गुरुवार, 13 मार्च 2025

होली पर बघेली कविता

 होली पर बघेली कविता 


आज आय होली‌ हो भैया, रंगन के तेउहार।
मिलजुल सबके रंग लगाई, बना रहै बेउहार।

उचैं बिहन्ने लड़िका बच्चा, खूब उराव मनामय।
कइयक मेर के रंग डारिके, सबकाहीं नहबामय।

फगुआ के य पर्व मा देखी, सबजन‌ रंग लगाई।
सरहज संघ नंदोई खेलैं, देवर संग भौजाई।

पै आजकाल्ह के लड़िका देखा, करैं खूब हुड़दंग।
गोबर माटी सान सून के , रहैं थपोके रंग।।

कुछ त भाई चिन्हांय न कइसौ, थोपे हें एक झउआ।
कुछ जन घूमयं चाईं माईं, पिए हें एक दुई पउआ।।

डी जे के कंउहट के आगे, हेरान गॉंव के रीत।
अब न निकहा रंग लगामैं, अउर न फगुआ गीत।।

संस्कृति या बचामय खातिर, रहा खूब गंभीर।
माथे केर तिलक न छूटय, गलुआ लगै अबीर।।

कहैं प्रियांशु सुना सबय जन, साथी भाई हितुआ।
चली नगरिया ढोलकी लइके, सबजन गाई फगुआ।‌

- कवि प्रियांशु प्रिय 
सतना ( म.प्र )

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