बघेली कविता || फूहर मेहरिया || कवि सैफुद्दीन सिद्दीकी जी ||






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