शनिवार, 21 सितंबर 2024

बघेली व्‍यंग्‍य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय

                                                                   बघेली कविता  

                                  हम सरकार से करी निवेदन 

चारिउ क‍इती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,

फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।

शासन केर व्‍यवस्‍था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,

थिरक-थ‍िरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।

हम जो बह‍ि‍रे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,

मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।

शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,

अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।

रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,

गड्ढौ माहीं थ‍िरक रहे हें, दीदी संघे दादा।

हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,

रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।

- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574

बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्र‍िय'

                                                            बघेली कविता -               

                                      डारिन खीसा घूंस


                                       

एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी

दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।

सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,

सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।

टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,

बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।

रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,

चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।

बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,

बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।

कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,

जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा खांय।

होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,

चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।

- प्रियांशु 'प्रिय' 

 मोबा- 9981153574

 

 

 

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