रविवार, 29 दिसंबर 2024
नई पुतउ के कहानी
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
अपने विंध्य के गांव
- प्रियांशु 'प्रिय'
सतना
नवरात्रि पर बघेली कविता
नवरात्रि पर बघेली कविता
शनिवार, 28 सितंबर 2024
बघेली हास्य कविता - बुलेट कार प्लैटीना - कवि प्रियांशु 'प्रिय'
बुलेट कार प्लैटीना
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
email - priyanshukushwaha74@gmail.com
बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता -
कइसा होय केबादा
सुना बताई सब गांमन मा कइसा
होय केबादा,
शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत
हें बेउहर जादा।
सचिव साहब आवास के खातिर बोलथें
हर दार,
ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई
बीस हजार।
आगनबाड़ी मा आबत ही लड़िकन
खातिर दरिया,
पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया
भंइसी छेरिया।
जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै
लाठी आरी,
बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस
खांय पटवारी।
सरकारी स्कूल मा देखन खूब मिलत
हैं ज्ञान,
कुछ मास्टर अउंघाय रहे हैं
कुछ त पड़े उतान।
कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,
- कवि प्रियांशु ‘प्रिय’
शनिवार, 21 सितंबर 2024
बघेली व्यंग्य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता
चारिउ कइती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,
फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।
शासन केर व्यवस्था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,
थिरक-थिरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।
हम जो बहिरे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,
मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।
शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,
अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।
रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,
गड्ढौ माहीं थिरक रहे हें, दीदी संघे दादा।
हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,
रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्रिय'
बघेली कविता -
डारिन खीसा घूंस
एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी
दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।
सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,
सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।
टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,
बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।
रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,
चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।
बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,
बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।
कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,
जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा
खांय।
होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,
चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
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