शनिवार, 26 अगस्त 2023

कारगिल दिवस पर कविता

 कारगिल दिवस पर कविता 

वीर सैनिकों पर मैं कोई श्रेष्ठ कविता लिख सकूँ ये हिम्मत मेरी कलम में नहीं है परंतु अपने रचनात्मक सहयोग से उन अमर शहीदों को श्रद्धा सुमन तो अर्पित कर ही सकता हूँ। जिनके कारण हम सब चैन की नींद सो पाते हैं। 26 जुलाई 2023 को 24वाँ कारगिल दिवस समारोह विट्स कॉलेज, सतना में मनाया गया। जिसमें कई सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए साथ ही मैंने भी सैनिकों के सम्मान में अपने शब्द पुष्प अर्पित किए। सुनिए 28 ये कविता...... ❤️


कारगिल दिवस पर कविता 


कविता -

( वीर जवान )

वीर जवानों के चरणों में, आओ शीश नवाएँ हम।
इनके ही सम्मान की खातिर, कारगिल दिवस मनाएँ हम।

घर छोड़ा परिवार को छोड़ा, देश की खातिर चले गए।
शौर्य और साहस से निर्मित, चट्टानों से ढले गए।
इनके भीतर शेर-सा बल है, फौलादों-सा सीना है।
देश की रक्षा सबसे ऊपर, क्या मरना क्या जीना है।
यही हमारी शक्ति हैं और इनसे ही जी पाएँ हम...
इनके ही सम्मान की खातिर......

यही पिता के स्वप्न सजाते, माँ के राजदुलारे हैं।
बहनों के सब हृदय में बसते, घर के ये ध्रुव तारे हैं।
स्नेह यही और प्रेम है इनका, रग में साहस भरता है।
दुश्मन आँख मिलाने पर भी, थरथर थरथर डरता है।
यही जीत हैं देश की अपने, इनसे विजय ही पाएँ हम।
इनके ही सम्मान की खातिर......

ये मनोज और विक्रम जैसे, जज़्बा दिल में पाले हैं।
सर कट जाए, झुके नहीं, यह हिम्मत रखने वाले हैं।
देश की खातिर मर मिटने की, कसम जिन्होंने खाई है।
सौ सौ नमन करूँ मैं उनको, जिसने जान गवाई है।
राष्ट्र है गर्वित शान में जिनके, उनको शीश झुकाएँ हम।
इनके ही सम्मान की खातिर......

© प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
       सतना ( म. प्र. )



कारगिल विजय दिवस
VITS COLLEGE, SATNA







बघेली कविता- हमरे यहां आजादी ही ?

 बघेली कविता-
                    हमरे यहां आजादी ही ?

रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'

सबके सउहें नीक कही जे, ओहिन के बरबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है।

मजदूरन के चुअय पसीना,तब य भुइयाँ महकत ही,
सोन चिरइया बड़े बिहन्ने, सबके दुअरा चहकत ही।
रंग बिरंगा फूल का देखा, नद्दी देखा, हरियाली,
केतना सुंदर देश हबय य, चारिउ कइती उंजियाली।
सीमा माही लगे हमय जे, उनहिंन से है देश महान,
हमरे तुम्हरे पेट के खातिर, ठंडी गर्मी सहय किसान।
चोर, डकैती छुट्टा बागैं, उनहिंन के आबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है....

गाँधी जी के फोटो काहीं, चारिउ कइती देखित हे,
सत्य अहिंसा बिसर गयन है, यहै मनै मन सोचित हे।
देश के खातिर चढ़िगें फाँसी,सुन्यन भगत के अमर कहानी,
चंद्रशेखर आजाद छाड़िगें,भुइयाँ माहीं अमिट निशानी।
कमलादेवी, लक्ष्मीबाई , अउर सरोजिनी, झलकारी,
माटी खातिर जान दइ दिहिन, बहिनी,बिटिया,महतारी।
चार ठे माला पहिर के भइलो,बाँट दिहिन परसादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...

भाईचारा,साहुत बिरबा,जड़ से उईं निरबार दिहिन,
जाति धरम का आँगे कइके, मनइन काहीं मार दिहिन।
निबला काहीं मिलै न रोटी, फुटहे घर मा सोबत है,
निकहें दिन कइसा के अइहैं, यहै सोच के रोबत है।
गाड़ी, मोटर, बंगला वाले, अति गरीबी झेलत हें,
सबै योजनन के पइसा का, उईं साइड से पेलत हें।
लूट के पइसा भागें निधड़क, उनहिंन के अब चाँदी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...

 रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
सतना , ( मध्यप्रदेश )   MOB - 9981153574



अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...