रविवार, 18 सितंबर 2016

कविता - ' उसको ही मंजिल मिलती है "

          ( कविता )

  " उसको ही मंज़ि‍ल मिलती है "
                       
हार मान कर बैठ गए जो, कभी नहीं वे बढ़ते हैं ।
उसको ही मंजिल मिलती है ,जो कठिन राह पर चलते हैं ।

नन्हीं चीटी धीरे-धीरे,पर्वत चोटी लेती चूम।
गिरती और सम्हलती क्रमशः,नहीं देखती पीछे घूम ।
संघर्षों को आत्मसात कर,पग में कभी न डरते हैं ।
उसको ही मंजिल......

तिनका-तिनका खोज-खोजकर,चिड़िया अपना नीड़ बनाती ।
हार मान कर वह थकती जो , नन्हें चूजे कहाँ सुलाती ।
श्रम ही जिनका लक्ष्य भला, वह कहाँ कभी भी थकते हैं । 
उसको ही मंजिल ......

इसलिए अब चलो साथियों ,सीखें अथक परिश्रम करना । 
यही हमारा मूल मंत्र हो, सीखें हर पल मेहनत करना ।
जिसने भी इसको अपनाया , वो कभी न हारा करते हैं ।
उसको ही मंजिल........

-  प्रियांशु कुशवाहा  
  डिग्री कालेज, सतना
   मो. 9981153574

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