BAGHELI ( बघेली ) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
BAGHELI ( बघेली ) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

चैत्र महीने की कविता

 चइत महीना के बघेली कविता 



कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा।
लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा।
मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे झांकैं।
कुछ जन बइठ डेरइयन माही,बच्चन काहीं ताकैं।
राई मसुरी चना कटरिगा,अब गोहूं के बारी‌।
खेतन माहीं चरचरायके,लगी कटाई जारी।
भिंसारेन से जागै मन ई,बोलि न पाबै कउआ।
महुआ बिनै जांय घर भरके,लइके टोपरी झउआ‌।।
टेसुआ लहलहायके फूला,सेमर है गमरान।
पत्ता सब हेरान हे देखी,फूलै फूल जुहान।
मूड़े बोझा धरे बहुरिया देखी ,क इसन हीठै टनमन।
छम छम छम छम पायल बाजै,होइजाय हरियर तन मन।
हरवेस्टर से होय कटाई जिनखे खेती जादा।
लंबी मूछ मुडै़ठी बाधे,बागि रहे है दादा।
चैत महीना लगै सोहामन,मन मा खुशी जगाबैं।
किहिस किसान परिश्रम जेतना,व ओतनै फल पाबै।
एहिन से है सब किसान के साल भरे के तोरा।
कुलुकैं लगी घरौ के मनई,अन्न अइ भर बोरा।।
कहै प्रियांशु धन्न किसनमे,लेई मोर प्रणाम।
तोहरेन मेहनत से सब पामै,जीवन मा आराम। - कवि प्रियांशु 'प्रि‍य'

बघेली क‍विता - आसव के सरपंची मा

बघेली कविता
आसव के सरपंची मा
आसव‌ के सरपंची माहीं,‌ तनिगा खासा बंगला,
सरकारी पैसा काहीं ईं, मसक लिहिन‌ ही सगला।

सचिव साहब के खासा जलवा, पहुड़े टांग पसारे,
खाय खाय गभुआर के पइसा, सोमैं थूथुन फारे।

हम पंचायत भवन मा देखन, बंद रहत है ताला,
गोरुआ भइसीं लोटि रहे हें, कोउ न पूछय वाला।

उहय भवन‌ के भीतर भइया, बइठ लाग हें दद्दी,
धइ के चिखना देशी‌ वाला, छानैं पउआ अद्धी।

ऊपर सेही जॉंच करैं जब, आबत हें अधिकारी,
उनहूं बइठिके इनखे संघे, पेलय खूब सोहारी।

बॉंच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके चार ठे बोरी,
बिकन‌ के कोटेदार कहत‌ हें, रातिके होइगै‌ चोरी।

घर सेहीं जनपद पंचायत, सबतर इनखर जलवा,
नीचे से ऊपर तक सलगे, छानैं पूड़ी हलवा।

केसे जाय गोहार‌‌‌ लगाउब, केसे करब शिकायत,
सब इनहिन के मनई आहीं, सांसद अउर विधायक।

कवि प्रियांशु कहत हें भाई, हम न लेबै नाव,
चली बताई अपनै पंचे, आय कउन व गाँँव। - कवि प्रियांशु 'प्रिय' सतना (म.प्र.)

मंगलवार, 4 मार्च 2025

प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता

 प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता  

नई नवेली दुलहिन जइसा धरती करे सिंगार।
हरियाली के बिछा बिछौना,देखी सबतर हार।।
गोहू गजब गलेथा देखी,होइगा हबै जवान।
छप्पन इंची सीना कीन्हे,घूमै फिरै किसान।
सरसो राई ओड़िके पियरी,मंद मंद मुसकाय।
अरसी कलशा लिहे ठाढ़ ही,मन माहीं हरसाय।
मनमनाय के फूली अरहर,करहे अमिया आम।
चढ़ा बसंती रंग है देखी,सुबहौ दुपहर शाम।
तितली भौरा भनभनाय के लगे खूब मेड़रांय।
धरती सजी गजब के देखी,रितुराज गा आय।
ठंडी ठंड़ी हबा चलै जब,बिरबा लहरा लेय।
प्रकृति केर है गजब नजारा,जिउ हरियर करि देय।
चली गाँव मेड़़न मा बागी,खेतन माही घूमी।
गाँव केर पावन माटी का,चली चली सब चूमीं।
कहैं प्रियांशु स्वर्ग के दर्शन सब जन करी निसोच।
शिमला कुल्लू और मनाली,काहे जई निसोच। - कवि प्रि‍यांशु 'प्रिय' सतना (म प्र)

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू, मनई हबय कसाई,
एक बीता के जाघा माहीं, लपटयं भाई भाई।

नहीं आय अब प्रेम प्यार कुछ, मनई है खिसियान,
सगला दिन बस पैसा केहीं पाछे है पछियान।

पइसै सेहीं बनय रहा है मनई खूब बेउहार,
पइसै वालेन केही जलवा उनह‍िंंन के तेउहार।

पइसै वालेन केहीं देखी, पाछे सगले बागय,
जेखर खीसा छूंछ रहथै, ओसे दूरी भागय।

पइसा देखि‍के नेरे अइहैं, साथी हेली मेली,
नह‍िं त दूरी रह‍िहैं तुमसे, भले बोलाबा डेली।

पइसा रही जो तुम्‍हरे ठइआं, दुश्‍मन भाई बोली,
नेता ओता गोड़न गिर‍िहैं, रूप‍िया अइसा डोली।

पइसै खातिर भटक रहा है, मनई सांझ सकारे।
सगला दिन व जिउ टोरथै , आंखीं काढ़े काढ़े ।।

कहैं प्रियांशु दिखन जमाना, बदला है धौं कइसा।
ओहिन कइती होंय सबय जन, भरा है जेखे पइसा।।

- कव‍ि प्रियांशु प्रिय

रविवार, 5 जनवरी 2025

मोबाइल की लत पर बघेली क‍विता

 मोबाइल की लत पर
बघेली क‍विता
 

                        
मोबाइल बिन नीक न लागै,बिलकुल खाना पीना।
ऐखे बिना न परै रहाई,मुश्किल होइगा जीना।
खटिया से उचतै सब मन ई मोबाइल का देखै।
वाट्साप ग्रुप फेसबुक देखि आपन आंखी सेंकै।
बंद परी ही टी वी घर मा,कोहू नहीं देखइया।
पूरी सउख करे मोबाइल, कुच्छ न पूछा भैया ।
मोबाइल मा देख बीडियो ,व्यंजन घाल बनामै।
मगन रहै मोबाइलै माहीं, दारौ भात जरामै।
आई फोन लिहे उई बागै,लाखन केहीं आबै।
बापन केर कमाई माहीं, काहे न चमकामैं।
इंस्टाग्राम फेसबुक देखैं घिनही घिनही रील।
घरहूं बाले कुछू न बोलै,दये है अहिमक ढील।
कुछ जन लड़िका ठीक करत हे,करतिउ हेमै पढ़ाई।
मोबाइलै से पढ़ै रात भर,सबतर होय बड़ाई।
कहैं प्रियांशु मोबाइल मा हमै नीक औ नागा।
निकहे निकहे चैनल देखा,आखी मूंद न भागा - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

यातायात के नियम पर कविता

यातायात पर बघेली कविता


भरर भुरुर अउ परर पुरुर तुम, अस गाड़ी भरउत्या है।
हाथ गोड़ टोरबाए भाई, रसपताल मा अउत्या है।

कालेजन से निकर्या भइलो,एक्सीलेटर पेल्या।
देखिके बिटियन काहीं गाड़ी, अधाधुंध तुम रेल्या।
बने रह्या तुम हैवी ड्राइवर, छाने‌ अद्धी पउआ।
रसपताल के फेर दवाई, चली‌ एक एक झउआ।।
हेलमेट नहीं बेसाह्या अबतक, खुल्ला मूड़ चलाया।
दुर्घटना का दिहा तू नेउता, आपन जान गबाया।।
मन‌ई धरन चलाबा भाई, गाड़ी अउ स्कूटी ।
नहीं त निपुरी थुथून थोभरा, हाथौ गौड़ौ टूटी।।
यातायात के नियम कायदा, ल्या तू सगला जान।
नहीं जो फसिहा चौराहा मा, कटबै करी चलान।।
लाल पियर हरियर बत्ती सब, देखे रह्या सचेत।
कबय रूकैं का, कबै चलय का, देती हैं संकेत।
धीम कइ लिहा गाड़ी आपन, जली जो पीली बत्ती।
लाल‌ लाल जो लाइट चमकी, बड़्या न एकव रत्ती।
जब रस्ता होई खाली एकदम, निकरैं केर तयारी।
हरियर बत्ती जली हो भैया, ट्रैफिक‌ लाइट निहारी।।
कहैं प्रियांशु सुना फलाने, मोर बात अब माना।
गाड़ी बाहन खूब चलाबा,नियम जो सगले जाना। 

- कवि प्रियांशु 'प्र‍िय' 

रविवार, 29 दिसंबर 2024

नई पुतउ के कहानी

नई पुतउ के कहानी


किन्हौ गोड़ पिरात है इनखर किन्हौ मूड़ पिराय‌।
किन्हौ चढ़ी बोखार है इनही,खानौ तक न खाय‌।
सास सकेलै काम घरे के,दस्स बजे तक सोमैं।
बड़ी बहाने बाज हई ईं,बोल देय त रोमैं।
मइके माहीं चारा छोलै,गोबर घाल उचामै।
ससुरे माहीं घिन लागत ही,थोभरा रोज फुलामैं।
अनटेढ़ी के बात करैं ई,मोबाइल भर गूलैं।
चमक चमक के रील बनामै,लाइक माही भूलैं।
सास बुढ़ीबा रोटी बनबै,इनही चढ़ी बेरामी।
दादू के त बात न पूछा,बहुतै हबै हरामी।
जमके लेय खूब उपरउझा,ओहिन कइती बोलै।
रंगा रहै दुलहिन के रंग मा, आगे पीछे डोलै।
रील मा भैया हंस के बोलै,अउचट थिरकै नाचैं ।
टोंक देय जो थोरकौ कोहू,कहतू हिबै कुलाचैं।
कहैं प्रियांशु अइसन दुलहिन जउने घर मा आबै‌।
मचा रहै रन जुज्झ हमेशा,मनई सुक्ख न पाबै। - कवि प्रियांशु 'प्रिय'


शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता 

अपने विंध्य के गांव


भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव।
केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव।

छाधी खपड़ा माटी के घर,सुंदर महल अटारी।
घास फूस के बनी मडइया,माटी केर बखारी।

घर मा मिलिहै सूपा छउआ, टोपरी,दोहनी गघरी ।
चली बहुरिया कलसा लइके,मूड़े मा धर गोन्हरी।

कक्कू मिलिहै अपना काहीं लै हाथे पइनारी।
लंबी मूछ मुड़ेठी बाधे,इनखर गजब चिन्हारी।

छोट बड़े के रहै कायदा आपस के ब्युहार।
हितुआरस के भाव जगामै,इहां केर तेउहार।

जून जमाना पलटी मारिस,बदलै लागे गांव।
कला संस्कृति गीत बिसरिगे बिसरै लागे भाव।

बिसरें खेलकूद सब दादू, खेलैं दिनभर पबजी।
चाउमीन पिज्जा के आगे, सोहाय न रोटी सबजी।

कहै प्रियांशु कविता माही कहा पुरनिया रीत।
बन्ना बन्नी कजरी हिदुली आल्हा बाले गीत।

- प्रियांशु 'प्रिय' 
सतना 

नवरात्रि पर बघेली कविता

 नवरात्रि पर बघेली कविता


सुनिल्या मोर गोहार 


दुर्गा मैया घरै बिराजा,सुनिल्या मोर गोहार।
हाथ जोड़िके करी चरउरी,बिनती बारंबार।

हम मूरूख जड़बोग हो माता,अकिल बाट नहिं थोरौ।
लउलितिया लै हमहूं मइया,दूनौं हाथ का जोरौं।

करी बघेली के हम सेबा,बर दीन्हें महतारी।
तोहरे बिना है कउन सहारा,सगला जीबन वारी।

टूट फूट अच्छर के माला,गुहिके हम्हूं चढ़ाई।
मैहर बाली देवी दाई,हम तोहका गोहराई।

तोहरे बिना आदेश के माई,पत्तौ भर न डोलै।
तोहरै किरपा होय जो मइया,गूंगौ निधड़क बोलै।

मांगी भीख हम्हूं विद्या के,हमरो कइत निहारा।
अइसय रोज बनाई कबिता,हमहूं का अब तारा।

जय जयकार लगाई सब जन कहैं प्रियांशु भाई।
ठोलकी अउर नगरिया लइके,चली भगत मिल गाई।


- कवि प्रियांशु 'प्रिय
   सतना ( म प्र )

शनिवार, 28 सितंबर 2024

बघेली हास्‍य कविता - बुलेट कार प्‍लैटीना - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

बघेली हास्‍य कविता

बुलेट कार प्‍लैटीना


घर मा भूंजी भांग न एक्‍कौ, ऊपर छाओ टीना 
लड़‍िका अउंठा छाप हबै, पै ताने सबसे सीना।

गुन के आगर नाव उजागर, गुटका पउआ सोटै,
बीच सड़क मता रहै अउ नाली नरदा लोटै।

सीधी बागय रीमा बागय, बागय सतना डिसटि‍क,
मेहरा बनिके रील बनाबय, थोपे खूब लिपिस्टिक।

मुंह बनाय के बो‍करन जइसा, फोटो खूब खिचाबय,
ओहिन काहीं स्‍टेटस मा, सगला दिन चपकाबय।

डार अंगउछी नटई माहीं नेता युवा कहाबय।
गुटका अउर तमाखू खाके, निबले का मुरि‍हाबय।

फेरौ दद्दा कहैं कि दादू, ल‍ड़‍िका मोर नगीना,
काजे मा इनहूं का चाही बुलेट कार प्‍लैटीना। 

- कवि प्रियांशु 'प्रिय' 
मोबा. 9981153574
email - priyanshukushwaha74@gmail.com

बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्र‍ियांशु प्रिय

बघेली कविता -  

कइसा होय केबादा


सुना बत‍ाई सब गांमन मा कइसा होय केबादा,

शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत हें बेउहर जादा।

सचिव सा‍हब आवास के खातिर बोलथें हर दार,

ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई बीस हजार।

आगनबाड़ी मा आबत ही लड़‍िकन खातिर दरिया,

पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया भंइसी छेरिया।

जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै लाठी आरी,

बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस खांय पटवारी।

सरकारी स्‍कूल मा देखन खूब मिलत हैं ज्ञान,

कुछ मास्‍टर अउंघाय रहे हैं कुछ त पड़े उतान।

कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,

कउन गाँव के आय या किस्‍सा अपना पंचे जानी।

-    कवि प्र‍ियांशु प्रिय

शनिवार, 21 सितंबर 2024

बघेली व्‍यंग्‍य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय

                                                                   बघेली कविता  

                                  हम सरकार से करी निवेदन 

चारिउ क‍इती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,

फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।

शासन केर व्‍यवस्‍था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,

थिरक-थ‍िरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।

हम जो बह‍ि‍रे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,

मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।

शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,

अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।

रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,

गड्ढौ माहीं थ‍िरक रहे हें, दीदी संघे दादा।

हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,

रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।

- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574

बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्र‍िय'

                                                            बघेली कविता -               

                                      डारिन खीसा घूंस


                                       

एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी

दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।

सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,

सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।

टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,

बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।

रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,

चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।

बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,

बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।

कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,

जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा खांय।

होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,

चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।

- प्रियांशु 'प्रिय' 

 मोबा- 9981153574

 

 

 

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

बघेली कविता - 'बेरोजगार हयन'

                                                                 बघेली कविता
 
                                                         बेरोजगार हयन


दिनभर माहीं दुक्ख का अपने‌,‌ रोइत कइयक‌ दार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

चार पॉंच ठे डिगरी ल‌इके, यहां‌‌ वहां हम बागित हे।
चिंता माहीं दिन न‌ सोई, रात रात भर जागित हे।
आस परोस के मन‌ई सोचैं, कउन पढ़ाई करे हबय।
बाबा के मुहूं निहारय न,‌छाती मा कोदौ दरे हबय।
दोस्त यार‌‌, हेली-मेली‌,‌ सुध करैं नहीं भूल्यो बिसरे।
एक रहा जमाना जब सगले, फोन करैं अतरे दुसरे।
लइके कागज ऐखे ओखे, लगाइत खूब गोहार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

बाबा बोलय करा किसानी, मिलै कहौं रोजगार‌ नहीं।
अब खेती कइसा होई हमसे, जिउ टोरैं के तार‌‌ नहीं।
कुछ जने कहथे बाबा से, एकठे दुकान खोलबाय द्या।
ओहिन मा बइठाबा ऐखा, निरमा, साबुन‌‌ रखबाय द्या।
धंधौ खोलय खातिर भैया, पइसा फसमय के तार नहीं।
कर्जा एतना काढ़ लिहन कि, मॉंगे मिलै उधार नहीं।
खीसा मा रूपिया नहीं एक, रोइत असुअन के‌‌ धार‌ हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

रिस्तदार अउ पट्टिदार सब,बाबा का फोन‌ लगाबत हें।
लड़िका तुम्हार काजे का है,बिटिया‌ रोज बताबत हें।
बाबा या कहिके रखैं फोन,का तुमहीं कुछु देखाय नहीं।
केखर बिटिया अई भला,जब लड़िका मोर कमाय नहीं।
सब देख देख चउआन हयन, किस्मत कइ‌ निहारिथे।
करम जउन लिखबा आयन है, कागज मा वहै‌ उतारिथे।
खासा संघर्ष दिखन जीवन मा, अउ झेलैं का तइयार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

प्रि‍यांशु 'प्रिय'
मोबा. 9981153574


गुरुवार, 18 जुलाई 2024

बघेली गीत - सबसे सुंदर, सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो

                            बघेली गीत
                       
     सबसे सुंदर, सबसे निकहालागय आपन गाँव हो

  

       शहर भरे मा बाग लिहन हम, होइगा पूर उराव हो

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो।

 

चुल्‍हबा के पोई रोटी व, केतनी निकही लागय।

अउर कनेमन चुपर के मनई, हरबी हरबी झारय।

बनय गोल‍हथी कढ़ी मुगउरी, अतरे दुसरे टहुआ।

जाय बगइचा टोरी आमा, बिनी हमूं एक झहुआ।

सोंध सोंध महकत ही माटी, चपकय हमरे पाँव हो...

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....

 

दिखन शहर मा मरैं लाग है, आपस मा भाईचारा।

सग भाई अब सग न रहिगें, होइगा उनमा बटवारा।

बजबजात है नाली नरदा, गेरे रहय बेरामी।

एक दुसरे का चीन्‍हैं न अब, होइगें ऐतना नामी।

दिखन तलइया गै सुखाय अब, छूँछ परी ही नाव हो...

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....



- प्रियांशु 'प्रि‍य'   

मोब. 9981153574 

सतना ( म. प्र. )




चैत्र महीने की कविता

  चइत महीना के बघेली कविता  कोइली बोलै बाग बगइचा,करहे अहिमक आमा। लगी टिकोरी झुल्ला झूलै,पहिरे मउरी जामा। मिट्टू घुसे खोथइला माही,चोच निकारे ...