शनिवार, 26 अगस्त 2023

बघेली कविता- हमरे यहां आजादी ही ?

 बघेली कविता-
                    हमरे यहां आजादी ही ?

रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'

सबके सउहें नीक कही जे, ओहिन के बरबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है।

मजदूरन के चुअय पसीना,तब य भुइयाँ महकत ही,
सोन चिरइया बड़े बिहन्ने, सबके दुअरा चहकत ही।
रंग बिरंगा फूल का देखा, नद्दी देखा, हरियाली,
केतना सुंदर देश हबय य, चारिउ कइती उंजियाली।
सीमा माही लगे हमय जे, उनहिंन से है देश महान,
हमरे तुम्हरे पेट के खातिर, ठंडी गर्मी सहय किसान।
चोर, डकैती छुट्टा बागैं, उनहिंन के आबादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है....

गाँधी जी के फोटो काहीं, चारिउ कइती देखित हे,
सत्य अहिंसा बिसर गयन है, यहै मनै मन सोचित हे।
देश के खातिर चढ़िगें फाँसी,सुन्यन भगत के अमर कहानी,
चंद्रशेखर आजाद छाड़िगें,भुइयाँ माहीं अमिट निशानी।
कमलादेवी, लक्ष्मीबाई , अउर सरोजिनी, झलकारी,
माटी खातिर जान दइ दिहिन, बहिनी,बिटिया,महतारी।
चार ठे माला पहिर के भइलो,बाँट दिहिन परसादी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...

भाईचारा,साहुत बिरबा,जड़ से उईं निरबार दिहिन,
जाति धरम का आँगे कइके, मनइन काहीं मार दिहिन।
निबला काहीं मिलै न रोटी, फुटहे घर मा सोबत है,
निकहें दिन कइसा के अइहैं, यहै सोच के रोबत है।
गाड़ी, मोटर, बंगला वाले, अति गरीबी झेलत हें,
सबै योजनन के पइसा का, उईं साइड से पेलत हें।
लूट के पइसा भागें निधड़क, उनहिंन के अब चाँदी है।
केसे भला जाय के बोली ? हमरे इहाँ आजादी है...

 रचनाकार - प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'
सतना , ( मध्यप्रदेश )   MOB - 9981153574



सोमवार, 10 अप्रैल 2023

लाड़ली बहना योजना पर आधारित प्रियांशु 'प्रि‍य' द्वारा रचित बघेली लोकगीत

लाड़ली बहना योजना 

एक कवि या लेखक का लिखना तभी सार्थक हो जाता है जब उसका लिखा जन जन के कंठ में बस जाए।
मेरा सौभाग्य ही है कि मध्यप्रदेश शासन की जनकल्याणकारी योजना #लाड़ली_बहना_योजना” पर आधारित मेरा स्वरचित #बघेली_लोकगीत ( चला चली बहिनी मिल खुशियाँ मनाई, नई योजना है आई...) हर सुबह "स्वच्छता गाड़ी" के माध्यम से पूरे #सतना शहर में बजाया जा रहा......
मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग और नगर निगम सतना का आभार ❤🙏🏻

मध्यप्रदेश शासन की जनकल्याणकारी योजना "लाड़ली बहना योजना" पर आधारित बघेली लोकगीत सुनने के लिए क्‍लि‍क करें.............  

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 लाड़ली बहना योजना पर आधारित बघेली लोकगीत


चला चली बहिनी मिल खुशियाँ मनाई,
नई योजना है आई।।
शिवराज भैया के चली गुण गाई,
नई योजना है आई।।

1. नाम है एखर लाड़ली बहना,
नहिं आय मालूम अब न कहना,
फारम सब जन भरिके रहना।
चला लइके आधार चली खाता खोलबाई
नई योजना है आई......


2. एक हज़ार महीना अइहैं।
कोउ नहीं दलाली खइहैं।
सीधे खाते मा आ जइहैं।
अपने समग्र के KYC कराई,
नई योजना है आई......

3. उमिर है तेइस से लै साठ,
बरी बियाही बांध ल्या गांठ,
पइसा पउबै होइहै ठाठ।
परितगता बहिनिउ के होई भलाई,
नई योजना है आई.........

4. जिनखे बाहन है चरचक्का,
नहिं आय पात्र बताई पक्का,
जागा बहिनी खोला जक्का।
बहिनिन के भाग जगी मौका सुखदाई,
नई योजना है आई.........

5. फारम भरैं मोहल्ला अइहैं,
कैंप लगी फोटो खिचबइहैं,
लिख पढ़ बहिनी खुद लइ जइहैं।
कुल रहीं बहिनी औ कुलुक रही माईं,
नई योजना है आई......

© प्रियांशु कुशवाहा

















शनिवार, 10 सितंबर 2022

व्यंग्य ~ स्टेटस न लगाऊँ तो स्टेटस बिगड़ता है

 व्यंग्य-

स्टेटस न लगाऊँ तो स्टेटस बिगड़ता है


तकनीक बहुत जल्द आगे बढ़ रही है। अगर आज आप पैदल चल रहे हैं तो ये भी संभव है कि कोई नवीन तकनीक आपको सुबह बिस्तर से उठते ही हवा में उड़ाने लगे और बिना ज़मीन में पाँव रखे आप दुनियाँभर के सभी काम कर सकें। हालाँकि वक्त भी ऐसा आ रहा है कि लोग ज़मीन में पाँव रखना ही नहीं चाहते। दोस्तों एक वो ज़माना था जब न टी.वी. थी, न मोबाइल, न ही ऐसी कोई तकनीक जिससे सुदूर बैठे अपने सगे-संबंधी से शीघ्र संपर्क साधा जा सके। लोग बस चिट्ठियाँ भेजते रहते थे और अपने परिचित का हाल जान लेते थे और अब ये मोबाइल का ज़माना ऐसा है कि तुरंत दोस्ती, तुरंत रुठना और उसी वक्त मनाना भी हो जाता है। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो प्री, मेन्स और इंटरव्यू तत्काल पूरा हो जाता है।


मोबाइल आने से खूब फायदे और ढेर सारा नुकसान भी हुआ है। यहाँ आपके खाने पीने से लेकर उठने बैठने तक की ख़बर आपके परिचित को होगी। अच्छा मुझे याद आया कि जबसे मोबाइल और सोशल मीडिया आया है। तबसे आज का युवा तो ठीक है पर कुछ बुजुर्ग व्यक्तियों के भी जवानी के दिन जीवंत हो गए हैं। अच्छे दिन और कहीं आएँ हों या नहीं लेकिन सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी और इसके भीतर अपना महत्वपूर्ण ज्ञान दे रहे तरह तरह के विद्वानों के बेहद ही अच्छे और सुखद दिन आएँ हैं जिनकी विद्वता का बखान करना मेरी लेखनी के लिए भी कठिन हो रहा है। अब फेसबुक पे ही देख लीजिए। जुकरबर्ग जी ने इसे इसलिए ही बनाया था कि लोग एक दूसरे से जुड़ सकें। बातें कर सकें। पुराने दोस्त भी यहाँ मिल जाते हैं। कहने का तात्पर्य इसको बनाने का उनका प्रयोजन बहुत ही नेक का। लेकिन भला वो क्या जानते थे कि इसे चलाने वाले महारथी उनके प्रयोजन के साथ गिल्ली-डंडा खेल जाएँगे।


पिछले दिनों मयंक नया नया मोबाइल लेकर आया था। उसे इसके बारे में ज्यादा जानकारी न थी। लेकिन दोस्त होते हैं न ज्ञान के पिटारे। सो उसके मित्र राहुल ने उसे मोबाइल के सभी Functions बताए और उसकी एक Facebook ID भी बनवा ही दी। साथ ही ये भी बता दिया कि फेसबुक सर्च करने पर हम सबको अपने पुराने मित्र भी मिल सकते हैं। अब मयंक के मन में पुराने प्रेम के बीज पुनः अंकुरित होने लगे। उसने फौरन अपनी कॉलेज की मित्र सुषमा को सर्च करना शुरु किया। कॉलेज के दिनों में सुषमा मयंक की अच्छी मित्र थी। मयंक को तो उससे प्रेम भी हो गया था लेकिन उसने कभी भी सुषमा से इसका ज़िक्र नहीं किया था। अब ये अच्छा मौका था कि फेसबुक के द्वारा वो अपने प्यार का इज़हार भी कर दे। फेसबुक पर सर्च करने पर उसे ढेर सारी सुषमा दिखने लगीं। मयंक ने ज्यादा सोचा-विचारा नहीं तुरंत किसी सुषमा को मैसेज कर दिया। कॉलेजी दिनों में गुज़ारे हुए प्रत्यके पलों का उसने सारगर्भित रुप से बखान कर दिया। उम्मीद थी जल्द ही उसका रिप्लाई आएगा और प्रेम प्रस्ताव भी स्वीकार होगा। कुछ दिन गुज़र गए। मयंक घर में सो रहा था। पड़ोस वाली आंटी, मयंक की मम्मी के पास आईं और खूब बातें सुनाने लगीं। गुस्सा करने लगीं। मयंक की करतूतें बताने लगीं। संयोग से पड़ोस वाली आंटी का नाम सुषमा ही था और मयंक ने अपनी कॉलेज की मित्र समझकर उन्हें ही मैसेज किया था। अब आगे की कहानी बताने में मेरी मयंक के प्रति दया-भावना जागृत हो उठती है। तो यही सब समस्याएँ होती है। अच्छा ! कई बार तो ऐसा भी होता है कि अपनी नज़र में आने वाली खूबसूरत सी Angel Ankita वास्तव में पड़ोस का Ankit होता है। इसीलिए सतर्क रहें और अपने पुराने प्रेम को तलाशने के लिए किसी थाने में गुमशुदी की रिपोर्ट भले ही दर्ज करा दें लेकिन फेसबुक जैसे केंद्र में तो बिल्कुल ही न तलाशें।


ये तो रही फेसबुक की कहानी लेकिन बात सिर्फ यहीं नहीं खत्म होती। एक और सोशल मीडिया नेटवर्क है जिसे अब विश्वविद्यालय का दर्जा भी प्राप्त हो गया है। जी हाँ। व्हाट्स एप। इसे व्हाट्सएप कहता हूँ और इसके साथ विश्वविद्यालय या University नहीं जोड़ता तो ठीक उसी तरह अधूरा और बेकार सा लगता है जैसे कोई नवोदित किसी की कविता चुराए और स्वयं के नाम के साथ कवि न जोड़े। WhatsApp को विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण दर्जा दिलाने के लिए इसके सक्रिय उपयोगकर्ताओं का विशेष योगदान है। जो देश-विदेश में चल रही प्रत्येक हलचल पर पारखी नज़र रखते हैं साथ ही अगर कभी भी वो नज़र धूमिल पड़ गई तो अपनी अप्रतिम कल्पनाशक्ति से अकल्पनीय ख़बरों को एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे को चंद सेकेंड में प्रेषित कर देते हैं। कुछ विद्वानों का ये भी कहना है कि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए मूर्ख होना न्यूनतम योग्यता है। अब ज्यादा विश्लेषण नहीं करूँगा क्योंकि यह लेख मुझे एक मित्र के व्हाट्सएप पर भेजना है। 

अच्छा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी दिन-ब-दिन अपने नए-नए Feature लाकर अपने विद्वार्थियों को ऐसा आभास कराती है जैसे कॉलेज में कोई नई प्रौफेसर आई हो। अब जैसे ये WhatsApp Status वाला Feature देख लीजिए। सुबह उठते ही Good Morning का स्टेटस लगाना बहुत ज़रुरी सा हो गया है। अपनी पल पल की हरकतों पर Update देना भी लोग आवश्यक समझते हैं। पिछले दिनों एक मित्र सुबह उठते ही सबसे पहले मोबाइल उठाए और Status लगाया "Good Morning All Of You, आज कॉफी देर बात नींद खुली है। अब हगने जा रहा हूँ।" तुरंत उसके भाई ने स्टेटस देख लिया और बाथरुम में घुस गया। दुर्भाग्य से घर में एक ही बाथरुम था। ऐसी तमाम समस्याएँ WhatsApp Status ने पैदा कर दी हैं। 

2 सितंबर को एक मित्र का जन्मदिन था। उसे दोस्त, रिश्तेदार, सगे-संबंधी सबकी शुभकामनाएँ आ रही थी। सबने अपने अपने WhatsApp के स्टेटस में उसकी फोटो लगाकर उसे शुमकामनाएँ दी। मैंने भी उसे शुभकामनाएँ दी। अपने WhatsApp Status पर उसकी दाँत दिखाते हुए एक फोटो भी लगा दी। लेकिन मेरे समझ में एक बात न आई। उन्हीं शुभकामनाओं का Screenshot लेकर उसने अपने WhatsApp में चिपकाया और फिर शुक्रिया कहा। मेरी छोटी व्हाट्सएप समझ के अनुसार तो वही रिप्लाई करके भी तो शुक्रिया कहा जा सकता था। मुझे तो स्टेटस पर दया आ रही थी। बेचारा असीमित स्क्रीनशॉट का भार कैसे संभालता होगा। हालांकि उसके 2296 शुभकामनाओं के ScreenShot में मैं शाम तक खुद का मैसेज तलाशता रहा। लेकिन मोबाइल डेटा खत्म हो जाने के कारण मैं खोजने में असफल रहा। उसके कुछ दिन बाद यानी 9 सितंबर को मेरा जन्मदिन था। सबने अपने अपने WhatsApp के Status में मेरी फोटो लगाई और शुभकामनाएँ दीं। स्वयं की तस्वीर उसके WhatsApp Status में देखकर मुझे भी बहुत खुशी हुई। मैंने भी  उसका Screenshot लेकर स्टेटस में लगाया। उसके साथ साथ लगभग 356 लोगों को शुक्रिया कहा। दुर्भाग्य से सिर्फ उनकी शुभकामनाओं का Screenshot नहीं लगा पाया था। बस उसके बाद से उन्होंने बात करना बंद कर दिया। दोस्ती पर दाग बताने लगे और न जाने कितने अपशब्द भी कहें। इस WhatsApp Status ने मेरी दोस्ती भी तुड़वा दी। इसीलिए कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जन्मदिन में शुभकामनाएँ WhatsApp Status में लगाने से स्वयं के Status बिगड़ने का ख़तरा अधिक रहता है। 


© प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय"

मो. 9981153574






रविवार, 14 नवंबर 2021

बाल दिवस



 

ये फोटो लगभग ३-४ वर्ष पुरानी है। जब अपने ननिहाल रामगढ़ गया था। वहीं समीप में जानकी कुंड नामक एक स्थान है। ये छोटे बच्चे वहीं मछलियाँ पकड़ रहे थे। इनके माता-पिता भी वहीं थे। मैंने इनके स्कूल के बारे में पूछना चाहा तो इनके पिता के कहा कि “भैया सुबह मजदूरी करते हैं और शाम तक ये तय नहीं रहता कि सुबह का पैसा मिलेगा भी या नहीं, ऐसी स्थिति में भला ये कैसे स्कूल जाएँगे?”  सरकार द्वारा शिक्षा के लिए बनाई गई तमाम योजनाएँ सिर्फ और सिर्फ काग़ज़ों पर देखने के लिए ही होती हैं। अदम गोंडवी ने लिखा भी है -

'तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है।'
'मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।'

यहाँ की व्यवस्था उन सभी योजनाओं को पूँजीपतियों की झोली में डालती है। अगर आज के दौर में भी हम इन बच्चों को स्कूलों और किताबों से दूर रखेंगे तो देश की उन्नति निश्चित ही अंधकार से भरी दिशा की ओर चली जाएगी। हालाकि मैं कभी किसी विशेष जाति या समुदाय की बात नहीं करता पर इन दिनों सरकार अपने वोट बैंक के लिए जाति धर्म का अच्छा-खासा उपयोग कर रही है। इसीलिए यहाँ यह भी सूचित कर दूँ कि इस फोटो में दिख रहे दोनों बच्चे आदिवासी हैं। १५ नवंबर को बिरसा मुंडा जयंती पर आदिवासियों के लिए विशेष कार्यक्रम भी आयोजित होना हैं। भले ही सरकार अपने फायदे के लिए ये कार्य करे किंतु आशा है रामगढ़ (सतना) के इन बच्चों के साथ साथ देश के ऐसे तमाम उन बच्चों को भी वो शिक्षा और सुविधाएँ मिलेंगी जिसके वो हकदार हैं। तभी ऐसे प्रत्येक कार्यक्रम करना सार्थक और सफल होगा। अपनी अप्रतिम नवल चेतना से देश का भविष्य निर्धारित करने वाले नन्हें बच्चों से ही आने वाली पीढ़ी को ज्ञान और विज्ञान की दिशा में खासा उम्मीदे हैं। देश के न जाने कितने नौनिहालों ने बेहद कम उम्र में वैश्विक स्तर पर अपने हुनर का पताका फहराया है। सभी बच्चों को बाल दिवस की असंख्य शुभकामनाएँ।
~ प्रिय
#Childrensday
#बाल_दिवस
#childrensday2021

सोमवार, 2 अगस्त 2021

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

 राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ~

#राष्ट्रकवि_मैथिलीशरण_गुप्त जी से पहला परिचय पंचवटी कविता से हुआ था। कविताओं में रुचि तो पहले से ही थी लेकिन बचपन में अलंकारों की इतनी समझ न थी। अनुप्रास अलंकार के उदाहरण के लिए गुप्त जी की पंचवटी कविता की पंक्ति “चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में” याद करनी पड़ी। इसके बाद धीरे धीरे मन में एक उत्सुकता सी जगी और गुप्त जी की कविताएँ पढ़ने का मन हुआ। कहानी, नाटक, कविता, इत्यादि साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा पर बेहद ही अद्भुत शब्द संयोजन से गुप्त जी ने रचनाएँ की। मैथिलीशरण गुप्त जी अपने पूरे जीवन में दुखों से घिरे रहे। अपनी दुखभरी ज़िंदगी का खालीपन उन्होंने अपनी रचनाओं में बाँट लिया। उनका परिचय महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से हुआ। जो उन दिनों देश की लोकप्रिय पत्रिका "सरस्वती" के संपादक थे। उन्होंने गुप्त जी की कविताएँ 'सरस्वती' में प्रकाशित की और उन्हें कविताओं की बारीकियों के बारें में भी बताया। उसके बाद से गुप्त जी उन्हें अपना साहित्यिक गुरू मानने लगे। द्विवेदी जी के लिए उन्होंने लिखा -


"करते तुलसीदास भी कैसे मानस का नाद"

"महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद"


स्त्री की संवेदना और खासतौर पर रामायण ,महाभारत के वो पात्र जिनमें बहुत ही कम साहित्यकारों ने अपनी कलम चलाई है। उन विषयों पर गुप्त जी की गहरी दृष्टि रही। लक्ष्मण और उनकी पत्नी उर्मिला को केंद्र में रखकर लिखा गया खंड काव्य (साकेत) ,गौतम बुद्ध के गृह त्याग और उनकी पत्नी यशोधरा की वेदना में लिखी गई उनकी रचना “यशोधरा” और विष्णुप्रिया, कैकेयी का अनुताप जैसी अनेक अमर रचनाएँ उन्होंने की। हिंदुस्तान की मिट्टी से अटूट प्रेम गुप्त जी को हमेशा ही इससे जोड़े रहा। हिंदुस्तान के कठिन हालात को दर्शाती रचना "भारत भारती" लिखने के बाद उन्हें देशभर में खासी लोकप्रियता मिली। उन दिनों उनकी ये कविता स्कूल की प्रार्थनाओं में भी गाई जाने लगी थी। धीरे धीरे अंग्रेजी सरकार ने भारत भारती की सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं। भारत भारती की कुछ पंक्तियाँ देखिए ~ 


"मानस भवन में आर्य्जन जिसकी उतारें आरती "

" भगवान् ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती। "


गुप्त जी राष्ट्रीय आंदोलनों में भी सक्रिय रहे और जेल भी गए। वहाँ भी उन्होंने कई कविताएँ रची। ग्रंथ - 'कारा' और महाकाव्य- 'जयभारत' की रचना उन्होंने जेल में ही की। उनके जेल से छूटने के कुछ समय बाद महात्मा गाँधी जी की हत्या कर दी गई। उस वक्त गुप्त जी बेहद सदमें थे। उन्होंने लिखा -


"अरे राम! कैसे हम झेले,

अपनी लज्जा अपना शोक"

"गया हमारे ही पापों से,

अपना राष्ट्रपिता परलोक"


जीवन में अंतिम समय तक उन्हें अपनों के खोने का दुख सताता रहा उसके बाद भी वो रचनाएँ करते रहे। महावीर प्रसाद द्विवेदी के बाद मैथिलीशरण गुप्त ही थे जो हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सुशोभित होते देखना चाहते थे। लेकिन शायद ये विधाता को मंजूर न था।

उन्होंने अंतिम कविता लिखी~


गूँज बची है गीत गए।

अब वे वासर बीत गए।

मन तो भरा भरा है अब भी,

पर तन के रस रीत गए।

चमक छोड़कर चौमासे बीते,

कम्प छोड़कर शीत गए।


अपने छोटे भाई की मृत्यु का दुख उन्हें भीतर तक तोड़ गया। 11 दिसंबर 1964 को अचानक उन्हें भी दिल का दौरा पड़ा। अपनी अमर देह को छोड़कर वे भी परलोग सिधार गए। जब जब मन निराश और दुखी होता है तब तब गुप्त जी 'नर हो न निराश करो मन को' कहते हुए सामने आ जाते हैं । 'जयद्रथ वध', 'रंग में भंग', 'शकुंतला', 'किसान', 'झंकार', 'नहुष' जैसे अनेकों अमर कविताएँ और कृतियाँ आज भी हिंदी के पाठकों को प्रिय हैं। हिंदी और साहित्य प्रेमी उनके जन्मदिन को कवि दिवस के रुप में मनाते हैं। आज राष्ट्रकवि पद्मभूषण मैथिलीशरण गुप्त जी को उनके जन्मदिन पर सादर नमन। 🙏🏻





#MaithiliSharanGupt 

#मैथिलीशरण_गुप्त


~ प्रियांशु 'प्रिय'

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

व्यंग्य ~ [ महाअभियान ]

 व्यंग्य ~ ( महाअभियान )

इन दिनों पूरे देश में वैक्सीनेशन महाअभियान चल रहा है। साथ ही साथ हर जगह पौधरोपण भी बड़ी तेजी से हो रहा है। आप इसे महाअभियान पौधरोपण भी कह सकते हैं। पहली बार किसी महाअभियान का नाम सुन रहा हूँ। शायद जितने भी महाअभियान टाइप चीज़े होती हैं उन सब में खासा भीड़ लगती है। इन दिनों तो प्रत्येक सेंटर में वैक्सीन लगवाने के लिए सुबह से ही खचाखच भीड़ जमा हो रही है। उसमें भी कुछ लोगों को ही वैक्सीन लग पाती है। बाकियों को वैक्सीन खत्म होने की सूचना देकर वापस लौटा दिया जाता है। बिल्कुल यही स्थिति इन दिनों पौधरोपण में भी है। एक राष्ट्रीय स्तर का पौधा लगाने के लिए सांसद, विधायक से लेकर बड़े बड़े प्रतिनिधियों की आवश्यकता पड़ रही है। और भीड़ भी इतनी ज्यादा कि पौधा भी स्वयं को किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझता। कोई भी पौधा हो, पौधरोपण के वक्त सबसे ज्यादा इज्जत और सम्मान उसीका होता है। तब क्या नेता और क्या अभिनेता। सबके सब उस अकेले पौधे के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं। पौधे के साथ एक फोटो के लिए तो कभी कभी बहुत भीड़ जमा हो जाती है। अब भला इतनी इज्ज़त और सम्मान किसे मिलता होगा देश में। जय हो हमारे देश के पौधों।हमारे ही क्षेत्र के एक महाविद्यालय में एक नेताजी को पौधरोपण के लिए बुलाया गया था। बगिया के कौने में २-३ नीम और पीपल के छोटे-छोटे पौधे रखे थे। उनको ही रोपित करना था। शायद ऐसा माना जाता है कि जिले का य अपने आसपास के क्षेत्र का नामचीन व्यक्ति हो ( खासतौर पे कोई नेता ) उसके शुभ हाथों से पौधरोपण करवाने से पौधा भी स्वयं को ज्यादा गर्वित महसूस करता है। थोड़ी ही मिट्टी के सहारे अपनी जिजीविषा को जीवंत किए हुए पीपल का पौधा नेताजी को वहीं से गुज़रते हुए देख रहा था। नेताजी पान चबाकर आए हुए थे और तुरंत वहीं बगिया में थूक भी दिया। जिसकी कुछ पीक उन पौधों पर पड़ी। लेकिन उसने भी यही सोचा कि जब शहर की जनता उनका लाख अन्याय सहती है तो मैं एक छोटा सा पौधा थूक की पीक तो सहन कर ही सकता हूँ। खैर ! थूकना तो ज़रुरी था। अब अगर वही पान चबा जाते और गटक लेते तो उनके भीतर तो बड़ी समस्या खड़ी हो सकती थी। जनता जनार्दन के साथ कुछ भी अनहोनी हो जाए वो चलता है लेकिन किसी पार्टी के नेता को थोड़ा बुखार भी आ जाए तो शायद आपको अंदाज़ा नहीं कि उस वक्त वो कितना चिंताजनक विषय हो जाता है। अपनी थूकन क्रिया के कुछ देर पहले ही माननीय नेताजी एक विद्यालय में स्वच्छता अभियान पर बच्चों को प्रमाण पत्र ही बाटकर आए हुए थे। भाषण की क्या अद्भुत कला है उनके भीतर। वैक्सीनेशन महाअभियान के गलियारे से गुज़रते हुए स्वच्छता अभियान के घर में चाय पीकर पौधरोपण महासभा तक का सफर उन्होंने अपनी अद्भुत भाषाशैली में तय किया था। इतना ही नहीं अगर किसी एक विषय पर बोलने को कहा जाए तो प्रिय नेताजी उसी विषय के बीच में अपनी पार्टी का प्रचार बेहद ही अद्भुत तरीके से कर देते हैं।


~ प्रियांशु 'प्रिय'

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

राष्ट्रीय चेतना के अमर स्वर महाकवि दिनकर - ( प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय')

राष्ट्रीय चेतना के अमर स्वर महाकवि दिनकर

©® प्रियांशु कुशवाहा “ प्रिय ”

आधुनिक युग में आज भी अगर ओज के अग्रणी कवियों की बात की जाए तो सर्वोच्च स्थान पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ही उपस्थित होते हैं। राष्ट्रीयता को मुखर करने वाले अमर स्वर और भारतीय संस्कृति के शाश्वत गायक के रूप में भी दिनकर को जाना जाता है। भारत के लब्धप्रतिष्ठित कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेंगुसराय जिले के सेमरियाँ गाँव में हुआ। राष्ट्रीय चेतना की अप्रतिम अलख बचपन से ही दिनकर के भीतर झलकती थी। दिनकर का शुरूआती जीवन बेहद ही संघर्षपूर्ण रहा। पिता कृषक थे और बड़े भाई बसंत भी पिता के साथ कृषि में साहचर्य कार्य किया करते थे। एक लंबी बीमारी की वजह से उनके पिता की मृत्यु हो गई। बचपन में ही दिनकर के सर से पिता का साया टूट जाने के कारण घर पर मानों आसमान ही टूट पड़ा। ऐसी कठिन और प्रतिकूल परिस्थिति में भी उनके बड़े भाई ने उन्हें पढ़ने के लिए कहाँ और वे स्वयं कृषि कार्य में लगे रहे। दिनकर की शिक्षा-दीक्षा उनके बड़े भाई और उनकी माँ ने ही की। बचपन से ही पढ़ाई में निपुण दिनकर रचनाशीलता और सर्जनात्मकता में भी प्रतिभा संपन्न थे। दिनकर ने प्राथमिक की पढ़ाई गाँव के ही प्राइमरी स्कूल में पूरी की। दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास राजनीति विज्ञान में बी.ए. किया। उन दिनों देशभर में आजादी के लिए कई आंदोलन भी चल रहे थे। इन सबका उनके लेखन में खासा प्रभाव पड़ा। गुजरात के बारदोली सत्याग्रह के बाद दिनकर ने 20 वर्ष की उम्र में 10 गीत लिखे। सारे के सारे गीत विंध्यप्रदेश के रीवा से छपने वाली पत्रिका “छात्र सहोदर” में प्रकाशित हुए। स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने एक विद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया। 55 रूपए मासिक वेतन के साथ दिनकर ने हेडमास्टर के पद पर एक हाईस्कूल में नौकरी की। मुजफ्फरपुर में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे। विभिन्न पदों में कार्य करते हुए दिनकर का लेखन जारी रहा। 1935 में उनका पहला काव्य संग्रह रेणुका प्रकाशित हुआ। जिसमें हिमालय, कविता की पुकार, पाटिलपुत्र की गंगा जैसी अनेक लोकप्रिय कविताएँ शामिल हैं। सरकारी पद में कार्यरत रहते हुए भी दिनकर ने अपने लेखन की राष्ट्रीय चेतना और काव्यधर्मिता को जीवित रखा। सरकार की तमाम अव्यवस्थाओं पर प्रश्न खड़ा करती हुई उन्होंने कई कविताएँ लिखी।

"सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठीं,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। "

उनपर सरकार विरोधी कविताएँ लिखने का आरोप भी लगा और इस कारण से भी उनके चार साल में 22 तबादले हुए। 1942 से 1945 के बीच उन्होंने युद्ध प्रचार विभाग में नौकरी भी की। सत्य के लिए हमेशा खड़े रहने वाले दिनकर अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से राष्ट्र के प्रेम में अपनी कलम से अंधेरों को दूर कर रोशनाई फैलाते रहे। इसी बीच उनके कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। हुंकार (1939) , रसवंती ( 1940), द्वंदगीत(1940) आदि।


यूँ तो दिनकर राष्ट्रीय चेतना के अमर स्वरों में गिने ही जाते हैं और उनकी सभी कृतियां साहित्य जगत में अपना विशेष स्थान रखती हैं। परंतु 1949 में प्रकाशित प्रबंध काव्य "कुरूक्षेत्र" और 1952 में प्रकाशित "रश्मिरथी" ने साहित्य और कविता के पाठकों के हृदय में एक अलग ही स्थान स्थापित किया।अपने प्रबंध काव्य कुरूक्षेत्र में दिनकर ने महाभारत में युद्ध की पृष्ठभूमि को केंद्र में रखकर रचनाएँ लिखी। इसमें युद्ध के भयावह दृश्य के साथ महाभारत काल में युधिष्ठिर और भीष्म पितामह के संवादों को समेट कर प्रस्तुत किया गया है। दिनकर के अनुसार केंद्रीय समस्या युद्ध है और जबतक मनुष्य मनुष्य के बीच विषमता है और एकरूपता का अभाव है तबतक युद्ध टालना असंभव है। इसे कुरूक्षेत्र में दिनकर लिखते हैं कि- 


"जबतक मनुज-मनुज का यह,

सुखभाग नहीं सम होगा।

शमित न होगा कोलाहल,

संघर्ष नहीं कम होगा। "


कुरूक्षेत्र की रचना कर लेने के बाद दिनकर ने महाभारत की पृष्ठभूमि से ही एक और अमर कृति की रचना की। कवि मैथिलीशरण गुप्त जी से प्रेरणा लेकर लिखी गई "रश्मिरथी" आज भी दिनकर के पाठकों को कंठस्थ है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने ज्यादातर उन चरित्रों को केंद्र में रखकर रचनाएँ लिखीं जो कहीं-न-कहीं उपेक्षा का शिकार हुए। उदाहरण के तौर पर गुप्त जी द्वारा रचित महाकाव्य "साकेत" जो कि रामायण में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को केंद्र में रखकर लिखा गया है। ठीक इसी परंपरा को जीवित रखते हुए दिनकर जी ने महाभारत के पात्र कर्ण को केंद्र में रखकर रश्मिरथी की रचना की। कहीं न कहीं कर्ण भी साहित्य और सामाजिक रूप से उपेक्षित पात्र रहा। दिनकर की रश्मिरथी में एक आवेग और आवेश के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना का भाव भी झलकता है। कुरूक्षेत्र की रचना कर लेने के बाद दिनकर ने रश्मिरथी का लेखन शुरू किया और वे स्वयं कहते हैं कि- " मुझमें यह भाव जगा कि मैं कोई ऐसा काव्य भी लिखूँ जिसमें केवल विचारोत्तेजकता ही नहीं, कुछ कथा संवाद और वर्णन का भी माहात्म्य हो "। इस प्रबंध काव्य में दिनकर ने कर्ण की चारित्रिक विशेषताओं के साथ साथ संवेदनाओं को भी रखा है। महाभारत काल की समस्याओं को आधुनिक दृष्टि में समाहित करके पाठकों के समक्ष रखना साथ ही मुख्य समस्याएँ जो कि योग्यता और गुणों को महत्त्व ना देकर वंश और जाति को महत्व दे रही थी, उनका भी इस कृति में वर्णन किया गया है। दिनकर लिखते हैं कि-


" ऊँच नीच का भेद न माने वही श्रेष्ठ ज्ञानी है"

"दया धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है"

"क्षत्रिय वही भरी हो जिसमें निर्भयता की आग"

"सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है,हो जिसमें तप त्याग"


कर्ण को विषय बनाकर जाति व्यवस्था के खिलाफ और दलितों का समर्थन करती हुई दलित चेतना की पंक्तियां भी दिनकर की इस कृति में पढ़ने को मिलती है। कर्ण की चारित्रिक विशेषता को उद्घाटित करते हुए दिनकर ने रश्मिरथी में यह भी बताया है कि कर्ण का चरित्र पौरूष और स्वाभिमान से युक्त था। जो किसी भी शक्ति से दबने वाला नहीं था। वह अपने शरीर से समरशील योद्धा था। जिसका व्यक्तित्व मन और हृदय से भावुक तो था ही साथ ही उसका स्वभाव दानवीर प्रवृत्ति का था। कर्ण को महाभारत में दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। कर्ण के चरित्र की विशेषता बताते हुए दिनकर कहते हैं - 


" तन के समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी"

" जाति गोत्र का नहीं, शील का,पौरूष का अभिमानी। "


दिनकर की ऐसी अनेक अद्वितीय काव्य कृतियाँ प्रकाशित हुई और देश ही नहीं अपितु विश्वभर में अपनी लोकप्रियता का पताका फहराया। दिनकर को कई भाषाओं का ज्ञान भी था और भारतीय संस्कृति के गहन चिंतन के बाद उन्होंने 1956 में प्रकाशित 'संस्कृति के चार अध्याय' की रचना की। जिसकी भूमिका पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखी। इस कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। शृंगार की कविताओं से लबरेज "रसवंती'' और "उर्वशी" ( इस कृति के लिए दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया ) के साथ साथ चीनी आक्रमण के प्रतिशोध में लिखा गया खंडकाव्य "परशुराम की प्रतीक्षा" आज भी साहित्य के पाठकों को आज भी प्रिय है। दिनकर की गद्य विधा में भी कई कृतियाँ प्रकाशित हुईं। जब जब देश में सरकारी व्यवस्था मनुष्यता को तोड़ने का प्रयास करेगी तब तब दिनकर की ओजस्वी कविताएँ उनके मुँह पर करारा प्रहार करेंगी। आज महाकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्यतिथि पर सादर नमन्।


©® प्रियांशु कुशवाहा 'प्रिय'

   

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