कविता -
( आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ )
ईर्ष्या की झोली से तम को मिटाकर,
प्रेम और वैभव की रोशनी जलाकर,
पलकों ने जिसको संजोए थे अबतक,
उन दुखी अश़्कों को मन से हटाकर,
इश्क़ की खुशबू को जग भर फैलाएँ..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..
हम सबके मज़हब में ज्ञान का संचार हो,
भाई से भाई तक आकाशभर प्यार हो,
आँखें प्रफुल्लित हो देखकर जिसे वह,
स्नेह की दुकानों का रोशन बाज़ार हो,
मुस्काते श़हर में हम शामिल हो जाएं..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..
सुमन सा सुगन्धित हो हरपल हमारा,
प्रीत का भी चमके घर घर सितारा,
महल भी रोशन हो हर दिये से लेकिन,
झोपड़ी तक आए दीप का उंजियारा,
मुहब्बत की फिर से फुलझड़ी जलाएँ..
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ..
© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर
महाविद्यालय, सतना ( म.प्र. )
मो. 9981153574
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें