रविवार, 3 मार्च 2024

मित्रता पर दोहे

मित्रता पर दोहे


1. निर्मल मन निश्‍छल रहे, उत्‍तम रहे चरित्र,
हो परहित की भावना, वह है सच्‍चा मित्र।।

2. त्‍यागशील, निस्‍वार्थी करता हो सहयोग,
एसे मित्र बनाइए, मिले कहीं संयोग।।

3. कृष्‍ण सुदामा सा रहे, हरपल अपने साथ,
मित्र हमें देना प्रभु, नित्‍य निभाऊँ माथ।। 

4. कठिन परिस्‍थि‍त‍ि में सदा, जो देता हो साथ,
ऐसे मित्र बनाइए, सदा मिलाए हाथ।।

✒ प्रियांशु 'प्रिय'
     सतना ( म.प्र. )

   

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

बघेली मुक्‍तक

 बघेली मुक्‍तक - 


कोऊ नहींं कहिस क‍ि फरेबी रहे हें,

पूरे गाँँव मा बांटत जलेबी रहे हें।

बंदी हें जे तीन सौ छि‍हत्‍तर के केस मा,

एक जन बताइन समाजसेवी रहे हें ।


- प्रियांशु 'प्रिय'      

ग़ज़ल - ' जीवनभर अभिलाषा रखना '

 जीवनभर अभिलाषा रखना


जीवनभर अभिलाषा रखना,

यानी खूब निराशा रखना।


हँसना रोना चांँद की खातिर,

तुम भी यही तमाशा रखना।


प्रेम गीत के हर पन्‍ने पर,

खूब विरह की भाषा रखना।


जिसकी तुमसे प्‍यासा बनी हो,

उसको बेहद प्‍यासा रखना।


मैंने सबकुछ छोड़ दिया है,

मुझसे अब न आशा रखना।


✏ प्रियांशु 'प्रिय' 

गीत - ' मैं तुम्‍हारा मीत बनना चाहता था '

                        गीत  


मैं तुम्‍हारा मीत बनना चाहता था,

पर तुम्‍हारे प्‍यार ने सब मार डाला ।

 

शब्‍द मेरे थे तुम्‍हारे और कुछ भी शेष न था,

नेह की बगिया हरी थी, तब कहीं भी द्वेष न था।

था हमारे और तुम्‍हारे बीच इक संबंध ऐसा,

क्‍यारियों में रातरानी की महकती गंध जैसा।

मैं कहीं भी रोशनी बन‍कर चमकता,

पर किसी अंधियार ने सब मार डाला।

मैं तुम्‍हारा मीत बनना....................

 

स्‍वप्‍न के टूटे हुए हिस्‍से के जैसा हो गया हूँ,

भूलकर मैं अनकहे किस्‍से के जैसा हो गया हूँ।

भूलना कितना कठिन है, जानकर यह ज्ञात होगा,

भूल जाओगे स्‍वयं को, तब बहुत आघात होगा।

गंतव्‍य तक चलने का हम सपना लिए थे,

प्रारंभ के ही द्वार ने सब मार डाला।

मैं तुम्‍हारा मीत बनना.................


✒ प्रियांशु 'प्रिय'

   सतना ( म. प्र. )

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

कविता - ' बढ़ बटोही '

कविता 

' बढ़  बटोही '


लक्ष्‍य के सोपान पर तू चढ़ बटाेही,

बढ़ बटोही ।।


व्‍योम को जा चूम ले,

जग ये सारा घूम ले।

कर दे विस्‍मृत हर व्‍यथा को,

मग्‍न होकर झूम ले।

जा वि‍पिन में रास्‍तों को,

तू स्‍वयं ही गढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही........


गिरि‍ नहीं है न्‍यून है,

है कि जैसे शून्‍य हैै।

कष्‍ट हैै भयभीत जिससे,

हाँँ वो तेरा खून है। 

और लिख - लिख गीत पथ के,

खूब उनको पढ़ बटोही। 

बढ़ बटोही.........


✒ प्रियांशु ' प्रिय '

      सतना ( म. प्र. ) 




       

हिंदी रचना - '' जाने कितने धंधे होते ''

     जाने कितने धंधे होते 


जाने कितने धंधे होते,

            कुछ अच्‍छे, कुछ गंदे होते। 

जिन‍की भूख ग़रीब का खाना,

            वो सारे भिखमंगे होते। 

झूठ को देखे और न बोलें,

            जो गूँगे और अंंधे होते। 

बुरा भला न बोलो उनको,

            जिनके गले में फंदे होते। 

ये जो शेर बने फिरते हैं,

            दो कौड़ी के बंदे होते। 


✒ प्रियांशु कुशवाहा  

        सतना ( म प्र )

बघेली कविता - ' हुसियारी नहीं आबय '

              बघेली कविता - 


जउने दिना घर मा महतारी नहीं आबय,

जानि ल्‍या दुअरा मा ऊजियारी नहीं आबय । 


जउन खइथे अपने पसीना के खइथे,

हमरे इहाँँ रासन सरकारी नहीं आबय । 


ठाढ़ के मोगरा टेड़ कइके देखा , 

बेसहूरन के माथे हुसियारी नहीं आबय । 

 

कब्‍जाय लिहि‍न उँईं सगली जाघा जमींन,

अब अर्जी लगाए मा पटवारी नहीं आबय । 


द्रौपदी के धोतिया के खीचै दुसासन,

कलजुग मा कउनव गिरधारी नहीं आबय ।  


- प्रियांशु कुशवाहा 'प्रि‍य' 

मोबा; 9981153574                                               

अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...