( उनखे सरपंची मा )
केतना विकास भा उनखे सरपंची मा,,
मनई उदास भा उनखे सरपंची मा,,
गोरुआ अऊ बरदन का भूखे सोबायन,,
हमरौ उपास भा उनखे सरपंची मा,,
योजना भर नई नई सालै बगराइन,,
सबके विनाश भा उनखे सरपंची मा,,
मीठ-मीठ बोलि के लूटिन गरीब का,,
बहुतै मिठास भा उनखे सरपंची मा,,
मनइन से मनइन का रोजै लड़बाइन,,
फेरौ बिसुआस भा उनखे सरपंची मा,,
फांसी मा झूलत रोज पायन गरीब का,,
सबै के नाश भा उनखे सरपंची मा,,
© प्रियांशु 'प्रिय'
सतना ( म. प्र. )
मो. 9981153574