अपनी बोली, अपनी भाषा से भला किसे प्रेम नहीं होता। हम और आप जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर राजस्थानी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि बोल रहे हैं। तो इन सब बोलियों का भी मीठी भाषा हिन्दी को प्रोत्साहित करने और इसकी सेवा करने में महनीय योगदान है।
सतना रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड तक आने के लिए जब आप ऑटो वाले से पूछते हैं कि "बस स्टैंड तक का कितना किराया लेंगे भइया?" तब वो अपनी क्षेत्रीय बघेली बोली में आपसे ये कहता है कि "भइया बीस रूपिया भर लागी।" तब ऑटो वाला बघेली बोली और आप हिंदी भाषा के विस्तार की एक कड़ी आगे बढ़ा चुके होते हैं। भाषाएं और बोलियॉं आपसी साहचर्य से एक दूसरे को विस्तार प्रदान करती हैं।
मैं गर्वित हूॅं कि बघेलखंड में मेरा जन्म हुआ है और मैंने हिंदी से पहले बघेली को जाना है, बघेली बोला है और बघेली को जिया भी है। कुछ वर्ष पूर्व मैं इंदौर में एक प्राइवेट रेडियो में उद्घोषक के पद पर कार्यरत था। वहॉं बघेली बोली में एक कार्यक्रम 'बघेली दरबार' किया करता था। हमारे कंटेन्ट को जॉंचने वाले बघेली नहीं जानते थे। जब पूरा कंटेन्ट बन जाता था तब मैं उन्हें इस कार्यक्रम में उपयोग किए गए बघेली के सभी शब्दों को समझाने के लिए हिंदी का ही सहारा लेता था।
विंध्य क्षेत्र से हटकर बघेली बोलते वक्त जब मैं असहज महसूस करता हूं। तब हर बार मुझे हिंदी ने ही सहारा दिया है। हिंदी आपको सहारा देती है। हिंदी आपको आत्मविश्वास प्रदान करती है। हिंदी भाव की भाषा है। सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते रहिए। हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
जय हिंदी। जय हिंदुस्तान।
- प्रियांशु 'प्रिय'
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