कविता -
' वंचित होकर सुविधाओं से '
वंचित होकर सुविधाओं से,देश की जनता रोती है।
ये कैसी सरकार है साहब,बारह महीने सोती है।
प्रमाण पत्र वो गौ रक्षा का,घर घर लेकर जाते हैं।
और लावारिस गायों की हम,रोज ही लाशें पाते हैं।
पर्यावरण हो शुद्ध जरूरी, पौधे रोज लगाएंगे।
देखरेख भगवान भरोसे, फोटो तो खिचवाएँगे।
ढेर दिखावे दुनियाँभर के, घर के भीतर होते हैं,
और गरीब बेचारे अपनी, झोपड़ियों में सोते हैं।
हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई भाई भाई कहते हैं।
लेकिन मन में भेद लिए सब लड़ते भिड़ते रहते हैं।
है जिनके बंगला गाड़ी, क्या वहीं गरीबी होती है ?
ये कैसी सरकार है साहब........
अखबारों से टी.वी. तक सब अच्छाई ही लगती है।
झूठ परोसा जाए फिर भी सच्चाई ही लगती है।
देश ये भूखा मर जाए पर पिक्चर इन्हें दिखानी है,
मुद्दों से भटकाने की यह अद्भुत अजब कहानी है।
सच को सच कहने वाले ही देशद्रोह में शामिल हैं,
लाश को काँधा देने वाले कहलाते सब क़ातिल हैं।
चोर, लुटेरे, डाँकू, दुश्मन, सब हैं कुर्ते के भेष में,
घोटालों का जन्म इन्हीं से, हुआ हमारे देश में।
इस भ्रष्टाचारी लोकतंत्र में, झूठ की पूजा होती है,
ये कैसी सरकार है साहब........
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