बुधवार, 9 अप्रैल 2025
चैत्र महीने की कविता
बघेली कविता - आसव के सरपंची मा
मंगलवार, 4 मार्च 2025
प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता
नई नवेली दुलहिन जइसा धरती करे सिंगार।
हरियाली के बिछा बिछौना,देखी सबतर हार।।
गोहू गजब गलेथा देखी,होइगा हबै जवान।
छप्पन इंची सीना कीन्हे,घूमै फिरै किसान।
सरसो राई ओड़िके पियरी,मंद मंद मुसकाय।
अरसी कलशा लिहे ठाढ़ ही,मन माहीं हरसाय।
मनमनाय के फूली अरहर,करहे अमिया आम।
चढ़ा बसंती रंग है देखी,सुबहौ दुपहर शाम।
तितली भौरा भनभनाय के लगे खूब मेड़रांय।
धरती सजी गजब के देखी,रितुराज गा आय।
ठंडी ठंड़ी हबा चलै जब,बिरबा लहरा लेय।
प्रकृति केर है गजब नजारा,जिउ हरियर करि देय।
चली गाँव मेड़़न मा बागी,खेतन माही घूमी।
गाँव केर पावन माटी का,चली चली सब चूमीं।
कहैं प्रियांशु स्वर्ग के दर्शन सब जन करी निसोच।
शिमला कुल्लू और मनाली,काहे जई निसोच।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
सतना (म प्र)
भाईचारा मरिगा दादू
- कवि प्रियांशु प्रिय
रविवार, 5 जनवरी 2025
मोबाइल की लत पर बघेली कविता
बघेली कविता
यातायात के नियम पर कविता
यातायात पर बघेली कविता
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
रविवार, 29 दिसंबर 2024
नई पुतउ के कहानी
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
अपने विंध्य के गांव
- प्रियांशु 'प्रिय'
सतना
नवरात्रि पर बघेली कविता
नवरात्रि पर बघेली कविता
शनिवार, 28 सितंबर 2024
बघेली हास्य कविता - बुलेट कार प्लैटीना - कवि प्रियांशु 'प्रिय'
बुलेट कार प्लैटीना
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
email - priyanshukushwaha74@gmail.com
बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता -
कइसा होय केबादा
सुना बताई सब गांमन मा कइसा
होय केबादा,
शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत
हें बेउहर जादा।
सचिव साहब आवास के खातिर बोलथें
हर दार,
ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई
बीस हजार।
आगनबाड़ी मा आबत ही लड़िकन
खातिर दरिया,
पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया
भंइसी छेरिया।
जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै
लाठी आरी,
बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस
खांय पटवारी।
सरकारी स्कूल मा देखन खूब मिलत
हैं ज्ञान,
कुछ मास्टर अउंघाय रहे हैं
कुछ त पड़े उतान।
कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,
- कवि प्रियांशु ‘प्रिय’
शनिवार, 21 सितंबर 2024
बघेली व्यंग्य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता
चारिउ कइती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,
फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।
शासन केर व्यवस्था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,
थिरक-थिरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।
हम जो बहिरे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,
मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।
शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,
अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।
रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,
गड्ढौ माहीं थिरक रहे हें, दीदी संघे दादा।
हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,
रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्रिय'
बघेली कविता -
डारिन खीसा घूंस
एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी
दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।
सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,
सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।
टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,
बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।
रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,
चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।
बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,
बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।
कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,
जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा
खांय।
होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,
चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
गुरुवार, 12 सितंबर 2024
बघेली कविता - 'बेरोजगार हयन'
बघेली कविता
बेरोजगार हयन
➨ प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा. 9981153574
गुरुवार, 18 जुलाई 2024
बघेली गीत - सबसे सुंदर, सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो
बघेली गीत
सबसे सुंदर, सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो
शहर भरे मा बाग लिहन हम, होइगा पूर उराव
हो
सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो।
चुल्हबा के पोई रोटी व, केतनी निकही लागय।
अउर कनेमन चुपर के मनई, हरबी हरबी झारय।
बनय गोलहथी कढ़ी मुगउरी, अतरे दुसरे टहुआ।
जाय बगइचा टोरी आमा, बिनी हमूं एक झहुआ।
सोंध सोंध महकत ही माटी, चपकय हमरे पाँव हो...
सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....
दिखन शहर मा मरैं लाग है, आपस मा भाईचारा।
सग भाई अब सग न रहिगें, होइगा उनमा बटवारा।
बजबजात है नाली नरदा, गेरे रहय बेरामी।
एक दुसरे का चीन्हैं न अब, होइगें ऐतना नामी।
दिखन तलइया गै सुखाय अब, छूँछ परी ही नाव हो...
सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोब. 9981153574
सतना ( म. प्र. )
चैत्र महीने की कविता
चइत महीना के बघेली कविता कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...

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बघेली के महाकवि स्वर्गीय श्री सैफुद्दीन सिद्दीकी ''सैफू'' जी का जन्म अमरपाटन तहसील के ग्राम रामनगर जिला सतना ( मध्य प्रदेश...
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बघेली कविता ~ ( उनखे सरपंची मा ) केतना विकास भा उनखे सरपंची मा,, मनई उदास भा उनखे सरपंची मा,, गोरुआ अऊ बरदन का भूखे सोबायन,, हम...
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कविता _ ( किसान ) अंधियारों को चीर रोशनी को जिसने दिखलाया है। और स्वंय घर पर अपने वह लिए अंधेरा आया है। जिसके होने से धरती का मन पावन...