प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता
मंगलवार, 4 मार्च 2025
भाईचारा मरिगा दादू
भाईचारा मरिगा दादू
भाईचारा मरिगा दादू, मनई हबय कसाई,
एक बीता के जाघा माहीं, लपटयं भाई भाई।
नहीं आय अब प्रेम प्यार कुछ, मनई है खिसियान,
सगला दिन बस पैसा केहीं पाछे है पछियान।
पइसै सेहीं बनय रहा है मनई खूब बेउहार,
पइसै वालेन केही जलवा उनहिंंन के तेउहार।
पइसै वालेन केहीं देखी, पाछे सगले बागय,
जेखर खीसा छूंछ रहथै, ओसे दूरी भागय।
पइसा देखिके नेरे अइहैं, साथी हेली मेली,
नहिं त दूरी रहिहैं तुमसे, भले बोलाबा डेली।
पइसा रही जो तुम्हरे ठइआं, दुश्मन भाई बोली,
नेता ओता गोड़न गिरिहैं, रूपिया अइसा डोली।
पइसै खातिर भटक रहा है, मनई सांझ सकारे।
सगला दिन व जिउ टोरथै , आंखीं काढ़े काढ़े ।।
कहैं प्रियांशु दिखन जमाना, बदला है धौं कइसा।
ओहिन कइती होंय सबय जन, भरा है जेखे पइसा।।
- कवि प्रियांशु प्रिय
रविवार, 5 जनवरी 2025
मोबाइल की लत पर बघेली कविता
मोबाइल की लत पर
बघेली कविता
बघेली कविता
मोबाइल बिन नीक न लागै,बिलकुल खाना पीना।
ऐखे बिना न परै रहाई,मुश्किल होइगा जीना।
खटिया से उचतै सब मन ई मोबाइल का देखै।
वाट्साप ग्रुप फेसबुक देखि आपन आंखी सेंकै।
बंद परी ही टी वी घर मा,कोहू नहीं देखइया।
पूरी सउख करे मोबाइल, कुच्छ न पूछा भैया ।
मोबाइल मा देख बीडियो ,व्यंजन घाल बनामै।
मगन रहै मोबाइलै माहीं, दारौ भात जरामै।
आई फोन लिहे उई बागै,लाखन केहीं आबै।
बापन केर कमाई माहीं, काहे न चमकामैं।
इंस्टाग्राम फेसबुक देखैं घिनही घिनही रील।
घरहूं बाले कुछू न बोलै,दये है अहिमक ढील।
कुछ जन लड़िका ठीक करत हे,करतिउ हेमै पढ़ाई।
मोबाइलै से पढ़ै रात भर,सबतर होय बड़ाई।
कहैं प्रियांशु मोबाइल मा हमै नीक औ नागा।
निकहे निकहे चैनल देखा,आखी मूंद न भागा
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
यातायात के नियम पर कविता
यातायात पर बघेली कविता
भरर भुरुर अउ परर पुरुर तुम, अस गाड़ी भरउत्या है।
हाथ गोड़ टोरबाए भाई, रसपताल मा अउत्या है।
कालेजन से निकर्या भइलो,एक्सीलेटर पेल्या।
देखिके बिटियन काहीं गाड़ी, अधाधुंध तुम रेल्या।
बने रह्या तुम हैवी ड्राइवर, छाने अद्धी पउआ।
रसपताल के फेर दवाई, चली एक एक झउआ।।
हेलमेट नहीं बेसाह्या अबतक, खुल्ला मूड़ चलाया।
दुर्घटना का दिहा तू नेउता, आपन जान गबाया।।
मनई धरन चलाबा भाई, गाड़ी अउ स्कूटी ।
नहीं त निपुरी थुथून थोभरा, हाथौ गौड़ौ टूटी।।
यातायात के नियम कायदा, ल्या तू सगला जान।
नहीं जो फसिहा चौराहा मा, कटबै करी चलान।।
लाल पियर हरियर बत्ती सब, देखे रह्या सचेत।
कबय रूकैं का, कबै चलय का, देती हैं संकेत।
धीम कइ लिहा गाड़ी आपन, जली जो पीली बत्ती।
लाल लाल जो लाइट चमकी, बड़्या न एकव रत्ती।
जब रस्ता होई खाली एकदम, निकरैं केर तयारी।
हरियर बत्ती जली हो भैया, ट्रैफिक लाइट निहारी।।
कहैं प्रियांशु सुना फलाने, मोर बात अब माना।
गाड़ी बाहन खूब चलाबा,नियम जो सगले जाना।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
रविवार, 29 दिसंबर 2024
नई पुतउ के कहानी
किन्हौ चढ़ी बोखार है इनही,खानौ तक न खाय।
सास सकेलै काम घरे के,दस्स बजे तक सोमैं।
बड़ी बहाने बाज हई ईं,बोल देय त रोमैं।
मइके माहीं चारा छोलै,गोबर घाल उचामै।
ससुरे माहीं घिन लागत ही,थोभरा रोज फुलामैं।
अनटेढ़ी के बात करैं ई,मोबाइल भर गूलैं।
चमक चमक के रील बनामै,लाइक माही भूलैं।
सास बुढ़ीबा रोटी बनबै,इनही चढ़ी बेरामी।
दादू के त बात न पूछा,बहुतै हबै हरामी।
जमके लेय खूब उपरउझा,ओहिन कइती बोलै।
रंगा रहै दुलहिन के रंग मा, आगे पीछे डोलै।
रील मा भैया हंस के बोलै,अउचट थिरकै नाचैं ।
टोंक देय जो थोरकौ कोहू,कहतू हिबै कुलाचैं।
कहैं प्रियांशु अइसन दुलहिन जउने घर मा आबै।
मचा रहै रन जुज्झ हमेशा,मनई सुक्ख न पाबै।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
अपने विंध्य के गांव
बघेली कविता
भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव।
केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव।
छाधी खपड़ा माटी के घर,सुंदर महल अटारी।
घास फूस के बनी मडइया,माटी केर बखारी।
घर मा मिलिहै सूपा छउआ, टोपरी,दोहनी गघरी ।
चली बहुरिया कलसा लइके,मूड़े मा धर गोन्हरी।
कक्कू मिलिहै अपना काहीं लै हाथे पइनारी।
लंबी मूछ मुड़ेठी बाधे,इनखर गजब चिन्हारी।
छोट बड़े के रहै कायदा आपस के ब्युहार।
हितुआरस के भाव जगामै,इहां केर तेउहार।
जून जमाना पलटी मारिस,बदलै लागे गांव।
कला संस्कृति गीत बिसरिगे बिसरै लागे भाव।
बिसरें खेलकूद सब दादू, खेलैं दिनभर पबजी।
चाउमीन पिज्जा के आगे, सोहाय न रोटी सबजी।
कहै प्रियांशु कविता माही कहा पुरनिया रीत।
बन्ना बन्नी कजरी हिदुली आल्हा बाले गीत।
- प्रियांशु 'प्रिय'
सतना
- प्रियांशु 'प्रिय'
सतना
नवरात्रि पर बघेली कविता
नवरात्रि पर बघेली कविता
सुनिल्या मोर गोहार
दुर्गा मैया घरै बिराजा,सुनिल्या मोर गोहार।
हाथ जोड़िके करी चरउरी,बिनती बारंबार।
हम मूरूख जड़बोग हो माता,अकिल बाट नहिं थोरौ।
लउलितिया लै हमहूं मइया,दूनौं हाथ का जोरौं।
करी बघेली के हम सेबा,बर दीन्हें महतारी।
तोहरे बिना है कउन सहारा,सगला जीबन वारी।
टूट फूट अच्छर के माला,गुहिके हम्हूं चढ़ाई।
मैहर बाली देवी दाई,हम तोहका गोहराई।
तोहरे बिना आदेश के माई,पत्तौ भर न डोलै।
तोहरै किरपा होय जो मइया,गूंगौ निधड़क बोलै।
मांगी भीख हम्हूं विद्या के,हमरो कइत निहारा।
अइसय रोज बनाई कबिता,हमहूं का अब तारा।
जय जयकार लगाई सब जन कहैं प्रियांशु भाई।
ठोलकी अउर नगरिया लइके,चली भगत मिल गाई।
- कवि प्रियांशु 'प्रिय
सतना ( म प्र )
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