नवरात्रि पर बघेली कविता
शनिवार, 5 अक्टूबर 2024
नवरात्रि पर बघेली कविता
शनिवार, 28 सितंबर 2024
बघेली हास्य कविता - बुलेट कार प्लैटीना - कवि प्रियांशु 'प्रिय'
बुलेट कार प्लैटीना
- कवि प्रियांशु 'प्रिय'
email - priyanshukushwaha74@gmail.com
बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता -
कइसा होय केबादा
सुना बताई सब गांमन मा कइसा
होय केबादा,
शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत
हें बेउहर जादा।
सचिव साहब आवास के खातिर बोलथें
हर दार,
ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई
बीस हजार।
आगनबाड़ी मा आबत ही लड़िकन
खातिर दरिया,
पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया
भंइसी छेरिया।
जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै
लाठी आरी,
बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस
खांय पटवारी।
सरकारी स्कूल मा देखन खूब मिलत
हैं ज्ञान,
कुछ मास्टर अउंघाय रहे हैं
कुछ त पड़े उतान।
कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,
- कवि प्रियांशु ‘प्रिय’
शनिवार, 21 सितंबर 2024
बघेली व्यंग्य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय
बघेली कविता
चारिउ कइती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,
फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।
शासन केर व्यवस्था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,
थिरक-थिरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।
हम जो बहिरे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,
मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।
शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,
अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।
रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,
गड्ढौ माहीं थिरक रहे हें, दीदी संघे दादा।
हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,
रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्रिय'
बघेली कविता -
डारिन खीसा घूंस
एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी
दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।
सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,
सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।
टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,
बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।
रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,
चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।
बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,
बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।
कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,
जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा
खांय।
होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,
चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।
- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574
शनिवार, 14 सितंबर 2024
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
अपनी बोली, अपनी भाषा से भला किसे प्रेम नहीं होता। हम और आप जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर राजस्थानी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि बोल रहे हैं। तो इन सब बोलियों का भी मीठी भाषा हिन्दी को प्रोत्साहित करने और इसकी सेवा करने में महनीय योगदान है।
सतना रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड तक आने के लिए जब आप ऑटो वाले से पूछते हैं कि "बस स्टैंड तक का कितना किराया लेंगे भइया?" तब वो अपनी क्षेत्रीय बघेली बोली में आपसे ये कहता है कि "भइया बीस रूपिया भर लागी।" तब ऑटो वाला बघेली बोली और आप हिंदी भाषा के विस्तार की एक कड़ी आगे बढ़ा चुके होते हैं। भाषाएं और बोलियॉं आपसी साहचर्य से एक दूसरे को विस्तार प्रदान करती हैं।
मैं गर्वित हूॅं कि बघेलखंड में मेरा जन्म हुआ है और मैंने हिंदी से पहले बघेली को जाना है, बघेली बोला है और बघेली को जिया भी है। कुछ वर्ष पूर्व मैं इंदौर में एक प्राइवेट रेडियो में उद्घोषक के पद पर कार्यरत था। वहॉं बघेली बोली में एक कार्यक्रम 'बघेली दरबार' किया करता था। हमारे कंटेन्ट को जॉंचने वाले बघेली नहीं जानते थे। जब पूरा कंटेन्ट बन जाता था तब मैं उन्हें इस कार्यक्रम में उपयोग किए गए बघेली के सभी शब्दों को समझाने के लिए हिंदी का ही सहारा लेता था।
विंध्य क्षेत्र से हटकर बघेली बोलते वक्त जब मैं असहज महसूस करता हूं। तब हर बार मुझे हिंदी ने ही सहारा दिया है। हिंदी आपको सहारा देती है। हिंदी आपको आत्मविश्वास प्रदान करती है। हिंदी भाव की भाषा है। सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते रहिए। हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
जय हिंदी। जय हिंदुस्तान।
- प्रियांशु 'प्रिय'
गुरुवार, 12 सितंबर 2024
बघेली कविता - 'बेरोजगार हयन'
बघेली कविता
बेरोजगार हयन
➨ प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा. 9981153574
अपने विंध्य के गांव
बघेली कविता अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...
-
बघेली के महाकवि स्वर्गीय श्री सैफुद्दीन सिद्दीकी ''सैफू'' जी का जन्म अमरपाटन तहसील के ग्राम रामनगर जिला सतना ( मध्य प्रदेश...
-
बघेली कविता ~ ( उनखे सरपंची मा ) केतना विकास भा उनखे सरपंची मा,, मनई उदास भा उनखे सरपंची मा,, गोरुआ अऊ बरदन का भूखे सोबायन,, हम...
-
कविता _ ( किसान ) अंधियारों को चीर रोशनी को जिसने दिखलाया है। और स्वंय घर पर अपने वह लिए अंधेरा आया है। जिसके होने से धरती का मन पावन...