होली पर बघेली कविता
आज आय फगुआ हो भैया,रंगन के तेउहार।
आपस माही प्रेम जगाबै,बना रहै बेउहार।
चारिउ कइती खूब मची है,होली के हुड़दंग।
बूढ़ लड़िकबा लड़िका छेहर,दहबोरे हें रंग।
गलुआ लाल लगै अस करिया,जइसन कउनौ भूत।
बरस रहा है प्रेम रंग, तुम लूट सका ल्या लूट।
भउजी लुकी रहै कोठबा मा,बचै कहां से भाई।
पहुची लड़िकन केही टोली,बहिरे का लै आई।
रगडि रगड़ि के रंग लगाइन,दिहिन खूब दहबोर।
बुरा न मानो होली के है मचा गजब के शोर।
पीके भांग मगन के कक्का,काकिउ ही पगलान।
छानिके प उआ दादू बागै,अउचट हें बइहान।
खूब टनाटन ढोलकी बाजै,गामै फगुआ गीत।
बघेलखंड के गजब है फगुआ,गजब इहां के रीत।
कुसुली बनै घरन मा भैया, जे आबै व पाबै।
रंग गुलाल लगाबै मन ई,या तेउहार मनाबै।
डीजे केर चोगाड़ा माही,कूदि रहे है लल्ला।
भउजी नाच रही है देखी,मारिके उल्टा पल्ला।
कहै प्रियांशु फगुआ गाउब,खेलब हमहूं होली।
सुनी कहां से कबिता अपना,हरबी से अब बोली।
- कवि प्रियांशु प्रिय
सतना (म.प्र.)
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