कविता -
' वंचित होकर सुविधाओं से '
' वंचित होकर सुविधाओं से '
सारे शहर में खुदा है गड्ढा, सड़क का सत्यानाश हो रहा।
चार वर्ष ये नींद में गहरी, जी जी भरकर सोया करते।
जनता इनके पैर की जूती, नहीं किसी से कभी ये डरते।
जब चुनाव की बारी आती, होश में तब ये आते हैं,
ढेरों वादे और घोषणा की झोली भर लाते हैं।
तब इनको लगता है, जनता के हिस्से की बात करें।
उनको ही भगवान बनाएँ, पूजा भी दिनरात करें।
जिनका रहा विरोध हमेशा, अब उनपर विश्वास हो रहा।
नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा......
रुतबा इनका ऐसा है कि, ऊपर ही पेशाब करेंगे।
अपने हक की बात करो तो, उसमें बहुत हिसाब करेंगे।
जब चुनाव की बारी आयी, इन्होंने इतना प्यार है बाँटा।
कइयों के खाते तक देखो, पैसे कई हज़ार है बाँटा।
जन की सेवा करने खातिर, गाँव गाँव में मित्र बनाए।
जनसेवा ने ज़हर खा लिया, इन्होंने अपने वोट गिनाए।
सब उनके बन गए प्रचारक, ऐसा ही आभास हो रहा।
नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा........
कारगिल दिवस पर कविता
वीर सैनिकों पर मैं कोई श्रेष्ठ कविता लिख सकूँ ये हिम्मत मेरी कलम में नहीं है परंतु अपने रचनात्मक सहयोग से उन अमर शहीदों को श्रद्धा सुमन तो अर्पित कर ही सकता हूँ। जिनके कारण हम सब चैन की नींद सो पाते हैं। 26 जुलाई 2023 को 24वाँ कारगिल दिवस समारोह विट्स कॉलेज, सतना में मनाया गया। जिसमें कई सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए साथ ही मैंने भी सैनिकों के सम्मान में अपने शब्द पुष्प अर्पित किए। सुनिए 28 ये कविता...... ❤️
कारगिल विजय दिवस VITS COLLEGE, SATNA |
बघेली कविता-
हमरे यहां आजादी ही ?
सबके सउहें नीक कही जे, ओहिन के बरबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है।
मजदूरन के चुअय पसीना,तब य भुइयाँ महकत ही,
सोन चिरइया बड़े बिहन्ने, सबके दुअरा चहकत ही।
रंग बिरंगा फूल का देखा, नद्दी देखा, हरियाली,
केतना सुंदर देश हबय य, चारिउ कइती उंजियाली।
सीमा माही लगे हमय जे, उनहिंन से है देश महान,
हमरे तुम्हरे पेट के खातिर, ठंडी गर्मी सहय किसान।
चोर, डकैती छुट्टा बागैं, उनहिंन के आबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है....
गाँधी जी के फोटो काहीं, चारिउ कइती देखित हे,
सत्य अहिंसा बिसर गयन है, यहै मनै मन सोचित हे।
देश के खातिर चढ़िगें फाँसी,सुन्यन भगत के अमर कहानी,
चंद्रशेखर आजाद छाड़िगें,भुइयाँ माहीं अमिट निशानी।
कमलादेवी, लक्ष्मीबाई , अउर सरोजिनी, झलकारी,
माटी खातिर जान दइ दिहिन, बहिनी,बिटिया,महतारी।
चार ठे माला पहिर के भइलो,बाँट दिहिन परसादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...
भाईचारा,साहुत बिरबा,जड़ से उईं निरबार दिहिन,
जाति धरम का आँगे कइके, मनइन काहीं मार दिहिन।
निबला काहीं मिलै न रोटी, फुटहे घर मा सोबत है,
निकहें दिन कइसा के अइहैं, यहै सोच के रोबत है।
गाड़ी, मोटर, बंगला वाले, अति गरीबी झेलत हें,
सबै योजनन के पइसा का, उईं साइड से पेलत हें।
लूट के पइसा भागें निधड़क, उनहिंन के अब चाँदी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...
लाड़ली बहना योजना
मध्यप्रदेश शासन की जनकल्याणकारी योजना "लाड़ली बहना योजना" पर आधारित बघेली लोकगीत सुनने के लिए क्लिक करें.............
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लाड़ली बहना योजना पर आधारित बघेली लोकगीत
स्टेटस न लगाऊँ तो स्टेटस बिगड़ता है
तकनीक बहुत जल्द आगे बढ़ रही है। अगर आज आप पैदल चल रहे हैं तो ये भी संभव है कि कोई नवीन तकनीक आपको सुबह बिस्तर से उठते ही हवा में उड़ाने लगे और बिना ज़मीन में पाँव रखे आप दुनियाँभर के सभी काम कर सकें। हालाँकि वक्त भी ऐसा आ रहा है कि लोग ज़मीन में पाँव रखना ही नहीं चाहते। दोस्तों एक वो ज़माना था जब न टी.वी. थी, न मोबाइल, न ही ऐसी कोई तकनीक जिससे सुदूर बैठे अपने सगे-संबंधी से शीघ्र संपर्क साधा जा सके। लोग बस चिट्ठियाँ भेजते रहते थे और अपने परिचित का हाल जान लेते थे और अब ये मोबाइल का ज़माना ऐसा है कि तुरंत दोस्ती, तुरंत रुठना और उसी वक्त मनाना भी हो जाता है। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो प्री, मेन्स और इंटरव्यू तत्काल पूरा हो जाता है।
मोबाइल आने से खूब फायदे और ढेर सारा नुकसान भी हुआ है। यहाँ आपके खाने पीने से लेकर उठने बैठने तक की ख़बर आपके परिचित को होगी। अच्छा मुझे याद आया कि जबसे मोबाइल और सोशल मीडिया आया है। तबसे आज का युवा तो ठीक है पर कुछ बुजुर्ग व्यक्तियों के भी जवानी के दिन जीवंत हो गए हैं। अच्छे दिन और कहीं आएँ हों या नहीं लेकिन सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी और इसके भीतर अपना महत्वपूर्ण ज्ञान दे रहे तरह तरह के विद्वानों के बेहद ही अच्छे और सुखद दिन आएँ हैं जिनकी विद्वता का बखान करना मेरी लेखनी के लिए भी कठिन हो रहा है। अब फेसबुक पे ही देख लीजिए। जुकरबर्ग जी ने इसे इसलिए ही बनाया था कि लोग एक दूसरे से जुड़ सकें। बातें कर सकें। पुराने दोस्त भी यहाँ मिल जाते हैं। कहने का तात्पर्य इसको बनाने का उनका प्रयोजन बहुत ही नेक का। लेकिन भला वो क्या जानते थे कि इसे चलाने वाले महारथी उनके प्रयोजन के साथ गिल्ली-डंडा खेल जाएँगे।
पिछले दिनों मयंक नया नया मोबाइल लेकर आया था। उसे इसके बारे में ज्यादा जानकारी न थी। लेकिन दोस्त होते हैं न ज्ञान के पिटारे। सो उसके मित्र राहुल ने उसे मोबाइल के सभी Functions बताए और उसकी एक Facebook ID भी बनवा ही दी। साथ ही ये भी बता दिया कि फेसबुक सर्च करने पर हम सबको अपने पुराने मित्र भी मिल सकते हैं। अब मयंक के मन में पुराने प्रेम के बीज पुनः अंकुरित होने लगे। उसने फौरन अपनी कॉलेज की मित्र सुषमा को सर्च करना शुरु किया। कॉलेज के दिनों में सुषमा मयंक की अच्छी मित्र थी। मयंक को तो उससे प्रेम भी हो गया था लेकिन उसने कभी भी सुषमा से इसका ज़िक्र नहीं किया था। अब ये अच्छा मौका था कि फेसबुक के द्वारा वो अपने प्यार का इज़हार भी कर दे। फेसबुक पर सर्च करने पर उसे ढेर सारी सुषमा दिखने लगीं। मयंक ने ज्यादा सोचा-विचारा नहीं तुरंत किसी सुषमा को मैसेज कर दिया। कॉलेजी दिनों में गुज़ारे हुए प्रत्यके पलों का उसने सारगर्भित रुप से बखान कर दिया। उम्मीद थी जल्द ही उसका रिप्लाई आएगा और प्रेम प्रस्ताव भी स्वीकार होगा। कुछ दिन गुज़र गए। मयंक घर में सो रहा था। पड़ोस वाली आंटी, मयंक की मम्मी के पास आईं और खूब बातें सुनाने लगीं। गुस्सा करने लगीं। मयंक की करतूतें बताने लगीं। संयोग से पड़ोस वाली आंटी का नाम सुषमा ही था और मयंक ने अपनी कॉलेज की मित्र समझकर उन्हें ही मैसेज किया था। अब आगे की कहानी बताने में मेरी मयंक के प्रति दया-भावना जागृत हो उठती है। तो यही सब समस्याएँ होती है। अच्छा ! कई बार तो ऐसा भी होता है कि अपनी नज़र में आने वाली खूबसूरत सी Angel Ankita वास्तव में पड़ोस का Ankit होता है। इसीलिए सतर्क रहें और अपने पुराने प्रेम को तलाशने के लिए किसी थाने में गुमशुदी की रिपोर्ट भले ही दर्ज करा दें लेकिन फेसबुक जैसे केंद्र में तो बिल्कुल ही न तलाशें।
ये तो रही फेसबुक की कहानी लेकिन बात सिर्फ यहीं नहीं खत्म होती। एक और सोशल मीडिया नेटवर्क है जिसे अब विश्वविद्यालय का दर्जा भी प्राप्त हो गया है। जी हाँ। व्हाट्स एप। इसे व्हाट्सएप कहता हूँ और इसके साथ विश्वविद्यालय या University नहीं जोड़ता तो ठीक उसी तरह अधूरा और बेकार सा लगता है जैसे कोई नवोदित किसी की कविता चुराए और स्वयं के नाम के साथ कवि न जोड़े। WhatsApp को विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण दर्जा दिलाने के लिए इसके सक्रिय उपयोगकर्ताओं का विशेष योगदान है। जो देश-विदेश में चल रही प्रत्येक हलचल पर पारखी नज़र रखते हैं साथ ही अगर कभी भी वो नज़र धूमिल पड़ गई तो अपनी अप्रतिम कल्पनाशक्ति से अकल्पनीय ख़बरों को एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे को चंद सेकेंड में प्रेषित कर देते हैं। कुछ विद्वानों का ये भी कहना है कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए मूर्ख होना न्यूनतम योग्यता है। अब ज्यादा विश्लेषण नहीं करूँगा क्योंकि यह लेख मुझे एक मित्र के व्हाट्सएप पर भेजना है।
अच्छा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी दिन-ब-दिन अपने नए-नए Feature लाकर अपने विद्वार्थियों को ऐसा आभास कराती है जैसे कॉलेज में कोई नई प्रौफेसर आई हो। अब जैसे ये WhatsApp Status वाला Feature देख लीजिए। सुबह उठते ही Good Morning का स्टेटस लगाना बहुत ज़रुरी सा हो गया है। अपनी पल पल की हरकतों पर Update देना भी लोग आवश्यक समझते हैं। पिछले दिनों एक मित्र सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल उठाए और Status लगाया "Good Morning All Of You, आज कॉफी देर बात नींद खुली है। अब हगने जा रहा हूँ।" तुरंत उसके भाई ने स्टेटस देख लिया और बाथरुम में घुस गया। दुर्भाग्य से घर में एक ही बाथरुम था। ऐसी तमाम समस्याएँ WhatsApp Status ने पैदा कर दी हैं।
2 सितंबर को एक मित्र का जन्मदिन था। उसे दोस्त, रिश्तेदार, सगे-संबंधी सबकी शुभकामनाएँ आ रही थी। सबने अपने अपने WhatsApp के स्टेटस में उसकी फोटो लगाकर उसे शुमकामनाएँ दी। मैंने भी उसे शुभकामनाएँ दी। अपने WhatsApp Status पर उसकी दाँत दिखाते हुए एक फोटो भी लगा दी। लेकिन मेरे समझ में एक बात न आई। उन्हीं शुभकामनाओं का Screenshot लेकर उसने अपने WhatsApp में चिपकाया और फिर शुक्रिया कहा। मेरी छोटी व्हाट्सएप समझ के अनुसार तो वही रिप्लाई करके भी तो शुक्रिया कहा जा सकता था। मुझे तो स्टेटस पर दया आ रही थी। बेचारा असीमित स्क्रीनशॉट का भार कैसे संभालता होगा। हालांकि उसके 2296 शुभकामनाओं के ScreenShot में मैं शाम तक खुद का मैसेज तलाशता रहा। लेकिन मोबाइल डेटा खत्म हो जाने के कारण मैं खोजने में असफल रहा। उसके कुछ दिन बाद यानी 9 सितंबर को मेरा जन्मदिन था। सबने अपने अपने WhatsApp के Status में मेरी फोटो लगाई और शुभकामनाएँ दीं। स्वयं की तस्वीर उसके WhatsApp Status में देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई। मैंने भी उसका Screenshot लेकर स्टेटस में लगाया। उसके साथ साथ लगभग 356 लोगों को शुक्रिया कहा। दुर्भाग्य से सिर्फ उनकी शुभकामनाओं का Screenshot नहीं लगा पाया था। बस उसके बाद से उन्होंने बात करना बंद कर दिया। दोस्ती पर दाग बताने लगे और न जाने कितने अपशब्द भी कहें। इस WhatsApp Status ने मेरी दोस्ती भी तुड़वा दी। इसीलिए कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जन्मदिन में शुभकामनाएँ WhatsApp Status में लगाने से स्वयं के Status बिगड़ने का ख़तरा अधिक रहता है।
© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"
मो. 9981153574
बघेली कविता अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...