गाँँव गोहार : एक सापेक्ष आकलन
- गीतकार सुमेर सिंह शैलेश
बघेली के लोकप्रिय कवि सूर्यभान कुशवाहा की उन्तीस बघेली रचनाओं का सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘गाँव गोहार’ शीर्षक से एकता सृजन कुटीर से प्रकाशित हुआ है। बघेली में ‘गोहार’ शब्द अपनी कातर आवाज़ को दूर दूर तक पहुँचाने के लिए प्रयुक्त होता है। किसी विशेष संकट के समय ही गोहार लगाई जाती है। आज देश और समाज में सबकुछ सुन जानकर भी अनसुना कर देने का प्रचलन दिखाई पड़ता है। ऐसी विकट परिस्थिति में ही कुछ विसंगतियों और यथार्थ की अभिव्यक्ति देने के लिए कवि गाँव की पीड़ा को वाणी देता है। भारत गाँवों को देश है। कवि अपने कथन में स्पष्ट करता है कि – ‘आजौ बहुतेरे गाँव गमइन मा गांधी बाबा के ग्राम स्वराज वाला सपना सच होत देखाई नहीं परै....मेर मेर के समस्यन से गाँव जूझि रहा है। चाहे घर दुआर पानी पिंगल के व्यवस्था होय या फेर गिरहस्थी के भरमजाल के।‘’ इसी केंद्रीय भावना के अनुरूप विभिन्न शीर्षकों से कविताएँ लिखी गई हैं। सभी का अभिप्रेत और संप्रेषण अपना अपना है।
महाकवि तुलसी, वाल्मीक और भवभूति से अलग हटकर रामकाव्य का सृजन करते हैं। जनबोली या जन भाषा अवधी में इस काव्य का संप्रेषण अपढ़ और निरक्षर जन जन तक अधिक व्यापक रूप से हुआ है। संप्रेषण में अपनी बोली भाषा का कोई शानी नहीं। पूर्वी हिंदी की बोलियों में अवधी की सगी बहन बघेली है, जो क्रियापदों की भिन्नता के साथ एक जैसी ही है। बघेलखंण्ड के सोंधी माटी की महक और मिठास बघेली के शब्द शब्द में अनुभव की जा सकती है। कवि सूर्यभान ने बघेली के ठेठ देशज और ग्राम्यज शब्दों का प्रयोग अपनी कविताओं में किया है। कवि ने गाँव के यथार्थ को भोगा है उसे ओढ़ा नहीं है, इसीलिए कविताओं से तल्ख सच्चाइयाँ झाँकती दिखाई पड़ती हैं।
- प्रो. सुमेर सिंह शैलेश
(सुप्रसिद्ध कवि/गीतकार)
बघेली कविता संग्रह 'गाँँव गोहार' पढ़ने के लिए नीचे दी हुई लिंक के माध्यम से आज ही खरीदें।
LINK 👉 GAON GOHAR | A Collection of Bagheli Poems
बघेली के लोकप्रिय कवि सूर्यभान कुशवाहा की उन्तीस बघेली रचनाओं का सद्य: प्रकाशित कविता संग्रह ‘गाँव गोहार’ शीर्षक से एकता सृजन कुटीर से प्रकाशित हुआ है। बघेली में ‘गोहार’ शब्द अपनी कातर आवाज़ को दूर दूर तक पहुँचाने के लिए प्रयुक्त होता है। किसी विशेष संकट के समय ही गोहार लगाई जाती है। आज देश और समाज में सबकुछ सुन जानकर भी अनसुना कर देने का प्रचलन दिखाई पड़ता है। ऐसी विकट परिस्थिति में ही कुछ विसंगतियों और यथार्थ की अभिव्यक्ति देने के लिए कवि गाँव की पीड़ा को वाणी देता है। भारत गाँवों को देश है। कवि अपने कथन में स्पष्ट करता है कि – ‘आजौ बहुतेरे गाँव गमइन मा गांधी बाबा के ग्राम स्वराज वाला सपना सच होत देखाई नहीं परै....मेर मेर के समस्यन से गाँव जूझि रहा है। चाहे घर दुआर पानी पिंगल के व्यवस्था होय या फेर गिरहस्थी के भरमजाल के।‘’ इसी केंद्रीय भावना के अनुरूप विभिन्न शीर्षकों से कविताएँ लिखी गई हैं। सभी का अभिप्रेत और संप्रेषण अपना अपना है।
महाकवि तुलसी, वाल्मीक और भवभूति से अलग हटकर रामकाव्य का सृजन करते हैं। जनबोली या जन भाषा अवधी में इस काव्य का संप्रेषण अपढ़ और निरक्षर जन जन तक अधिक व्यापक रूप से हुआ है। संप्रेषण में अपनी बोली भाषा का कोई शानी नहीं। पूर्वी हिंदी की बोलियों में अवधी की सगी बहन बघेली है, जो क्रियापदों की भिन्नता के साथ एक जैसी ही है। बघेलखंण्ड के सोंधी माटी की महक और मिठास बघेली के शब्द शब्द में अनुभव की जा सकती है। कवि सूर्यभान ने बघेली के ठेठ देशज और ग्राम्यज शब्दों का प्रयोग अपनी कविताओं में किया है। कवि ने गाँव के यथार्थ को भोगा है उसे ओढ़ा नहीं है, इसीलिए कविताओं से तल्ख सच्चाइयाँ झाँकती दिखाई पड़ती हैं।
- प्रो. सुमेर सिंह शैलेश
(सुप्रसिद्ध कवि/गीतकार)
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