रविवार, 5 जनवरी 2025

मोबाइल की लत पर बघेली क‍विता

 मोबाइल की लत पर
बघेली क‍विता
 

                        
मोबाइल बिन नीक न लागै,बिलकुल खाना पीना।
ऐखे बिना न परै रहाई,मुश्किल होइगा जीना।
खटिया से उचतै सब मन ई मोबाइल का देखै।
वाट्साप ग्रुप फेसबुक देखि आपन आंखी सेंकै।
बंद परी ही टी वी घर मा,कोहू नहीं देखइया।
पूरी सउख करे मोबाइल, कुच्छ न पूछा भैया ।
मोबाइल मा देख बीडियो ,व्यंजन घाल बनामै।
मगन रहै मोबाइलै माहीं, दारौ भात जरामै।
आई फोन लिहे उई बागै,लाखन केहीं आबै।
बापन केर कमाई माहीं, काहे न चमकामैं।
इंस्टाग्राम फेसबुक देखैं घिनही घिनही रील।
घरहूं बाले कुछू न बोलै,दये है अहिमक ढील।
कुछ जन लड़िका ठीक करत हे,करतिउ हेमै पढ़ाई।
मोबाइलै से पढ़ै रात भर,सबतर होय बड़ाई।
कहैं प्रियांशु मोबाइल मा हमै नीक औ नागा।
निकहे निकहे चैनल देखा,आखी मूंद न भागा - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मोबाइल की लत पर बघेली क‍विता

  मोबाइल की लत पर बघेली क‍विता                            मोबाइल बिन नीक न लागै,बिलकुल खाना पीना। ऐखे बिना न परै रहाई,मुश्किल होइगा जीना। ख...