मंगलवार, 11 मार्च 2025

तब की होली और अब की होली

 

                                तब की होली और अब की होली


होली देश के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। यह रंगों की फुहार के साथ प्रेम बरसाने का त्‍योहार है। समूचा देश तो इसे बड़े हर्षोल्‍लास के साथ मनाता ही है परंतु अपने बघेलखंड में आज भी इसे अपने अद्भुत ढंग और बड़े उत्‍साह के साथ मनाने के लिए जाना जाता है। पहले जैसे तो नहीं पर आज भी हमारे गाँव के कुछ लोग इसे अपनी पुरानी परंपराओं के साथ मनाते हैं, जो देखते ही बनता है। होली के कुछ दिन पूर्व ही बच्‍चों में इस त्‍योहार का उत्‍साह पैदा हो जाता है और वे इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। चूंकि भारतीय परंपराओं में होली का त्‍योहार दो दिन का निर्धारित किया गया है। प्रथम दिवस होलिका दहन और उसके अगले दिन फगुआ। अब समय बदल रहा है और त्‍योहारों को उत्‍सव के साथ मनाने की वह धूम क्षीण होती जा रही है। हमारे पूर्वज बताते हैं कि अब यह त्‍योहार उतनी धूम-धाम से नहीं मनाया जाता। जितना उनके समय में था।  

होलिका दहन के 15 से 20 दिन पूर्व ही हमारे गाँव के लड़के तमाम लकड़ी आदि इकट्ठा करना शुरू कर दिया करते थे और इस रोज की शाम आसपास के तमाम लोग इकट्ठा होकर इसमें शामिल होते थे। पूर्वजों के अनुसार यह दिन बहुत महत्‍वपूर्ण माना जाता है। उनका कहना है कि यह बुराई में अच्‍छाई की जीत का पर्व है। होलि‍का दहन के वक्‍त उसके चारों ओर घूमकर लोग अपने हाथों में ‘राई, नमक और चोकर’ से नज़र उतारते हैं। मान्‍यता है कि अगर हमारे भीतर किसी बुरी शक्‍ति ने प्रवेश कर लिया है तो ऐसा करने से वह बाहर हो जाएगी। होलिका दहन का यह पर्व गाँवों में आज भी उतने ही हर्षोल्‍लास के साथ मनाया जाता है।

इसके अगले दिन ही फगुआ आता है। जैसे हमारे बघेलखंड में अनेक त्‍योहार और पर्वों के लिए वि‍भिन्‍न लोकगीत गाए जाते हैं, उसी तरह होली के दिन भी फगुआ गाने परंपरा है। जिसमें पुरूषों और महिलाओं के अलग अलग फगुआ गीत गाए जाते हैं। महि‍लाओं द्वारा गाए जाने वाले कई फगुआ गीतों में परदेसी प्र‍ियतम की याद छिपी रहती है। इस संदर्भ में एक फगुआ गीत की पंक्‍तियां देखिए -

      ‘‘तोरी सूरत लिखी है, नगीना मा,

       पिया अउबै तू कउने महीना मा,

       चार महीना गरमी के आए, टुप- टुप चुअए पसीना मा..

       पिया अउबै तू कउने........ ’’   

 

इस दिन लोग ढोलक और नगरिया लेकर इकट्ठा होते हैं और फगुआ गाते हैं। पहले-पहल गाँवों में फगुआ गाने और सुनने वालों की बहुत भीड़ इकट्ठा होती थी परंतु अब यह नहीं देखने को मिलता। डी.जे. के कोलाहल के बीच नगरिया, झाँझ आदि की मधुर धुन विलुप्‍त होती जा रही है। पुरूषों द्वारा बघेलखंड में गाए जाने वाले फगुआ गीत की कुछ पंक्‍तियां देखिए –

   ‘‘को खेलै लाल ऐसी होली, को खेलै लाल ऐसी होली,

    कोउ पहिरै पाग पितंबर, कोउ गुदड़ी रंग चोली।

    कउने शहर मा खेला मचा है, कउने के परिगै सिर डोली।

    जनक शहर मा खेला मचा है, रामौ के परिगै सिर डोली।’’

 

फगुआ गाने के साथ-साथ इस दिन तमाम द्वेष, घृणा मिटाकर रंग, अबीर, गुलाल से मिश्रित उत्‍साह और प्रसन्‍नता को हम सबपर छिड़कते हैं और होली मनाते हैं। नन्‍हें बच्चों में यह उत्साह तो आज भी बना रहता है। परंतु मोबाइल आदि आ जाने से यह त्योहार स्टेटस में बधाई प्रेषित करने तक होता जा रहा है। होली पर एक उक्‍त‍ि तो प्रसिद्ध ही है ‘बुरा न मानो, होली है’। इसीलिए इस दिन हास-पर‍िहास करते हुए देवर-भौजाई और सरहज-नंदोई का होली खेलना भी खूब जन-प्रसिद्ध है। जिसमें भौजाई द्वारा देवर को मिठाई और बतासों से बनी माला पहनाई जाती थी। संभवत: अब कम ही देखने को मिलता है परंतु एक ज़माने में ससुराल पक्ष वाले अपने दामाद को होली के दिन आ‍मंत्रित करते थे और उन्हें खूब रंग लगाते थे। इस दिन जब गाँव और पड़ोस के लोग हमारे घर गुलाल और अबीर लगाने आते हैं तब उन्‍हें हम बघेलखंड के विविध प्रकार के व्‍यंजन जैसे कुसुली (गुझिया),पपरी, आदि भी खिलाकर खूब स्‍वागत करते हैं। ऐसी अनेक अविस्मरणीय यादें हैं जो होली से जुड़ी हैं। समय बदलते बदलते सभी त्‍योहारों को मनाने का उत्‍साह भी अब कम होता जा रहा है। परंतु आज भी कुछ लोग हमारी लोकपरंपराओं और संस्‍कृति को जीवंत रखे हुए हैं।

- कवि प्र‍ियांशु प्र‍िय 

शनिवार, 8 मार्च 2025

काव्‍य पाठ, दूरदर्शन भोपाल

काव्‍य पाठ, दूरदर्शन भोपाल 

रिकॉर्डिंग - 30 अक्‍टूबर 2024 
प्रसारण
- 23 नवंबर 2024 
समय
- सायं 03:30 बजे से 

जब कविता लिखना शुरु किया था। तब बहुत इच्छा हुआ करती थी कि किसी अख़बार में अपनी कविता प्रकाशित हो। उसके बाद‌‌ जब ज़रा-सी साहित्यिक समझ आई तब साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में भी अपनी रचनाएं प्रकाशन के लिए भेजने लगा। पिछले दस वर्षों में विभिन्न अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं प्रकाशित हुईं इन्हीं वर्षों में कई दफ़ा आकाशवाणी के माध्यम से भी मेरी कविताओं का प्रसारण होता‌‌ रहा।

इन्हीं कुछ छोटी उपलब्धियों को पाने के बाद अक्सर मन होता था कि कभी मेरी कविताएं भी टी वी के माध्यम से देशभर में सुनाई दें। आपके स्नेह से ये अभिलाषा भी पूर्ण हुई। दिनांक 23 नवंबर 2024 को सायं 3:30 बजे मेरी बघेली कविताओं का प्रसारण राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन मध्यप्रदेश पर हुआ। दूरदर्शन की टीम और सभी श्रोताओं का आभार ♥️
 


काव्‍य पाठ का वीडियो देखने के लिए क्‍लिक करें -






काव्‍य पाठ करते हुए कवि प्रियांशु प्रिय 

दूरदर्शन में काव्‍य पाठ करते हुए कवि प्रियांशु प्रिय 




सृजनात्मक कार्यशाला, नर्मदापुरम, 23/24 फरवरी 2025

 सृजनात्मक कार्यशाला, नर्मदापुरम, 23/24 फरवरी 2025 

मैं दिनांक 23 और 24 फरवरी 2025 को साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित मध्यप्रदेश के युवा रचनाकारों की सृजनात्मक कार्यशाला में शामिल होने नर्मदापुरम गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के‌ निदेशक श्री विकास दवे जी, श्री गिरेंद्र सिंह भदौरिया जी, प्रो. कृष्ण गोपाल मिश्र जी, श्री नित्य गोपाल कटारे जी, श्री संतोष व्यास जी, श्री अशोक जमनानी जी सहित कई साहित्यिक मनीषी उपस्थित रहे। 


काव्‍य पाठ करते हुए कवि प्र‍ियांशु प्रिय  

काव्‍य पाठ क‍रते हुए कवि प्र‍ियांशु प्रिय

साहित्‍य अकादमी, भोपाल, मध्‍यप्रदेश के निदेशक डॉ विकास दवे जी के साथ 

प्रो. कृष्‍ण गोपाल मिश्र जी के साथ 


कवि‍ सम्‍मेलन , विट्स कॉलेज, सतना , 02.02.2025

 कवि‍ सम्‍मेलन , विट्स कॉलेज, सतना , 02.02.2025

आकार वेलफेयर सोसाइटी के तत्‍वावधान में विट्स कॉलेज, सतना में चल रहे दो दिवसीय कला उत्‍सव के द्वितीय दिवस में कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें जिले के नामवर कवि पद्मश्री बाबूलाल दाहिया जी सहित अनेक कवियों के साथ मैंने भी काव्‍य पाठ और इस कवि सम्‍मेलन का मं‍च संचालन किया। इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में मुख्‍य अतिथि रहीं राज्‍य मंत्री प्रतिमा बागरी जी ने सभी कवियों को स्मृति चिन्‍ह देकर सम्‍मानित किया। आकार वेलफेयर सोसाइटी की प्रमुख अनामिका सिंह जी, अमित शुक्‍ला जी, मयंक अग्निहोत्री जी के साथ पूरी टीम का बहुत आभार। 

वी‍डियो देखने के लिए क्लि‍क करें - 



काव्‍य पाठ करते हुए कवि प्र‍ियांशु प्रि‍य


पद्मश्री बाबूलाल दा‍हिया जी के साथ  

राज्य मंत्री प्रत‍िमा बागरी जी स्‍मृति चिन्‍ह प्रदान करते हुए
राज्‍यमंत्री प्रतिमा बागरी जी, आकार वेलफेयर सोसाइटी की अध्‍यक्ष अनामिका स‍िंह और कथाकार वंदना अवस्‍थी दुबे जी के साथ

पद्मश्री बाबूलाल दा‍हिया जी के साथ

साह‍ि‍त्य अकादमी कार्यक्रम, मैहर 28.02.25

साहि‍त्‍य समारोह , मैहर , 28.02.2025

साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल के तत्वावधान में स्वामी दयानंद सरस्वती जी स्मृति प्रसंग व्याख्यान एवं रचनापाठ साहित्य समारोह दिनांक 28 फरवरी, 2025 को मैहर में आयोजित  किया गया। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष डॉ रामानुज पाठक, सेवानिवृत्त हिंदी प्राध्यापक डॉ गया प्रसाद चौरसिया ने स्वामी दयानंद सरस्वती जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इसके पश्चात द्वितीय सत्र में कवियों का रचनापाठ आयोजित हुआ।‌ जिसके मंच संचालन का दायित्व मैंने निभाया। पाठक मंच के संयोजक श्री अनिल अयान जी सहित उपस्थित सभी साहित्यिक मनीषियों एवं श्रोताओं का बहुत आभार। 

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काव्‍य पाठ करते हुए कवि प्र‍ियांशु प्रिय  
 


कवि सम्‍मेलनीय मंच संंचालन के वक्‍त कव‍ि प्रियांशु    






समस्‍त कवि 



कवयित्री प्रियंका मिश्रा, ओज कवि सुरेश सौरभ, गीतकार रामनरेश त्रिपाठी और कवि प्र‍ि‍यांशु 






साहित्‍य अका‍दमी, भोपाल मध्‍यप्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे जी द्वारा सम्‍मान प्राप्‍त करते हुए कवि प्र‍ियांशु





मंगलवार, 4 मार्च 2025

प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता

 प्रकृति की खूबसूरती पर बघेली कविता  

नई नवेली दुलहिन जइसा धरती करे सिंगार।
हरियाली के बिछा बिछौना,देखी सबतर हार।।
गोहू गजब गलेथा देखी,होइगा हबै जवान।
छप्पन इंची सीना कीन्हे,घूमै फिरै किसान।
सरसो राई ओड़िके पियरी,मंद मंद मुसकाय।
अरसी कलशा लिहे ठाढ़ ही,मन माहीं हरसाय।
मनमनाय के फूली अरहर,करहे अमिया आम।
चढ़ा बसंती रंग है देखी,सुबहौ दुपहर शाम।
तितली भौरा भनभनाय के लगे खूब मेड़रांय।
धरती सजी गजब के देखी,रितुराज गा आय।
ठंडी ठंड़ी हबा चलै जब,बिरबा लहरा लेय।
प्रकृति केर है गजब नजारा,जिउ हरियर करि देय।
चली गाँव मेड़़न मा बागी,खेतन माही घूमी।
गाँव केर पावन माटी का,चली चली सब चूमीं।
कहैं प्रियांशु स्वर्ग के दर्शन सब जन करी निसोच।
शिमला कुल्लू और मनाली,काहे जई निसोच। - कवि प्रि‍यांशु 'प्रिय' सतना (म प्र)

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू

भाईचारा मरिगा दादू, मनई हबय कसाई,
एक बीता के जाघा माहीं, लपटयं भाई भाई।

नहीं आय अब प्रेम प्यार कुछ, मनई है खिसियान,
सगला दिन बस पैसा केहीं पाछे है पछियान।

पइसै सेहीं बनय रहा है मनई खूब बेउहार,
पइसै वालेन केही जलवा उनह‍िंंन के तेउहार।

पइसै वालेन केहीं देखी, पाछे सगले बागय,
जेखर खीसा छूंछ रहथै, ओसे दूरी भागय।

पइसा देखि‍के नेरे अइहैं, साथी हेली मेली,
नह‍िं त दूरी रह‍िहैं तुमसे, भले बोलाबा डेली।

पइसा रही जो तुम्‍हरे ठइआं, दुश्‍मन भाई बोली,
नेता ओता गोड़न गिर‍िहैं, रूप‍िया अइसा डोली।

पइसै खातिर भटक रहा है, मनई सांझ सकारे।
सगला दिन व जिउ टोरथै , आंखीं काढ़े काढ़े ।।

कहैं प्रियांशु दिखन जमाना, बदला है धौं कइसा।
ओहिन कइती होंय सबय जन, भरा है जेखे पइसा।।

- कव‍ि प्रियांशु प्रिय

कविता- जीवन रोज़ बिताते जाओ

       जीवन रोज़ बिताते जाओ                                                                                भूख लगे तो सहना सीखो, सच को झूठा ...