व्यंग्य ~ ( महाअभियान )
इन दिनों पूरे देश में वैक्सीनेशन महाअभियान चल रहा है। साथ ही साथ हर जगह पौधरोपण भी बड़ी तेजी से हो रहा है। आप इसे महाअभियान पौधरोपण भी कह सकते हैं। पहली बार किसी महाअभियान का नाम सुन रहा हूँ। शायद जितने भी महाअभियान टाइप चीज़े होती हैं उन सब में खासा भीड़ लगती है। इन दिनों तो प्रत्येक सेंटर में वैक्सीन लगवाने के लिए सुबह से ही खचाखच भीड़ जमा हो रही है। उसमें भी कुछ लोगों को ही वैक्सीन लग पाती है। बाकियों को वैक्सीन खत्म होने की सूचना देकर वापस लौटा दिया जाता है। बिल्कुल यही स्थिति इन दिनों पौधरोपण में भी है। एक राष्ट्रीय स्तर का पौधा लगाने के लिए सांसद, विधायक से लेकर बड़े बड़े प्रतिनिधियों की आवश्यकता पड़ रही है। और भीड़ भी इतनी ज्यादा कि पौधा भी स्वयं को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझता। कोई भी पौधा हो, पौधरोपण के वक्त सबसे ज्यादा इज्जत और सम्मान उसीका होता है। तब क्या नेता और क्या अभिनेता। सबके सब उस अकेले पौधे के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं। पौधे के साथ एक फोटो के लिए तो कभी कभी बहुत भीड़ जमा हो जाती है। अब भला इतनी इज्ज़त और सम्मान किसे मिलता होगा देश में। जय हो हमारे देश के पौधों।हमारे ही क्षेत्र के एक महाविद्यालय में एक नेताजी को पौधरोपण के लिए बुलाया गया था। बगिया के कौने में २-३ नीम और पीपल के छोटे-छोटे पौधे रखे थे। उनको ही रोपित करना था। शायद ऐसा माना जाता है कि जिले का य अपने आसपास के क्षेत्र का नामचीन व्यक्ति हो ( खासतौर पे कोई नेता ) उसके शुभ हाथों से पौधरोपण करवाने से पौधा भी स्वयं को ज्यादा गर्वित महसूस करता है। थोड़ी ही मिट्टी के सहारे अपनी जिजीविषा को जीवंत किए हुए पीपल का पौधा नेताजी को वहीं से गुज़रते हुए देख रहा था। नेताजी पान चबाकर आए हुए थे और तुरंत वहीं बगिया में थूक भी दिया। जिसकी कुछ पीक उन पौधों पर पड़ी। लेकिन उसने भी यही सोचा कि जब शहर की जनता उनका लाख अन्याय सहती है तो मैं एक छोटा सा पौधा थूक की पीक तो सहन कर ही सकता हूँ। खैर ! थूकना तो ज़रुरी था। अब अगर वही पान चबा जाते और गटक लेते तो उनके भीतर तो बड़ी समस्या खड़ी हो सकती थी। जनता जनार्दन के साथ कुछ भी अनहोनी हो जाए वो चलता है लेकिन किसी पार्टी के नेता को थोड़ा बुखार भी आ जाए तो शायद आपको अंदाज़ा नहीं कि उस वक्त वो कितना चिंताजनक विषय हो जाता है। अपनी थूकन क्रिया के कुछ देर पहले ही माननीय नेताजी एक विद्यालय में स्वच्छता अभियान पर बच्चों को प्रमाण पत्र ही बाटकर आए हुए थे। भाषण की क्या अद्भुत कला है उनके भीतर। वैक्सीनेशन महाअभियान के गलियारे से गुज़रते हुए स्वच्छता अभियान के घर में चाय पीकर पौधरोपण महासभा तक का सफर उन्होंने अपनी अद्भुत भाषाशैली में तय किया था। इतना ही नहीं अगर किसी एक विषय पर बोलने को कहा जाए तो प्रिय नेताजी उसी विषय के बीच में अपनी पार्टी का प्रचार बेहद ही अद्भुत तरीके से कर देते हैं।
~ प्रियांशु 'प्रिय'