साहित्य अकादमी भोपाल- युवा रचनाधर्मी कुंभ 2025
दिनांक 15 सितंबर 2025 को मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल और संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'भारतीय मातृभाषा अनुष्ठान' में शामिल होने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
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| युवा शायर कुनाल बरकड़े |
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भूख लगे तो सहना सीखो,
सच को झूठा कहना सीखो।
दर्द उठे तो कुछ मत बोलो,
पीड़ाओं संग रहना सीखो।
जिनके पॉंव दबी हो गर्दन,
बस उनके गुण गाते जाओ....
जीवन रोज़ बिताते जाओ....
पढ़ना लिखना ठीक नहीं है।
मिलती भी कुछ सीख नहीं है।
चोरी और डकैती अच्छी,
कम से कम ये भीख नहीं है।
सदा सुरक्षित रहोगे साथी,
उनके पॉंव दबाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ...
नेताओं के तलवे चाटो।
ज़हर मिलाकर पानी बाटो।
जो अपनी आवाज़ उठाएँ,
पहले उनकी गर्दन काटो।
सीधे सादे लोगों को तुम,
ऐसे ही लतियाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ...
बेमतलब की भाषा बोलो,
गली गली तलवारें खोलो,
बहे जिधर नफ़रत की ऑंधी,
तुम भी उसी दिशा में हो लो,
नेकी करके क्या कर लोगे ?
लूट लूट कर खाते जाओ...
जीवन रोज़ बिताते जाओ....
- कवि प्रियांशु 'प्रिय' सतना ( मध्यप्रदेश )
🪷 तमिल ग्रंथ तिरुक्कुरल और बघेली का संगम 🪷
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| केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान के द्वार पर.... |
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| देशभर से आए विभिन्न भाषाओं के विद्वान |
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| समापन समारोह में वक्तव्य देते हुए कवि प्रियांशु |
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| समापन समारोह में वक्तव्य देते हुए कवि प्रियांशु साथ ही मंचासीन अतिथि |
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| समापन समारोह में वक्तव्य देते हुए कवि प्रियांशु |
9 से 15 जुलाई 2025 तक चेन्नई स्थित केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान (CICT) में प्रसिद्ध तमिल ग्रंथ ‘तिरुक्कुरल’ की विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद समीक्षा हेतु एक विशेष कार्यशाला आयोजित हुई। सौभाग्य की बात है कि मुझे बघेली भाषा के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया। पूरे भारत से आए विद्वानों के साथ मिलकर इस ऐतिहासिक ग्रंथ की गहराई को समझना और अपनी भाषा में उसका मूल्यांकन करना एक अविस्मरणीय अनुभव रहा। इस अवसर पर मैं संस्थान के निदेशक प्रो. के. चंद्रशेखरन सर, रजिस्ट्रार डॉ. आर. भुवनेश्वरी मैम, मद्रास विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सरस्वती मैंम, प्रो. गोपालकृष्णन सर तथा आयोजन समन्वयक डॉ. अलगुमुत्थु वी. सर का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ। जिन्होंने इस ग्रंथ को विभिन्न भाषाओं के साथ जोड़ने हेतु विचार किया।
गर्व है कि उत्तर भारत की भाषाएं अब धीरे-धीरे दक्षिण भारत में भी सुनी और समझी जा रही हैं। बघेली के माध्यम से 'तिरुक्कुरल' से जुड़ना मेरे लिए केवल एक दायित्व नहीं बल्कि आत्मिक सुख का अनुभव रहा। शीघ्र ही 'तिरुक्कुरल' का बघेली अनुवादित संस्करण प्रकाशित होगा।
CICT की पूरी टीम का हृदय से धन्यवाद। ❤️
Central Institute of Classical Tamil
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कक्कू के परधानी मा
कादव कीचर मा रेंग रेंग, लड़िका बच्चा स्कूल जायं।
गामन के यहै समस्या का, नेताजी रोजै भूल जायं।
गाड़ी वाहन से निकरय वाला, अंतरे दुसरे गोड्डाय रहा।
घिनहे रस्ता अउ हीला मा, पहिरे ओन्हा लेथराय रहा।
आवेदन उनखे लघे जाय त, गारी बरसय बानी मा।
रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा।
जब चुनाव के बेरा आबय, घर घर माहीं आबत हें।
बीस मेर के वादा कइके, वोट ईं सबसे मागत हें।।
जीत गें जबसे अपने काहीं, देउता मानय लागे हें।
इनहिंन के वोटर अब इनहीं, घिनहे लागय लागे हें।
तनै लिहिन दस मंजिल आपन, जनता रहिगै छान्ही मा।
रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा।
सीधी सतना रीमां सबतर, गांव गांव या हाल रहै।
सुनय नहीं कोउ इनखर, जनता रोबय बेहाल रहै।।
सुरुक लिहिन सरकारी पइसा, सोमय टांग पसारे।,
भोग रही ही भोगय जनता, धइके हाथ कपारे।
कवि प्रियांशु लिखत हें कविता, बाचैं रोज कहानी मा।
रोड नहीं बन पाई असमौं, कक्कू के परधानी मा।
हम बस
यहाँ कुंवारे बैठे
जैसे दीमक लकड़ी को खाता है
ठीक उसी तरह,
धीरे धीरे खाती जा रही है
विचारधारा
मनुष्य के मस्तिष्क को..
रोज़ अनेक संस्थाएं बनती जा रही हैं।
विचारधारा को अपनाकर..
कोई गरीब की बात करता है
कोई दबे कुचलों की बात करता है
तो इंकार कर देती है एक विचारधारा इसे अपनाने से
कोई अमीरों की बात करता है
कोई पूंजीपतियों की बात करता है
तो इंकार कर देती है दूसरी विचारधारा इसे अपनाने से
शामिल होना चाहता हूं,
एक ऐसी विचारधारा में,
जो करें मनुष्य की बात और निर्माण करे मानवता का..
- प्रियांशु 'प्रिय'
बेटी की विदाई पर बघेली कविता
अम्मा रोमयं , बहिनी रोमयं, रोमयं सगले भाई,
बाबौ काहीं खूब रोबाइस, बिटिया केर बिदाई।
बिटिया केही भए मा बाबा, खूब उरांव मनाइन ते,
अपने अपने कइती सबजन, कनिया मा छुपकाइन ते।
चारिउ कइती जंका मंका, खूबय खर्चा कीन्हिंन तै,
यहै खुशी के खातिर बाबा, सबतर नेउता दीन्हिन तै।
कइ दिन्हिंन अब काज हो दादा, होइगै वहौ पराई।
बाबौ काहीं खूब रोबाइस, बिटिया केर बिदाई.......
घर के बहिनी बिटिया आईं, मेंहदी लागय लाग,
सुध कइ कइ के काजे केहीं, ऑंसू आमय लाग।
आस पड़ोस के सबै मेहेरिया, घर मा आमय लागीं,
सबजन साथै बइठिके देखी, अंजुरी गामय लागीं।
रहि रहि ऑंसू बहय आज हम, कइसन केर छिपाई,
बाबा काहीं खूब रोबाइस, बिटिया केर बिदाई.......
फूफू काकी मउसी बहिनी, ऑंसू खूब बहामय,
बाबा रोमय सिसक सिसक के, बेटी का छुपकामय।
बिदा के दरकी बिटिया काहीं , अम्मा गले लगाए,
रोए न लाला बोलि बोलिके, ऑंसू रहै बहाए।
सीढ़ी के कोनमा मा बइठे, रोमय सगले भाई,
बाबा काहीं खूब रोबाइस, बिटिया केर बिदाई....... - कवि प्रियांशु 'प्रिय' मो. 9981153574
गाँँव गोहार : एक सापेक्ष आकलन - गीतकार सुमेर सिंह शैलेश बघेली के लोकप्रिय कवि सूर्यभान कुश...