सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

बघेली कविता - ' हुसियारी नहीं आबय '

              बघेली कविता - 


जउने दिना घर मा महतारी नहीं आबय,

जानि ल्‍या दुअरा मा ऊजियारी नहीं आबय । 


जउन खइथे अपने पसीना के खइथे,

हमरे इहाँँ रासन सरकारी नहीं आबय । 


ठाढ़ के मोगरा टेड़ कइके देखा , 

बेसहूरन के माथे हुसियारी नहीं आबय । 

 

कब्‍जाय लिहि‍न उँईं सगली जाघा जमींन,

अब अर्जी लगाए मा पटवारी नहीं आबय । 


द्रौपदी के धोतिया के खीचै दुसासन,

कलजुग मा कउनव गिरधारी नहीं आबय ।  


- प्रियांशु कुशवाहा 'प्रि‍य' 

मोबा; 9981153574                                               

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

कविता - ' आते न गिरधारी हैं '

   ' आते न गिरधारी हैं '

रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'

भीख में माँगो न्याय मिलेगा, हक में हिस्सेदारी है।
ढेरों फर्जी काम देश में, कहलाते सरकारी हैं।


देश की पीड़ाओं की खबरें, भला कहां अब आती हैं,
अखबारों में छपता है कि,चीन ने मक्खी मारी है़।

जिन नागों की देश में पूजा, भगवन जैसे होती है,
ख़बर नहीं है किसी को लेकिन, ये सारे विषधारी हैं।

खींच रहा है चीर दुःशासन, डरी द्रौपदी बुला रही,
अब कलयुग में शांत हो गए, आते न गिरधारी हैं।

जिनकी रक्षा और सुरक्षा, की बातें बस होती हैं,
आँसू के संग घुट-घुट जीती, वे भारत की नारी हैं।

सदियों से सब झेल रहे हैं, सरकारी आघातों को।
परिवर्तन तो नहीं है कुछ भी, वही प्रक्रिया जारी है।

जब भी हम मतदान किए तो,एक बात ये जान गए।
कुर्सी वाले जीते हैं और, देश की जनता हारी है।


- प्रियांशु कुशवाहा 
 मोबा. 9981153574

किसान पर कविता -

क‍विता -  

                  देश का किसान  

अंधियारों को चीर रोशनी को जिसने दिखलाया है।
और स्वयं घर पर अपने वह लिए अंधेरा आया है।
जिसके होने से धरती का मन पावन हो जाता है।
जिसके छूने से खेतों का तन उपवन हो जाता है।
मात देता है निरंतर वह देह की थकान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

आँधियाँ तूफान जिनके तेज से भयभीत होते।
पग में छाले, हाथ काले, जख़्म के ये मीत होते।
जो धूप इस तन को छुए, वह स्वयं सौभाग्य पाती।
और पसीने की चुअन हर खेत को पावन बनाती।
खूब उर्वर वह बनाता बंज़र पड़े मैदान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

हजारों योजनाएँ आज भी पन्नों में अटकी हैं।
बहुत मजबूरियाँ इनकी वो फांसी पे लटकी हैं।
न जाने कब मिलेगा न्याय हमारे इस विधाता को।
परिश्रम के कठिन स्वामी विश्व के अन्नदाता को।
अनमोल है हीरा मिला, हिन्दोस्तान को...
शत् शत् नमन मेरा इस देश के किसान को...

© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
         सतना ( म. प्र. )
    मो. 9981153574





होली पर कविता - " भरा इश्क़ का रंग रहे "

 कविता...


                       भरा इश्क़ का रंग रहे 


खुशियाँ फैले जीवन में और, मन में खूब उमंग रहे।
प्रेम,प्यार की पिचकारी में, भरा इश़्क का रंग रहे।

जब जले होलिका याद रहे कि,रोशन हो ये जग सारा।
द्वेष, घृणा सब मिट जाए ,हो न कहीं भी अंधियारा।
मन के भेद मिटाकर आओ,सबको गले लगाएँ।
ये भारत की खुशबू है, हम दुनियाँ को बतलाएँ।
स्नेह मिले हर भाषा में और,अद्भुत अजब प्रसंग रहे।
प्रेम, प्यार की पिचकारी में, भरा इश्क़ का रंग रहे।

हर मज़हब की भाषा ऐसी, अपनापन सिखलाए।
और तिरंगा हृदय में सबके, रंगों से बन जाए।
नभ ने देखो जब खेला रंग, हुआ वही नीला नीला,
फूल और पत्तों ने खेला, हरा-हरा, पीला-पीला।
लगे गुलाल गालों पे जब भी, भीनी भीनी गंध रहे।
प्रेम, प्यार की पिचकारी में, भरा इश्क़ का रंग रहे।

~ प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
        सतना ( म. प्र. )




कविता - "आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ"

 कविता ~


 'आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ' 


ईर्ष्या की झोली से तम को मिटाकर,
प्रेम और वैभव की रोशनी जलाकर।
पलकों ने जिसको संजोए थे अब तक,
उन दुखी अश्कों को मन से हटाकर।
इश्क़ की खुशबू को जग भर फैलाएं,
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ ।

हम सबके मज़हब में ज्ञान का संचार हो,
भाई से भाई तक आकाशभर प्यार हो।
आंखें प्रफुल्लित हो देखकर जिसे वह,
स्नेह की दुकानों का रोशन बाज़ार हो।
मुस्काते शहर में हम शामिल हो जाएं ।
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ ।

सुमन सा सुगंधित हो हर पल हमारा,
प्रीत का भी चमके घर-घर सितारा।
महल भी रोशन हों हर दिये से लेकिन,
झोपड़ी तक जाए दीप का उँजियारा।
मुहब्बत की कोई फुलझड़ी जलाएं।
आओ सब मिलकर दिवाली मनाएँ।


  © प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
         सतना ( म. प्र )
       मो. 9981153574




कविता - ' वंचित होकर सुविधाओं से '

कविता -  

           ' वंचित होकर सुविधाओं से '


वंचित होकर सुविधाओं से,देश की जनता रोती है।

ये कैसी सरकार है साहब,बारह महीने सोती है।



प्रमाण पत्र वो गौ रक्षा का,घर घर लेकर जाते हैं।

और लावारिस गायों की हम,रोज ही लाशें पाते हैं।

पर्यावरण हो शुद्ध जरूरी, पौधे रोज लगाएंगे।

देखरेख भगवान भरोसे, फोटो तो खिचवाएँगे।

ढेर दिखावे दुनियाँभर के, घर के भीतर होते हैं,

और गरीब बेचारे अपनी, झोपड़ियों में सोते हैं।

हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई भाई भाई कहते हैं।

लेकिन मन में भेद लिए सब लड़ते भिड़ते रहते हैं।

है जिनके बंगला गाड़ी, क्या वहीं गरीबी होती है ?

ये कैसी सरकार है साहब........



अखबारों से टी.वी. तक सब अच्छाई ही लगती है।

झूठ परोसा जाए फिर भी सच्चाई ही लगती है।

देश ये भूखा मर जाए पर पिक्चर इन्हें दिखानी है,

मुद्दों से भटकाने की यह अद्भुत अजब कहानी है।

सच को सच कहने वाले ही देशद्रोह में शामिल हैं,

लाश को काँधा देने वाले कहलाते सब क़ातिल हैं।

चोर, लुटेरे, डाँकू, दुश्मन, सब हैं कुर्ते के भेष में, 

घोटालों का जन्म इन्हीं से, हुआ हमारे देश में।

इस भ्रष्टाचारी लोकतंत्र में, झूठ की पूजा होती है,

ये कैसी सरकार है साहब........


© प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
         सतना ( म.प्र )
     मो. 9981153574


कविता - '' देखो यहाँ विकास हो रहा '' - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

  कविता   

     'देखो यहाँ विकास हो रहा !'

         


सारे शहर में खुदा है गड्ढा, सड़क का सत्यानाश हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोलें, देखो यहाँ विकास हो रहा।

चार वर्ष ये नींद में गहरी, जी जी भरकर सोया करते।

जनता इनके पैर की जूती, नहीं किसी से कभी ये डरते।

जब चुनाव की बारी आती, होश में तब ये आते हैं,

ढेरों वादे और घोषणा की झोली भर लाते हैं।

तब इनको लगता है, जनता के हिस्से की बात करें।

उनको ही भगवान बनाएँ, पूजा भी दिनरात करें।

जिनका रहा विरोध हमेशा, अब उनपर विश्वास हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा......


रुतबा इनका ऐसा है कि, ऊपर ही पेशाब करेंगे।

अपने हक की बात करो तो, उसमें बहुत हिसाब करेंगे।

जब चुनाव की बारी आयी, इन्होंने इतना प्यार है बाँटा।

कइयों के खाते तक देखो, पैसे कई हज़ार है बाँटा।

जन की सेवा करने खातिर, गाँव गाँव में मित्र बनाए।

जनसेवा ने ज़हर खा लिया, इन्होंने अपने वोट गिनाए।

सब उनके बन गए प्रचारक, ऐसा ही आभास हो रहा।

नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा........ 


   © प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय' 

        सतना ( म. प्र. ) 
        मोबा - 9981153574





अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...