बघेली मुक्तक -
कोऊ नहींं कहिस कि फरेबी रहे हें,
पूरे गाँँव मा बांटत जलेबी रहे हें।
बंदी हें जे तीन सौ छिहत्तर के केस मा,
एक जन बताइन समाजसेवी रहे हें ।
- प्रियांशु 'प्रिय'
बघेली कविता अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...
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