शनिवार, 21 सितंबर 2024

बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्र‍िय'

                                                            बघेली कविता -               

                                      डारिन खीसा घूंस


                                       

एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी

दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।

सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,

सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।

टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,

बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।

रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,

चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।

बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,

बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।

कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,

जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा खांय।

होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,

चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।

- प्रियांशु 'प्रिय' 

 मोबा- 9981153574

 

 

 

शनिवार, 14 सितंबर 2024

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

   

अपनी बोली, अपनी भाषा से भला किसे प्रेम नहीं होता। हम और आप जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर‌ राजस्थानी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि बोल रहे हैं। तो इन सब बोलियों का भी मीठी भाषा हिन्दी को प्रोत्साहित करने और इसकी सेवा करने में महनीय‌ योगदान है।

सतना रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड तक आने‌ के लिए‌ जब आप ऑटो वाले से पूछते हैं कि "बस स्टैंड तक का कितना किराया लेंगे भइया?" तब वो अपनी क्षेत्रीय बघेली बोली में आपसे ये कहता‌ है कि "भइया‌ बीस रूपिया भर लागी।" तब ऑटो वाला बघेली बोली और आप हिंदी भाषा के विस्तार की एक कड़ी आगे बढ़ा चुके होते हैं। भाषाएं और बोलियॉं आपसी साहचर्य से एक दूसरे को विस्तार प्रदान करती हैं।

मैं गर्वित हूॅं कि बघेलखंड में मेरा जन्म हुआ है और मैंने हिंदी से पहले बघेली को जाना है, बघेली‌‌ बोला है और बघेली को जिया भी है। कुछ वर्ष पूर्व मैं इंदौर में एक प्राइवेट रेडियो में उद्घोषक के पद पर कार्यरत था।‌ वहॉं बघेली बोली में एक कार्यक्रम 'बघेली दरबार' किया करता था। हमारे कंटेन्ट को जॉंचने‌ वाले बघेली नहीं जानते थे। जब पूरा कंटेन्ट बन‌ जाता था तब मैं उन्हें इस कार्यक्रम में उपयोग किए गए बघेली के सभी शब्दों को समझाने के‌ लिए हिंदी का ही सहारा‌‌ लेता था।

विंध्य क्षेत्र से हटकर बघेली बोलते वक्त जब मैं असहज महसूस करता‌ हूं। तब हर बार मुझे हिंदी ने ही सहारा‌‌ दिया है। हिंदी आपको सहारा देती‌ है। हिंदी आपको आत्मविश्वास प्रदान करती है। हिंदी‌ भाव की भाषा‌ है। सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी‌ बोलते, पढ़ते और लिखते रहिए। हिंदी दिवस की‌ शुभकामनाएं।

जय हिंदी। जय हिंदुस्तान। 

- प्रियांशु 'प्रिय'

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

बघेली कविता - 'बेरोजगार हयन'

                                                                 बघेली कविता
 
                                                         बेरोजगार हयन


दिनभर माहीं दुक्ख का अपने‌,‌ रोइत कइयक‌ दार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

चार पॉंच ठे डिगरी ल‌इके, यहां‌‌ वहां हम बागित हे।
चिंता माहीं दिन न‌ सोई, रात रात भर जागित हे।
आस परोस के मन‌ई सोचैं, कउन पढ़ाई करे हबय।
बाबा के मुहूं निहारय न,‌छाती मा कोदौ दरे हबय।
दोस्त यार‌‌, हेली-मेली‌,‌ सुध करैं नहीं भूल्यो बिसरे।
एक रहा जमाना जब सगले, फोन करैं अतरे दुसरे।
लइके कागज ऐखे ओखे, लगाइत खूब गोहार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

बाबा बोलय करा किसानी, मिलै कहौं रोजगार‌ नहीं।
अब खेती कइसा होई हमसे, जिउ टोरैं के तार‌‌ नहीं।
कुछ जने कहथे बाबा से, एकठे दुकान खोलबाय द्या।
ओहिन मा बइठाबा ऐखा, निरमा, साबुन‌‌ रखबाय द्या।
धंधौ खोलय खातिर भैया, पइसा फसमय के तार नहीं।
कर्जा एतना काढ़ लिहन कि, मॉंगे मिलै उधार नहीं।
खीसा मा रूपिया नहीं एक, रोइत असुअन के‌‌ धार‌ हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

रिस्तदार अउ पट्टिदार सब,बाबा का फोन‌ लगाबत हें।
लड़िका तुम्हार काजे का है,बिटिया‌ रोज बताबत हें।
बाबा या कहिके रखैं फोन,का तुमहीं कुछु देखाय नहीं।
केखर बिटिया अई भला,जब लड़िका मोर कमाय नहीं।
सब देख देख चउआन हयन, किस्मत कइ‌ निहारिथे।
करम जउन लिखबा आयन है, कागज मा वहै‌ उतारिथे।
खासा संघर्ष दिखन जीवन मा, अउ झेलैं का तइयार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

प्रि‍यांशु 'प्रिय'
मोबा. 9981153574


गुरुवार, 18 जुलाई 2024

बघेली हास्‍य मुक्‍तक

      बघेली हास्‍य मुक्‍तक



1. काल्‍ह बिकन दिह‍िन, कुछ आज बिकन दिहिन,

सरम उनखर मरिगै त लाज बिकन दिहिन।

कोटेदार का दुइ महीना से तनखाह नहीं मिली,

ऐहिन से आधी रात उईं अनाज बिकन दिहिन।




2. निबले का डेरबामय का कारतूस लेथें

गरीब मनई के खून निकबर चूस लेथें

सरपंच या साइत सचिव से भुकुरे हें

कहत रहें कि उईं हमसे जादा घूँस लेथें




3. हमार सगली कहानी यहाँ पेश न होइ जाय

हमरे जीवन मा कहौं कलेश न होइ जाय

काल्‍ह दुइ ठे कविता भ्रष्‍टाचार मा लिखन है

आज डेर लागत ही कहौं केस न होइ जाय



4. भात का कहौं जरबत ही, कहौं गील बनाबत ही

अहिमक हिबय अलाल, जिउ का ढील बनाबत ही

एमए बीए त कए ही, पै जाय के ऊँच पहाड़न मा

लाली अउर लिपिस्‍टिक थोपे, रील बनाबत ही

 

5.  बापराम स्‍वाचत हें कि लड़का स्‍कूल जात है

व पइसा डकहाबत है, स्‍वीमिंग पूल जात है

है खास पोहगर या जानत हें लेकिन

एक पउआ पियत है त सब भूल जात है




6. उज्‍जर कुर्ता पहिर के आपन सान बताबत हें

यहै भर काहे का उईं सगले जहान बताबत हें

नशामुक्‍त‍ि के कार्यक्रम मा उइन पचे भर आए हें

जे डार तमाकू मुँहे मा सबका ज्ञान बताबत हें

 
- प्रियांशु 'प्रिय' 
मोबा- 9981153574

  

बघेली गीत - सबसे सुंदर, सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो

                            बघेली गीत
                       
     सबसे सुंदर, सबसे निकहालागय आपन गाँव हो

  

       शहर भरे मा बाग लिहन हम, होइगा पूर उराव हो

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो।

 

चुल्‍हबा के पोई रोटी व, केतनी निकही लागय।

अउर कनेमन चुपर के मनई, हरबी हरबी झारय।

बनय गोल‍हथी कढ़ी मुगउरी, अतरे दुसरे टहुआ।

जाय बगइचा टोरी आमा, बिनी हमूं एक झहुआ।

सोंध सोंध महकत ही माटी, चपकय हमरे पाँव हो...

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....

 

दिखन शहर मा मरैं लाग है, आपस मा भाईचारा।

सग भाई अब सग न रहिगें, होइगा उनमा बटवारा।

बजबजात है नाली नरदा, गेरे रहय बेरामी।

एक दुसरे का चीन्‍हैं न अब, होइगें ऐतना नामी।

दिखन तलइया गै सुखाय अब, छूँछ परी ही नाव हो...

सबसे सुंदर सबसे निकहा, लागय आपन गाँव हो....



- प्रियांशु 'प्रि‍य'   

मोब. 9981153574 

सतना ( म. प्र. )




बुधवार, 10 जुलाई 2024

बघेली मुक्‍तक

बघेली मुक्‍तक





 


साल भरे के कमाई मा छेरिया बेसाह लाएं

कुच्‍छ लिहिन उज्‍जर त कुच्‍छ करिया बेसाह लाएं

वहाँ दादा लड़कउना के काजे के तइयारी करैं

यहाँ परोस के गाँव से दादू मेहेर‍िया बेसाह लाएं

मंगलवार, 9 जुलाई 2024

बघेली मुक्‍तक

                                                   बघेली मुक्‍तक

                         
                                     रचनाकार प्रियांशु 'प्रिय'

                                                              मोबा.  9981153574 

1.

दुइ जन मिलिके एंकई दबाबत हें।

दुइ जन मिलिके ओंकई दबाबत हें।

काल्‍ह व CM HELPLINE मा शिकायत क‍ा किह‍िस।

आज अधिकारी ओखर नटई दबाबत हें।

2. 

चुनाव मा जब निसोच भाषन मिलथै

जनता का हर दरकी आश्‍वासन मिलथै

रोड, गली नसान रहै त कुच्‍छ न बोल्‍या

काहे कि फ्री मा पाँच किलो राशन मिलथै


3. 

साल भरे के कमाई मा छेरिया बेसाह लाएं

कुच्‍छ लिहिन उज्‍जर त कुच्‍छ करिया बेसाह लाएं

वहाँ दादा लड़कउना के काजे के तइयारी करैं

यहाँ परोस के गाँव से दादू मेहेर‍िया बेसाह लाएं



4. 

या आम नहीं एकदम खास देबाबत है

किरिया करथै अउर बिसुआस देबाबत है

बड़ा सस्‍ता सचिव है एकठे गाँँव के भइया

मात्र बीस हजार लेथै फेर आवास देबाबत है


5.

तुम्‍हरे भर गोहार मारे से हल्‍ला नहीं होय

सगली बस्‍ती से बड़ा मोहल्‍ला नहीं होय

गरीब मजदूरी कइके आपन पेट भरथै

कोटा मा ओखे खातिर गल्‍ला नहीं होय


6. 

मड़इया बनी ही पै खारिया चुकी ही

भुईं मा बइठित हे बोरिया चु‍की ही

यहाँँ गइया निकहे से पल्‍हात नहीं आय

वहाँँ आगनबाड़ी मा दरिया चुकी ही 


7. 

कोउ नहीं कह‍िस क‍ि फरेबी रहे हें

पूरे गाँँव मा बांटत जलेबी रहे हें

बंदी हे जे तीन सौ छिहत्‍तर के केस मा

एक जन बताइन कि समाजसेवी रहे हें                


🖋 प्रियांशु 'प्रिय'   


अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...