बघेली मुक्तक -
कोऊ नहींं कहिस कि फरेबी रहे हें,
पूरे गाँँव मा बांटत जलेबी रहे हें।
बंदी हें जे तीन सौ छिहत्तर के केस मा,
एक जन बताइन समाजसेवी रहे हें ।
- प्रियांशु 'प्रिय'
बघेली कविता दादू खड़े चुनाव मा कर्मठ और जुझारु नेता, बिकन रहे हें दारु नेता। एक बोतल सीसी बहुँकामैं, बोट खरीदै...
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