शनिवार, 24 सितंबर 2016

कविता - शिक्षक का सम्मान

                    शिक्षक का सम्मान    


   
जड़ चेतन मन भरा है जिसने,
   बुद्धि गजब महान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...।


   सारे जग के युग निर्माता,
   यही हैं भारत भाग्य विधाता...
   ज्ञान ज्योति दे तिमिर काटते ,
   विद्या यही प्रदाता...
   आओ सब मिल करें वंदना,

   करें आज गुणगान ......
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...

   बिन गुरु ज्ञान कभी न मिलता,
   जीवन रहे अधूरा ...
   जो आता है शरण में इनकी,
   होता सपना पूरा...
   नित्य सिखाते निश्छल मन से,
   ज्ञान और विज्ञान...
   करें सब शिक्षक का सम्मान ...
   करें सब....।


   देव तुल्य है गुरु हमारे,
   करें वंदना आओ...
   गुरुओं के सम्मान में आकर,
   शिक्षक दिवस संदेशा देता,
   शिक्षक जगत महान...
   सब शिक्षक का सम्मान ...

   करें सब.....।


© प्रियांशु कुशवाहा
     सतना (म. प्र.)
Mo. 9981153574

बुधवार, 21 सितंबर 2016

प्रशस्ति पत्र - दैनिक श्रेष्ठ रचनाकार


साहित्‍य संगम संस्‍थान द्वारा प्रियांशु कुशवाहा को 'दैनिक श्रेष्‍ठ रचनाकार' के रूप में सम्‍मानित किया गया। 
   


रविवार, 18 सितंबर 2016

कविता - ' नमन है तुझको हिन्दुस्तान'

      कविता 

नमन है तुझको हिन्दुस्तान

नव प्रभात की स्वर्णिम किरणें ,करती नित्य शृंंगार।    
ऊंचे-ऊंचे पर्वत सुंदर, बने मेखलाकार ।
झर-झर करते निर्मल झरने,देते पांव पखार ।
इस धरती की सुंदरता ने दिए यही उपहार। 
गंगा-यमुना का अमृत जल ,करे नित्य यश गान।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान...।

ब्रह्मपुत्र, कावेरी, सरिता कल-कल बहती जाती ।
बढ़े चलो तुम मंजिल पथ पर,पल-पल कहती जाती ।
देश प्रेम की अमर कथाएँ,नया जोश भर देतीं ।
यही ऊर्जा स्फूर्ति ही ,दुश्मन को हर लेतीं।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों से,सदा गूंजते ज्ञान।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान...।

लेकिन अब अफसोस हो रहा, वर्तमान परिदृश्यों पर ।
शर्मनाक जो घटित हो रहे, हालातों और दृश्यों पर।
जन-गण-मन है त्रसित आजकल, देख नित्य हालातों को ।
भ्रष्ट और लाचार व्यवस्था,होते निस दिन घातों को ।
जिसके सर पर भार देश का, वो बस करते है आराम ।
नमन है तुझको हिन्दुस्तान ।

✒ प्रियांशु कुशवाहा 
शा० स्ना० महाविद्यालय ,
  सतना ( मध्यप्रदेश) 


कविता - ' उसको ही मंजिल मिलती है "

          ( कविता )

  " उसको ही मंज़ि‍ल मिलती है "
                       
हार मान कर बैठ गए जो, कभी नहीं वे बढ़ते हैं ।
उसको ही मंजिल मिलती है ,जो कठिन राह पर चलते हैं ।

नन्हीं चीटी धीरे-धीरे,पर्वत चोटी लेती चूम।
गिरती और सम्हलती क्रमशः,नहीं देखती पीछे घूम ।
संघर्षों को आत्मसात कर,पग में कभी न डरते हैं ।
उसको ही मंजिल......

तिनका-तिनका खोज-खोजकर,चिड़िया अपना नीड़ बनाती ।
हार मान कर वह थकती जो , नन्हें चूजे कहाँ सुलाती ।
श्रम ही जिनका लक्ष्य भला, वह कहाँ कभी भी थकते हैं । 
उसको ही मंजिल ......

इसलिए अब चलो साथियों ,सीखें अथक परिश्रम करना । 
यही हमारा मूल मंत्र हो, सीखें हर पल मेहनत करना ।
जिसने भी इसको अपनाया , वो कभी न हारा करते हैं ।
उसको ही मंजिल........

-  प्रियांशु कुशवाहा  
  डिग्री कालेज, सतना
   मो. 9981153574

अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...