शनिवार, 7 जून 2025

गीत- हम बस यहाँ कुँवारे बैठे

 

हम बस यहाँ कुंवारे बैठे  



जीवन की  आपाधापी में, कुछ जीते कुछ हारे बैठे।
सब यारों की शादी‌ हो गई, हम बस यहाँ कुँवारे बैठे.......

साथ साथ सब पढ़े लिखे पर, न जाने कब बड़े हो गए।
पता नहीं ये लगा कि कब हम, अपने पैरों खड़े हो गए।
सबने छोड़ा गाँव और अब, देश विदेश में रहते हैं।
डॉक्टर और इंजीनियर हैं, ये अंग्रेजी में कहते हैं।
मोहन भाई दिल्ली में है, उसका अपना परिवार है।
दो छोटे बच्चे हैं उसके, पत्नी भी खूब होशियार है। 
व्हाट्सएप डी पी में देखा, बच्चे प्यारे प्यारे बैठे....
सब यारों की शादी‌ हो गई, हम बस यहाँ कुँवारे बैठे......

बात नहीं होती उससे पर, फेसबुक से ज्ञात हुआ‌ है।
राहुल भी हो गया वि‍वाह‍ि‍त, ब्‍याह उमा के साथ हुआ है।
बैंक मैनेजर है वह उसकी बीवी भी अधिकारी है।
रहते हैं भोपाल में दोनों, दो नौकर हैं एक गाड़ी है।
सूरज, माधव, कृष्‍णा, सोनू, सबने घर को छोड़ दिया है।  
वे सब शहर में रहते हैं और गाँव से नाता तोड़ दिया है।
राह देखते बेटवा की अब, पापा साँझ सकारे बैठे.....  
सब यारों की शादी‌ हो गई, हम बस यहाँ कुँवारे बैठे...... 



लेखन - 8 जून 2025                            - कव‍ि प्रियांशु 'प्रिय' 


  
 

 

 

 

  

 

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