शनिवार, 28 सितंबर 2024

बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्र‍ियांशु प्रिय

बघेली कविता -  

कइसा होय केबादा


सुना बत‍ाई सब गांमन मा कइसा होय केबादा,

शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत हें बेउहर जादा।

सचिव सा‍हब आवास के खातिर बोलथें हर दार,

ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई बीस हजार।

आगनबाड़ी मा आबत ही लड़‍िकन खातिर दरिया,

पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया भंइसी छेरिया।

जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै लाठी आरी,

बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस खांय पटवारी।

सरकारी स्‍कूल मा देखन खूब मिलत हैं ज्ञान,

कुछ मास्‍टर अउंघाय रहे हैं कुछ त पड़े उतान।

कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,

कउन गाँव के आय या किस्‍सा अपना पंचे जानी।

-    कवि प्र‍ियांशु प्रिय

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