बघेली मुक्तक
कुच्छ लिहिन उज्जर त कुच्छ करिया बेसाह लाएं
वहाँ दादा लड़कउना के काजे के तइयारी करैं
यहाँ परोस के गाँव से दादू मेहेरिया बेसाह लाएं
बघेली मुक्तक
कुच्छ लिहिन उज्जर त कुच्छ करिया बेसाह लाएं
वहाँ दादा लड़कउना के काजे के तइयारी करैं
यहाँ परोस के गाँव से दादू मेहेरिया बेसाह लाएं
बघेली मुक्तक
रचनाकार - प्रियांशु 'प्रिय'
1.
दुइ जन मिलिके एंकई दबाबत हें।
दुइ जन मिलिके ओंकई दबाबत हें।
काल्ह व CM HELPLINE मा शिकायत का किहिस।
आज अधिकारी ओखर नटई दबाबत हें।
2.
चुनाव मा जब निसोच भाषन मिलथै
जनता का हर दरकी आश्वासन मिलथै
रोड, गली नसान रहै त कुच्छ न बोल्या
काहे कि फ्री मा पाँच किलो
राशन मिलथै
3.
साल भरे के कमाई मा छेरिया बेसाह
लाएं
कुच्छ लिहिन उज्जर त कुच्छ करिया
बेसाह लाएं
वहाँ दादा लड़कउना के काजे के तइयारी
करैं
यहाँ परोस के गाँव से दादू मेहेरिया बेसाह लाएं
4.
या आम नहीं एकदम खास देबाबत है
किरिया करथै अउर बिसुआस देबाबत है
बड़ा सस्ता सचिव है एकठे गाँँव के भइया
मात्र बीस हजार लेथै फेर आवास देबाबत है
5.
तुम्हरे भर गोहार मारे से हल्ला नहीं होय
सगली बस्ती से बड़ा मोहल्ला नहीं होय
गरीब मजदूरी कइके आपन पेट भरथै
कोटा मा ओखे खातिर गल्ला नहीं होय
6.
मड़इया बनी ही पै खारिया चुकी ही
भुईं मा बइठित हे बोरिया चुकी ही
यहाँँ गइया निकहे से पल्हात नहीं आय
वहाँँ आगनबाड़ी मा दरिया चुकी ही
7.
कोउ नहीं कहिस कि फरेबी रहे हें
पूरे गाँँव मा बांटत जलेबी रहे हें
बंदी हे जे तीन सौ छिहत्तर के केस मा
एक जन बताइन कि समाजसेवी रहे हें
🖋 प्रियांशु 'प्रिय'
फलाने अरझे रहिगें
मिली जीत न हार, फलाने अरझे रहिगें,
जनता लिहिस बिचार, फलाने अरझे रहिगें।
अब होइगा बंटाधार, फलाने अरझे रहिगें।
अतरे दुसरे इनखर उनखर बइठक लागय,
कइसौ बनय सरकार, फलाने अरझे रहिगें।
ईं अपसय मा साल साल भर लपटयं जूझैं,
अब बनय रहें ब्योहार, फलाने अरझे रहिगें।
पाँच साल हम गोहरायन सब बहिर रहे हें,
तब कहयं हमीं गद्दार, फलाने अरझे रहिगें।
✏ प्रियांशु कुशवाहा ‘प्रिय’
बिकन रहे हें दारु नेता।
एक बोतल सीसी बहुँकामैं,
बोट खरीदैं चून लगामैं।
चंगु-मंगु बाटैं पर्चा,
नेताजी के खूब ही चर्चा।
चारिउ कइती डीजे बाजय,
उठिके मनई नींद से जागय।
हल्ला-गुल्ला मचा हबय हो,
देखा हमरे गाँव मा...
चीन्हैं नहीं परोसी जिनखा,
ऊँ दादू खड़े चुनाव मा...
पइसा पेलैं मा टंच रहें हें,
दादू पूर्व सरपंच रहे हें।
घर दुअरा आपन बनबाइन,
आने काहीं खूब रोबाइन।
फेरौ अबकी जोड़ैं हाथ,
तेल लगामय आधी रात।
एक दरकी जो देई साथ,
गाँव भरे के होय विकास।
छुअय मा जेखा घिनात रहें,
गिरथें उनखे पाँव मा।।
चीन्हैं नहीं परोसी जिनखा,
ऊईं दादू खड़े चुनाव मा...
✒ प्रियांशु कुशवाहा
सतना ( म.प्र.)
बघेली कविता
करिन खूब घोटाला दादू
चरित्र बहुत है काला दादू।
गनी गरीब के हींसा माहीं,
मार दिहिन ही ताला दादू।
उईं अंग्रेजी झटक रहे हें,
डार के नटई माला दादू।
तुम्हरे घरे मा होई हीटर,
हमरे इहाँ है पाला दादू।
अबै चुनाव के बेरा आई,
मरा है मनई उसाला दादू।
✒ प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
सतना (म.प्र.)
द्वार हमारे मधुमालती
मन जब भी एकाकी होता है तब कही एकांत में सुकून की तलाश होने लगती है। द्वेष,क्लेश से मुक्त होकर प्राकृतिक अनुभूति को स्पर्श करने का ये मन करने लगता है। प्रकृति वास्तव में कितनी मनमोहक होती है। जंगल, नदी, पहाड़ आदि के बिना दुनियाँँ की खूबसूरती संभव नहीं है। हम एक छोटी सी बगिया भी बनाते हैं तो उसकी देखभाल एक छोटे बच्चे की भाँँति करतेे हैं क्योंकि हमें पता होता है कि यही क्यारियाँँ, यही रंग बिरंगे पुष्प ही आँँगन का शृंगार करते हैं।
मेरे कमरे के ठीक सामने कई फूलों के पौधे लगे हुए हैं। उनमें से एक मधुमालती भी है। सुबह उठते ही पहली दृष्टि इन्हीं पुष्पाें पर पड़ती है। मन भावविभोर हो जाता है। एक दिन सहसा इन्हीं मधुमालती के फूलों को देखकर कुछ पंक्तियाँँ भी लिख गईं-----
सुबह सुबह ये मैंने देखा,
सुंदरता की अनुपम रेखा।
हल्की हल्की पुरवाई थी।
नन्हीं कलियाँँ शरमाई थी।
आँँगन शृंगारित कर देती,
ऐसे ऐसे रंग डालती।
द्वार हमारे मधुमालती।
द्वार हमारे मधुमालती ..........................
-- प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
बघेली कविता अपने विंध्य के गांव भाई चारा साहुत बिरबा, अपनापन के भाव। केतने सुंदर केतने निकहे अपने विंध्य के गांव। छाधी खपड़ा माटी के घर,सुं...