कविता
'देखो यहाँ विकास हो रहा !'
सारे शहर में खुदा है गड्ढा, सड़क का सत्यानाश हो रहा।
चार वर्ष ये नींद में गहरी, जी जी भरकर सोया करते।
जनता इनके पैर की जूती, नहीं किसी से कभी ये डरते।
जब चुनाव की बारी आती, होश में तब ये आते हैं,
ढेरों वादे और घोषणा की झोली भर लाते हैं।
तब इनको लगता है, जनता के हिस्से की बात करें।
उनको ही भगवान बनाएँ, पूजा भी दिनरात करें।
जिनका रहा विरोध हमेशा, अब उनपर विश्वास हो रहा।
नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा......
रुतबा इनका ऐसा है कि, ऊपर ही पेशाब करेंगे।
अपने हक की बात करो तो, उसमें बहुत हिसाब करेंगे।
जब चुनाव की बारी आयी, इन्होंने इतना प्यार है बाँटा।
कइयों के खाते तक देखो, पैसे कई हज़ार है बाँटा।
जन की सेवा करने खातिर, गाँव गाँव में मित्र बनाए।
जनसेवा ने ज़हर खा लिया, इन्होंने अपने वोट गिनाए।
सब उनके बन गए प्रचारक, ऐसा ही आभास हो रहा।
नेता मंत्री गर्व से बोले, देखों यहाँ विकास हो रहा........