जब चुनाव का समय आता है नेताओं और कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ गांवों में वोट मांगने और चुनाव का प्रचार - प्रसार करने निकलती हैं। उस भीड़ के अंतिम छोर में खड़ा गांव का वह गरीब भी रहता है जिसे एक वक्त की रोटी के लिए दिनभर खेतों में पसीना बहाना पड़ता है, जिसका सेठ के यहां पहले से ही हजारों का उधार है और अब वह भी उसे अन्न देने से इंकार कर देता है। अंत में उसे नेताओं के भाषण में ही भविष्य की रोटी, कपड़ा, घर, पानी, बिजली इत्यादि नज़र आने लगते हैं। वह भी उस प्रचार-प्रसार में अपना सर्वस्व देने लगता है। परंतु चुनाव होने के पश्चात, कुर्सी मिलने के बाद कोई नेता उस गरीब को देखना भी पसंद नहीं करता। इन सबको अपनी खूबसूरत सी कविता में ढालने का काम किया है स्व. सैफुद्दीन सिद्दीकी "सैफू" जी ने.... तो आइए सुनते है बघेली कविता "कुठुली मा वोट देखाय परी".....