‘सैफू के बघेली गीत’ कृति की भूमिका जो कि अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे डा. भगवती प्रसाद शुक्ल जी द्वारा 1982 में लिखी गई थी।
शनिवार, 3 मई 2025
‘सैफू के बघेली गीत’ कृति की भूमिका
बघेली कवि सैफुद्दीन सिद्दीकी सैफू जी का परिचय
सैफू जी के पिता मुंशी नजीरूद्दीन सिद्दीकी 'उपमा' हिंदी उर्दू तथा बघेली के प्रतिभा संपन्न कवि थे। इनके पिता की दो प्रकाशित कृतियाँ 'उपमा भजनावली' और 'बहारे कजली' मिलती है। काव्य रूचि अपने पिता से प्राप्त कर श्री सैफू ने बचपन से ही कविता करना प्रारंभ कर दिया था। अपने पिता के समान आप भी बघेली एवं हिंदी के परम अराधक थे।
सैफू जी को हिंदी उर्दू अरबी तथा अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था। कवि सैफू जी सतना जिले में राजस्व निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे।
कवि सैफू जी ने आयुर्वेद चिकित्सा विशारद एवं हिंदी साहित्य रत्न की परीक्षा पास करने के बाद कुछ समय तक एक सफल वैद्य के रूप में जनता की सेवा की है। समयाभाव के कारण वे वैद्यक से दूर रहे और फिर जीवनपर्यंन्त लोक साहित्य के अध्ययन एवं रचना में संलग्न रहे। सैफू जी की बघेली कविताएँ एवं कहानियाँ प्रकाश, भास्कर, बांधवीय, जागरण आदि पत्राें में प्रकाशित होने के साथ साथ आकाशवाणी रीवा से भी प्रसारित होती रहीं।
सन् 1977 में बघेली लोक कला समारोह सीधी में भाषा विभाग भोपाल से इनकी प्रथम कृति 'दिया बरी भा अंजोर' में 1500 रूपए का दुष्यंत पुरस्कार दिया गया था। सैफू जी की अनेक रचनाऍं स्वर्गीय श्रीमान बांधवीय महाराजा श्री गुलाब सिंह जूदेव रीवा नरेश द्वारा पुरस्कृत किया गया था। उन दिनों कवि सम्मेलन आदि में सैफू जी की रचनाएँ श्रोता बड़े चाव से सुनते थे।
सैफू जी की प्रमुख कृतियाँ
1. दिया बरी भा अंजोर ( बघेली काव्य संग्रह )
7. चिटका की राख ( बघेली में एक चिटका की कहानी )
8. इन्दल दिल्लू ( प्रबंध काव्य )
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हिंदुस्तानी सैनिक पर बघेली कविता
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सीमा मा जे डटे लाग हें,भारत माता के लै नाम।
हाथ जोड़िके उई सैनिक का,बारंबार प्रनाम।
महतारी के ममिता छाड़िन,बहिनी केर पियार।
देश के रक्षा करैं के खीतिर, होइगे हें तैयार ।
जीरो डिगरी तापमान मा,रात रात भर पहरा।
हाथ गोड़ सब ठिठुर जाय,या परै गजब के कोहिरा।
हिम्मत कबौ न हारै फौजी,आपन फरिज निभामै।
आखी कउनौ काढ़ै दुश्मन,चट्टै धूल चटामैं।
घर दुआर जब त्यागिन आपन ,लगी दाव मा जान।
बड़े चैन से तबहिन सोबा आपन हिन्दुस्तान ।
सीमा मा बैरिन के लाने,खड़े है बनिके काल।
तनी रहैं बंदूखै हरदम,चलै जो कउनौ चाल।
धन्य हेमे उई बाप हो भाई धन्य हिबै महतारी।
जन्म दिहिस अइसन लड़िकन,करथें रक्षाकारी।
कहैं प्रियांशु फौजी साथी,नमन है तुम्ही सपूत।
माथे मा रज धूल धराके,सेवा करै अकूत।
- कवि प्रियांशु ' प्रिय'
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