सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

कविता - ' बढ़ बटोही '

कविता 

' बढ़  बटोही '


लक्ष्‍य के सोपान पर तू चढ़ बटाेही,

बढ़ बटोही ।।


व्‍योम को जा चूम ले,

जग ये सारा घूम ले।

कर दे विस्‍मृत हर व्‍यथा को,

मग्‍न होकर झूम ले।

जा वि‍पिन में रास्‍तों को,

तू स्‍वयं ही गढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही........


गिरि‍ नहीं है न्‍यून है,

है कि जैसे शून्‍य हैै।

कष्‍ट हैै भयभीत जिससे,

हाँँ वो तेरा खून है। 

और लिख - लिख गीत पथ के,

खूब उनको पढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही.........


✒ प्रियांशु ' प्रिय '

      सतना ( म. प्र. ) 




       

हिंदी रचना - '' जाने कितने धंधे होते ''

     जाने कितने धंधे होते 


जाने कितने धंधे होते,

            कुछ अच्‍छे, कुछ गंदे होते। 

जिन‍की भूख ग़रीब का खाना,

            वो सारे भिखमंगे होते। 

झूठ को देखे और न बोलें,

            जो गूँगे और अंंधे होते। 

बुरा भला न बोलो उनको,

            जिनके गले में फंदे होते। 

ये जो शेर बने फिरते हैं,

            दो कौड़ी के बंदे होते। 


✒ प्रियांशु कुशवाहा  

        सतना ( म प्र )

बघेली कविता - ' हुसियारी नहीं आबय '

              बघेली कविता - 


जउने दिना घर मा महतारी नहीं आबय,

जानि ल्‍या दुअरा मा ऊजियारी नहीं आबय । 


जउन खइथे अपने पसीना के खइथे,

हमरे इहाँँ रासन सरकारी नहीं आबय । 


ठाढ़ के मोगरा टेड़ कइके देखा , 

बेसहूरन के माथे हुसियारी नहीं आबय । 

 

कब्‍जाय लिहि‍न उँईं सगली जाघा जमींन,

अब अर्जी लगाए मा पटवारी नहीं आबय । 


द्रौपदी के धोतिया के खीचै दुसासन,

कलजुग मा कउनव गिरधारी नहीं आबय ।  


- प्रियांशु कुशवाहा 'प्रि‍य' 

मोबा; 9981153574                                               

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