शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

नवरात्रि पर बघेली कविता

 नवरात्रि पर बघेली कविता


सुनिल्या मोर गोहार 


दुर्गा मैया घरै बिराजा,सुनिल्या मोर गोहार।
हाथ जोड़िके करी चरउरी,बिनती बारंबार।

हम मूरूख जड़बोग हो माता,अकिल बाट नहिं थोरौ।
लउलितिया लै हमहूं मइया,दूनौं हाथ का जोरौं।

करी बघेली के हम सेबा,बर दीन्हें महतारी।
तोहरे बिना है कउन सहारा,सगला जीबन वारी।

टूट फूट अच्छर के माला,गुहिके हम्हूं चढ़ाई।
मैहर बाली देवी दाई,हम तोहका गोहराई।

तोहरे बिना आदेश के माई,पत्तौ भर न डोलै।
तोहरै किरपा होय जो मइया,गूंगौ निधड़क बोलै।

मांगी भीख हम्हूं विद्या के,हमरो कइत निहारा।
अइसय रोज बनाई कबिता,हमहूं का अब तारा।

जय जयकार लगाई सब जन कहैं प्रियांशु भाई।
ठोलकी अउर नगरिया लइके,चली भगत मिल गाई।


- कवि प्रियांशु 'प्रिय
   सतना ( म प्र )

शनिवार, 28 सितंबर 2024

बघेली हास्‍य कविता - बुलेट कार प्‍लैटीना - कवि प्रियांशु 'प्रिय'

बघेली हास्‍य कविता

बुलेट कार प्‍लैटीना


घर मा भूंजी भांग न एक्‍कौ, ऊपर छाओ टीना 
लड़‍िका अउंठा छाप हबै, पै ताने सबसे सीना।

गुन के आगर नाव उजागर, गुटका पउआ सोटै,
बीच सड़क मता रहै अउ नाली नरदा लोटै।

सीधी बागय रीमा बागय, बागय सतना डिसटि‍क,
मेहरा बनिके रील बनाबय, थोपे खूब लिपिस्टिक।

मुंह बनाय के बो‍करन जइसा, फोटो खूब खिचाबय,
ओहिन काहीं स्‍टेटस मा, सगला दिन चपकाबय।

डार अंगउछी नटई माहीं नेता युवा कहाबय।
गुटका अउर तमाखू खाके, निबले का मुरि‍हाबय।

फेरौ दद्दा कहैं कि दादू, ल‍ड़‍िका मोर नगीना,
काजे मा इनहूं का चाही बुलेट कार प्‍लैटीना। 

- कवि प्रियांशु 'प्रिय' 
मोबा. 9981153574
email - priyanshukushwaha74@gmail.com

बघेली कविता - कइसा होय केबादा - कवि प्र‍ियांशु प्रिय

बघेली कविता -  

कइसा होय केबादा


सुना बत‍ाई सब गांमन मा कइसा होय केबादा,

शासन केहीं लाभ मिलय जो लेत हें बेउहर जादा।

सचिव सा‍हब आवास के खातिर बोलथें हर दार,

ओहिन काहीं लाभ मिली जे देई बीस हजार।

आगनबाड़ी मा आबत ही लड़‍िकन खातिर दरिया,

पै खाय खाय पगुराय रही हैं गइया भंइसी छेरिया।

जघा जमीन के झगड़ा महीं चलथै लाठी आरी,

बिन पैसा के डोलैं न अब घूंस खांय पटवारी।

सरकारी स्‍कूल मा देखन खूब मिलत हैं ज्ञान,

कुछ मास्‍टर अउंघाय रहे हैं कुछ त पड़े उतान।

कवि प्रियांशु लिखिन है कविता, देख देख मनमानी,

कउन गाँव के आय या किस्‍सा अपना पंचे जानी।

-    कवि प्र‍ियांशु प्रिय

शनिवार, 21 सितंबर 2024

बघेली व्‍यंग्‍य कविता- हम सरकार से करी निवेदन - प्रियांशु प्रिय

                                                                   बघेली कविता  

                                  हम सरकार से करी निवेदन 

चारिउ क‍इती खोदा गड्ढा, बरस रहा है पानी,

फेरव रील बनाय रही हैं, मटक-मटक महरानी।

शासन केर व्‍यवस्‍था माहीं, मजा ईं सगला लेती हैं,

थिरक-थ‍िरक के बीच गइल मा, रोड जाम कइ देती हैं।

हम जो बह‍ि‍रे निकर गयन तो, लहटा रहै सनीचर,

मूडे से गोड़े थोपवायन, खास कांदव कीचर।

शहर के सगले गली गली मा, मिलय बीस ठे गड्ढा,

अंधियारे गोड्डाय जइथे, फाटय चड्ढी चड्ढा।

रील बनामय वालेन काहीं, अनुभव होइगा जादा,

गड्ढौ माहीं थ‍िरक रहे हें, दीदी संघे दादा।

हम सरकार से करी निवेदन, गड्ढन का भटबाबा,

रोड मा नाचैं वालेन काहीं, परबंध कुछु लगबाबा।

- प्रियांशु 'प्रिय'
मोबा- 9981153574

बघेली कविता - डारिन खीसा घूँस - प्रियांशु 'प्र‍िय'

                                                            बघेली कविता -               

                                      डारिन खीसा घूंस


                                       

एकठे गाँव के सुने जो होइहा, अइसा हिबय कहानी

दुई जन मिलिके खाइन पइसा, जनता मांगिस पानी।

सरपंच साहब सरकारी पइसा, लीन्हिंन सगला ठूस,

सचिव के संघे मिलिके भइया, डारिन खीसा घूंस।

टुटही फुटही छांधी वाले, सोमय परे उपास,

बंगला वाले बेउहर काहीं, जारी भा आवास।

रोड त एतनी निकही खासा, कांदव कीचर मा भरी रहै,

चउमासे के झरियारे मा, भइंसी लोटत परी रहैं।

बाँच रहा जउं चाउर गोहूं, भरिके एकठे बोरी,

बिकन के कोटेदार कहथे, रातिके होइगै चोरी।

कोउ वहां जो मुंह खोलै त, कुकुरन अस गमराय,

जेतना नहीं समाइत ओसे जादा पइसा खांय।

होई खासा नउमत दादू, हम न लेबै नाव,

चली बताई अपनै भइया, कउन आय व गाँव।

- प्रियांशु 'प्रिय' 

 मोबा- 9981153574

 

 

 

शनिवार, 14 सितंबर 2024

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

   

अपनी बोली, अपनी भाषा से भला किसे प्रेम नहीं होता। हम और आप जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निवास कर‌ राजस्थानी, ब्रज, बुंदेली, बघेली, अवधी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि बोल रहे हैं। तो इन सब बोलियों का भी मीठी भाषा हिन्दी को प्रोत्साहित करने और इसकी सेवा करने में महनीय‌ योगदान है।

सतना रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड तक आने‌ के लिए‌ जब आप ऑटो वाले से पूछते हैं कि "बस स्टैंड तक का कितना किराया लेंगे भइया?" तब वो अपनी क्षेत्रीय बघेली बोली में आपसे ये कहता‌ है कि "भइया‌ बीस रूपिया भर लागी।" तब ऑटो वाला बघेली बोली और आप हिंदी भाषा के विस्तार की एक कड़ी आगे बढ़ा चुके होते हैं। भाषाएं और बोलियॉं आपसी साहचर्य से एक दूसरे को विस्तार प्रदान करती हैं।

मैं गर्वित हूॅं कि बघेलखंड में मेरा जन्म हुआ है और मैंने हिंदी से पहले बघेली को जाना है, बघेली‌‌ बोला है और बघेली को जिया भी है। कुछ वर्ष पूर्व मैं इंदौर में एक प्राइवेट रेडियो में उद्घोषक के पद पर कार्यरत था।‌ वहॉं बघेली बोली में एक कार्यक्रम 'बघेली दरबार' किया करता था। हमारे कंटेन्ट को जॉंचने‌ वाले बघेली नहीं जानते थे। जब पूरा कंटेन्ट बन‌ जाता था तब मैं उन्हें इस कार्यक्रम में उपयोग किए गए बघेली के सभी शब्दों को समझाने के‌ लिए हिंदी का ही सहारा‌‌ लेता था।

विंध्य क्षेत्र से हटकर बघेली बोलते वक्त जब मैं असहज महसूस करता‌ हूं। तब हर बार मुझे हिंदी ने ही सहारा‌‌ दिया है। हिंदी आपको सहारा देती‌ है। हिंदी आपको आत्मविश्वास प्रदान करती है। हिंदी‌ भाव की भाषा‌ है। सभी भाषाओं का सम्मान करते हुए हिंदी‌ बोलते, पढ़ते और लिखते रहिए। हिंदी दिवस की‌ शुभकामनाएं।

जय हिंदी। जय हिंदुस्तान। 

- प्रियांशु 'प्रिय'

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

बघेली कविता - 'बेरोजगार हयन'

                                                                 बघेली कविता
 
                                                         बेरोजगार हयन


दिनभर माहीं दुक्ख का अपने‌,‌ रोइत कइयक‌ दार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

चार पॉंच ठे डिगरी ल‌इके, यहां‌‌ वहां हम बागित हे।
चिंता माहीं दिन न‌ सोई, रात रात भर जागित हे।
आस परोस के मन‌ई सोचैं, कउन पढ़ाई करे हबय।
बाबा के मुहूं निहारय न,‌छाती मा कोदौ दरे हबय।
दोस्त यार‌‌, हेली-मेली‌,‌ सुध करैं नहीं भूल्यो बिसरे।
एक रहा जमाना जब सगले, फोन करैं अतरे दुसरे।
लइके कागज ऐखे ओखे, लगाइत खूब गोहार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

बाबा बोलय करा किसानी, मिलै कहौं रोजगार‌ नहीं।
अब खेती कइसा होई हमसे, जिउ टोरैं के तार‌‌ नहीं।
कुछ जने कहथे बाबा से, एकठे दुकान खोलबाय द्या।
ओहिन मा बइठाबा ऐखा, निरमा, साबुन‌‌ रखबाय द्या।
धंधौ खोलय खातिर भैया, पइसा फसमय के तार नहीं।
कर्जा एतना काढ़ लिहन कि, मॉंगे मिलै उधार नहीं।
खीसा मा रूपिया नहीं एक, रोइत असुअन के‌‌ धार‌ हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

रिस्तदार अउ पट्टिदार सब,बाबा का फोन‌ लगाबत हें।
लड़िका तुम्हार काजे का है,बिटिया‌ रोज बताबत हें।
बाबा या कहिके रखैं फोन,का तुमहीं कुछु देखाय नहीं।
केखर बिटिया अई भला,जब लड़िका मोर कमाय नहीं।
सब देख देख चउआन हयन, किस्मत कइ‌ निहारिथे।
करम जउन लिखबा आयन है, कागज मा वहै‌ उतारिथे।
खासा संघर्ष दिखन जीवन मा, अउ झेलैं का तइयार हयन।
दादू हम बेरोजगार हयन।

प्रि‍यांशु 'प्रिय'
मोबा. 9981153574


अपने विंध्य के गांव

बघेली कविता  अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...