नवरात्रि पर बघेली कविता
सुनिल्या मोर गोहार
दुर्गा मैया घरै बिराजा,सुनिल्या मोर गोहार।
हाथ जोड़िके करी चरउरी,बिनती बारंबार।
हम मूरूख जड़बोग हो माता,अकिल बाट नहिं थोरौ।
लउलितिया लै हमहूं मइया,दूनौं हाथ का जोरौं।
करी बघेली के हम सेबा,बर दीन्हें महतारी।
तोहरे बिना है कउन सहारा,सगला जीबन वारी।
टूट फूट अच्छर के माला,गुहिके हम्हूं चढ़ाई।
मैहर बाली देवी दाई,हम तोहका गोहराई।
तोहरे बिना आदेश के माई,पत्तौ भर न डोलै।
तोहरै किरपा होय जो मइया,गूंगौ निधड़क बोलै।
मांगी भीख हम्हूं विद्या के,हमरो कइत निहारा।
अइसय रोज बनाई कबिता,हमहूं का अब तारा।
जय जयकार लगाई सब जन कहैं प्रियांशु भाई।
ठोलकी अउर नगरिया लइके,चली भगत मिल गाई।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय
सतना ( म प्र )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें